बराक ओबामा के राष्ट्रपति बनने के बाद यूपी की राजधानी लखनऊ में एक पोस्टर लगाया गया जिसपर लिखा था- ओबामा अमेरिका के राष्ट्रपति बन गए हैं अब समय आ गया है कि मायावती भारत की प्रधानमंत्री बनें.
2007 को बहुजन समाज पार्टी (Bahujan Samaj Party) की सुप्रीमो मायावती (Mayawati) की जिंदगी का सबसे महत्वपूर्ण साल कहा जा सकता है. इस साल हुए विधानसभा चुनाव में बहुजन समाज पार्टी ने उत्तर प्रदेश की सत्ता अकेले दम पर हासिल की थी. मायावती के यूपी के मुख्यमंत्री बनने के एक साल बाद 2008 में अमेरिका को पहला अश्वेत राष्ट्रपति मिला जिनका नाम था बराक ओबामा. बराक ओबामा के राष्ट्रपति बनने के बाद यूपी की राजधानी लखनऊ में एक पोस्टर लगाया गया जिसपर लिखा था- ओबामा अमेरिका के राष्ट्रपति बन गए हैं अब समय आ गया है कि मायावती भारत की प्रधानमंत्री बनें.
साल 2009 में जब भारत में लोकसभा चुनाव होने वाले थे तब अमेरिका की प्रतिष्ठित पत्रिका न्यूज वीक में एक लेख छपा जिसका शीर्षक था-MAYAWATI: THE RISE OF INDIA'S CASTE WARRIOR. उस लेख में कहा गया था कि भारत की दो बड़ी पार्टियों कांग्रेस और बीजेपी के सामने मायावती किंगमेकर बनकर उभर सकती हैं. इस लेख में मायावती और अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा के बीच कई समानता बताई गई थीं. इस लेख की काफी चर्चा पश्चिमी मीडिया में हुई थी.
सरकारी स्कूल में टीचर बनने से लेकर मुख्यमंत्री बनने का सफर
मायावती का जन्म 15 जनवरी, 1956 में दिल्ली के लेडी हार्डिंग अस्पताल में हुआ था. आज वो 64 साल की हो गई हैं. उनके पिता प्रभुदास पोस्ट ऑफिस में क्लर्क और मां रामरती गृहणी थीं. मायावती के छह भाई और दो बहनें हैं. दिल्ली के इंद्रपुरी इलाके में दो कमरों के एक मकान वाले छोटे से घर में उनका पूरा परिवार रहता था. यहीं पल-बढ़कर मायावती बड़ी हुईं. मायावती की मां अनपढ़ थीं लेकिन वो अपने बच्चों को अच्छी शिक्षा देना चाहती थीं.
कलेक्टर बनने का था सपना
इंद्रपुरी इलाके के प्रतिभा विधालय में मायावती की शुरुआती पढ़ाई हुई. बचपन से ही उनका सपना कलेक्टर बनने का था. बी.एड करने के बाद वो प्रशासनिक सेवा की तैयारी करने लगीं. संघर्षों से भरे इस समय में वो दिन में बच्चों को पढ़ातीं थीं और रातभर खुद पढ़ती थीं. वर्ष 1977 में आर्थिक हालात की वजह से वो एक स्कूल टीचर बन गईं. इस दौरान उन्होंने दिल्ली यूनिवर्सिटी से एलएलबी भी की.
जब चुनी कांशीराम की राह
मायावती के शुरुआती संघर्षों का अंत तब हुआ जब उन्होंने कांशीराम की राह चुनी. मायावती आज जो भी हैं उसमें काफी हद तक कांशीराम का हाथ है. 1980 के दशक की बात है, कांशीराम को जब मायावती के प्रतिभा के बारे में पता चला तो वो सीधे उनके घर उनसे मिलने पहुंचे. तब दोनों के बीच बातचीत में कांशीराम को पता चला कि मायावती का सपना कलेक्टर बनकर अपने समाज के लोगों की सेवा करना है. इस पर उन्होंने मायावती से कहा कि मैं तुम्हें मुख्यमंत्री बनाऊंगा. तब तुम्हारे पीछे एक नहीं कई कलेक्टर फाइल लिए तुम्हारे आदेश का इंतजार करेंगे.
बीएसपी की नींव
कांशीराम ने 14 अप्रैल, 1984 को बहुजन समाज पार्टी (बीएसपी) की नींव रखी. मायावती ने अपनी स्कूल टीचर की नौकरी छोड़ दी और बीएसपी में शामिल हो गईं. कांशीराम ने सबसे पहला दांव पंजाब में खेला और उसके बाद उन्होंने उत्तर प्रदेश की राह पकड़ी. वो दरअसल समझ चुके थे कि यूपी में एसटी/एससी प्रत्याशियों की संख्या ज्यादा है. इसके बाद उन्होंने राज्य में बीएसपी की राजनीतिक जमीन तैयार की. हालांकि पार्टी गठन के पांच वर्षों में धीरे-धीरे वोट बैंक तो बढ़ा, लेकिन कोई अहम सफलता नहीं मिली.
पहली बार बनीं सांसद
साल 1989 में मायावती ने बिजनौर संसदीय सीट से जीत दर्ज की. मायावती के इस जीत ने बीएसपी के लिए संसद के दरवाजे खोल दिए. 1989 के आम चुनाव में बीएसपी को तीन सीटें मिली थी. पार्टी को उत्तर प्रदेश में 10 और पंजाब में 8.62 प्रतिशत वोट मिले. बीएसपी का कद अब बढ़ रहा था. अब वो एक राजनीतिक पार्टी बनकर उभर रही थी, जो आने वाले समय में प्रदेश की राजनीति की दशा-दिशा तय करने वाली थी. यह वो दौर था जब कांशीराम का मायावती पर भरोसा काफी बढ़ गया था.
दरअसल मायावती युवावस्था में आईएएस अफसर बनना चाहती थीं, मगर परिस्थितियों ने उन्हें पहले नेता बनाया फिर उनके सिर यूपी के मुख्यमंत्री का ताज सजाया. प्रशासनिक सेवा में जाने की चाह रखने वाली दलित समुदाय की इस बेटी ने अपने सियासी सफर में देश के सबसे बड़े सूबे उत्तर प्रदेश की नेता बनने से लेकर एसटी/एससी समुदाय के बीच खुद को सबसे बड़े हिमायती के रूप में स्थापित किया है.
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