ग्रेटर हैदराबाद म्युनिसिपल कार्पोरेशन के पिछले दो चुनावों में क्या थी BJP की स्थिति

हैदराबाद में गृहमंत्री अमित शाह (Amit Shah) ग्रेटर हैदराबाद नगर निगम के चुनाव प्रचार के दौरान
ग्रेटर हैदराबाद म्युनिसिपल कार्पोरेशन (greater hyderabad municipal corporation, ghmc) में पिछले 10 सालों में बीजेपी ने बड़ी छलांग लगाई है. इस बार वो इस चुनाव में काफी मजबूत स्थिति में लग रही है लेकिन यहां वर्ष 2010 के पहले चुनाव और फिर 2016 के दूसरे चुनाव उसकी क्या स्थिति थी.
- News18Hindi
- Last Updated: December 5, 2020, 1:27 AM IST
वर्ष 2007 में हैदराबाद और सिकंदराबाद समेत 12 स्थानीय निकायों को मिलाकर ग्रेटर हैदराबाद म्युनिसिपल कार्पोरेशन का गठन किया गया था. उसके बाद वर्ष 2010 में यहां पहले स्थानीय चुनाव हुए. कहना चाहिए कि पिछले 10 साल में हुए दो चुनावों के बाद अब बीजेपी हैदराबाद में बड़ी छलांग लगाने जा रही है. जब आप बीजेपी के यहां के स्थानीय चुनावों में प्रदर्शन की बात जानेंगे तो चौंक जाएंगे.
वजह ये है कि पिछले दो चुनावों में बीजेपी का प्रदर्शन स्थानीय निकाय के चुनावों में बहुत खराब था. कहा जा सकता है कि उसको नोटिस भी नहीं किया गया. लेकिन अबकी बार वाकई तस्वीर अलग है. अबकी बार बीजेपी ने जीएचएमसी यानी ग्रेटर हैदराबाद म्युनिसिपल कार्पोरेशन के चुनावों में आक्रामक तरीके से रणनीति बनाई और उसका चुनाव भी लड़ा. उसके शीर्ष नेता यहां प्रचार करने भी पहुंचे.
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यहां ये भी बताना जरूरी है कि ग्रेटर हैदराबाद में कुल 150 वार्ड हैं और 69 लाख की आबादी रहती है. जिसमें ज्यादा आबादी हिंदुओं की है. जिसमें बाहर से आकर यहां बस गए लोग भी शामिल हैं.
दरअसल वर्ष 2007 में हैदराबाद और सिकंदराबाद के अलग-अलग म्युनिसिपल कार्पोरेशन को मिलाकर ये बड़ा निकाय बनाया गया. जिसमें 12 स्थानीय निकायों के अलावा 08 ग्राम पंचायतें भी शामिल हैं.
पहले चुनावों में क्या थी राज्य की तस्वीर
खैर हम बात करते हैं पहले ग्रेटर हैदराबाद म्युनिसिपल कार्पोरेशन के पहले चुनावों की. तब ये राज्य बंटा नहीं था. तब ये आंध्र प्रदेश था. यहां कांग्रेस की राज्य सरकार थी. पहले चुनावों में बीजेपी के साथ कांग्रेस, तेलुगुदेशम, ओवैसी की एआईएमआईएम ने शिरकत की थी. तब तक टीआरएस पार्टी का भी जन्म नहीं हुआ था.

तब कांग्रेस ने जीत हासिल की थी
नवंबर 2010 में हुए इन चुनावों में कांग्रेस को 52 सीटें मिलीं, वो बहुमत में रही. जबकि टीडीपी यानी तेलुगुदेशम को 45 वार्डों में जीत हासिल हुई. ओवैसी की एआईएमआईएम तब अचानक बड़ी ताकत बनकर उभरी.
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दरअसल ओवैसी को सही मायनों में चर्चा इसी चुनाव के बाद मिलनी शुरू हुई. उनकी पार्टी ने 43 सीटें जीती थीं. अब आते हैं बीजेपी पर. उसे महज 04 वार्डों में ही जीत मिली.
2016 में तस्वीर बदल चुकी थी
अगला चुनाव वर्ष 2016 में हुआ. अब तक बहुत कुछ बदल चुका था. ये राज्य दो टुकड़ों में बंट चुका था. नए राज्य तेलंगाना का जन्म हो गया था. हैदराबाद अब तेलंगाना में था. टीआरएस राज्य में बंटवारे के बाद तेलंगाना में बड़ी ताकत बनकर उभरी. इसका असर साफतौर पर चुनावों में भी देखा गया.
टीआरएस ने जीती थीं 99 सीटें
इस चुनाव में कार चुनाव चिन्ह वाली तेलंगाना राष्ट्र समिति यानी टीआरएस ने सबको चौंकाते हुए 99 सीटें जीतीं. हर कोई उसकी इस बड़ी जीत पर हैरान था लेकिन ये नहीं भूलना चाहिए कि तब विधानसभा और लोकसभा चुनावों में टीआरएस को तेलंगाना और हैदराबाद दोनों ही स्थानों पर बड़ी जीत हासिल हुई थी.
टीआरएस इस स्थानीय निकाय चुनावों में अगर दूसरी पार्टियों से बहुत आगे थी. तो बाकी पार्टियों का जनाधार ही खिसक गया था. लेकिन इसके बीच भी ओवैसी की पार्टी एआईएमआईएम ने 44 सीटें जीतीं यानी उसे पिछले चुनावों की तुलना में 01 सीट का इजाफा हुआ.
इस चुनावों में टीडीपी और कांग्रेस का बुरा हाल हुआ. उन्हें 01 और 02 सीटें ही मिल सकीं जबकि बीजेपी अपना खाता भी नहीं खोल पाई.
इस बार क्या हो रहा है
इस लिहाज से देखें तो बीजेपी इस बार बड़ी छलांग लगाती नजर आ रही है. हालांकि इस बार भी टीआरएस और ओवैसी ने अपनी मौजूदगी बरकरार रखी है लेकिन लग रहा है कि उन्हें सीटों का नुकसान होने जा रहा है. कांग्रेस और तेलुगुदेशम का फिलहाल खाता भी खुलता नहीं नजर आ रहा.
वजह ये है कि पिछले दो चुनावों में बीजेपी का प्रदर्शन स्थानीय निकाय के चुनावों में बहुत खराब था. कहा जा सकता है कि उसको नोटिस भी नहीं किया गया. लेकिन अबकी बार वाकई तस्वीर अलग है. अबकी बार बीजेपी ने जीएचएमसी यानी ग्रेटर हैदराबाद म्युनिसिपल कार्पोरेशन के चुनावों में आक्रामक तरीके से रणनीति बनाई और उसका चुनाव भी लड़ा. उसके शीर्ष नेता यहां प्रचार करने भी पहुंचे.
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यहां ये भी बताना जरूरी है कि ग्रेटर हैदराबाद में कुल 150 वार्ड हैं और 69 लाख की आबादी रहती है. जिसमें ज्यादा आबादी हिंदुओं की है. जिसमें बाहर से आकर यहां बस गए लोग भी शामिल हैं.
दरअसल वर्ष 2007 में हैदराबाद और सिकंदराबाद के अलग-अलग म्युनिसिपल कार्पोरेशन को मिलाकर ये बड़ा निकाय बनाया गया. जिसमें 12 स्थानीय निकायों के अलावा 08 ग्राम पंचायतें भी शामिल हैं.
पहले चुनावों में क्या थी राज्य की तस्वीर
खैर हम बात करते हैं पहले ग्रेटर हैदराबाद म्युनिसिपल कार्पोरेशन के पहले चुनावों की. तब ये राज्य बंटा नहीं था. तब ये आंध्र प्रदेश था. यहां कांग्रेस की राज्य सरकार थी. पहले चुनावों में बीजेपी के साथ कांग्रेस, तेलुगुदेशम, ओवैसी की एआईएमआईएम ने शिरकत की थी. तब तक टीआरएस पार्टी का भी जन्म नहीं हुआ था.

ग्रेटर हैदराबाद म्युनिसिपल कार्पोरेशन का विशाल कार्यालय
तब कांग्रेस ने जीत हासिल की थी
नवंबर 2010 में हुए इन चुनावों में कांग्रेस को 52 सीटें मिलीं, वो बहुमत में रही. जबकि टीडीपी यानी तेलुगुदेशम को 45 वार्डों में जीत हासिल हुई. ओवैसी की एआईएमआईएम तब अचानक बड़ी ताकत बनकर उभरी.
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दरअसल ओवैसी को सही मायनों में चर्चा इसी चुनाव के बाद मिलनी शुरू हुई. उनकी पार्टी ने 43 सीटें जीती थीं. अब आते हैं बीजेपी पर. उसे महज 04 वार्डों में ही जीत मिली.
2016 में तस्वीर बदल चुकी थी
अगला चुनाव वर्ष 2016 में हुआ. अब तक बहुत कुछ बदल चुका था. ये राज्य दो टुकड़ों में बंट चुका था. नए राज्य तेलंगाना का जन्म हो गया था. हैदराबाद अब तेलंगाना में था. टीआरएस राज्य में बंटवारे के बाद तेलंगाना में बड़ी ताकत बनकर उभरी. इसका असर साफतौर पर चुनावों में भी देखा गया.
टीआरएस ने जीती थीं 99 सीटें
इस चुनाव में कार चुनाव चिन्ह वाली तेलंगाना राष्ट्र समिति यानी टीआरएस ने सबको चौंकाते हुए 99 सीटें जीतीं. हर कोई उसकी इस बड़ी जीत पर हैरान था लेकिन ये नहीं भूलना चाहिए कि तब विधानसभा और लोकसभा चुनावों में टीआरएस को तेलंगाना और हैदराबाद दोनों ही स्थानों पर बड़ी जीत हासिल हुई थी.
टीआरएस इस स्थानीय निकाय चुनावों में अगर दूसरी पार्टियों से बहुत आगे थी. तो बाकी पार्टियों का जनाधार ही खिसक गया था. लेकिन इसके बीच भी ओवैसी की पार्टी एआईएमआईएम ने 44 सीटें जीतीं यानी उसे पिछले चुनावों की तुलना में 01 सीट का इजाफा हुआ.
इस चुनावों में टीडीपी और कांग्रेस का बुरा हाल हुआ. उन्हें 01 और 02 सीटें ही मिल सकीं जबकि बीजेपी अपना खाता भी नहीं खोल पाई.
इस बार क्या हो रहा है
इस लिहाज से देखें तो बीजेपी इस बार बड़ी छलांग लगाती नजर आ रही है. हालांकि इस बार भी टीआरएस और ओवैसी ने अपनी मौजूदगी बरकरार रखी है लेकिन लग रहा है कि उन्हें सीटों का नुकसान होने जा रहा है. कांग्रेस और तेलुगुदेशम का फिलहाल खाता भी खुलता नहीं नजर आ रहा.