ब्लैक डेथ महामारी की कैसे और कहां से हुई थी शुरुआत, शोध ने किया खुलासा
Agency:News18Hindi
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ब्लैक डेथ (Black Death) जैसी ऐतिहासिक और घातक बीमारी की उत्पत्ति के बारे में पुरातत्वविदों (Archaeologists) को रोचक तरीके से जानकारी मिली है. मध्ययुग में यूरोप के इतिहास को काला करने वाली इस महामारी ने यूरोप (Europe) के कई इलाकों में आबादी का सफाया कर दिया था. उत्तर किर्गिस्तान की कब्रों में मिले पुरातन अवशेषों के डीएनए के अध्ययन से पता लगाया कि इस बीमारी की शुरुआत कहां से हुई थी.
ब्लैक डेथ (Black Death) महामारी ने यूरोप के मध्य युग में जनसंख्या के बड़े हिस्सों को साफ कर दिया था. (प्रतीकात्मक तस्वीर: shutterstock)पिछले तीन साल से दुनिया कोविड-19 महामारी (Covid-19 Pandemic) से मुक्त होने का प्रयास कर रही है. यह बीमारी इसी सदी के पहले दशक में आए कोरोना वायरस का नए संस्करण से फैली थी. इसी तरह ब्लैक डेथ (Black Death) नाम की महामारी का भी अपना इतिहास है जिसे अब तक की सबसे खतरनाक महामारी माना जाता है. लेकिन इसकी शुरुआत कब और कहां हुई इसकी जानकारी वैज्ञानिकों के पास नहीं थे. लेकिन पुरातत्वविदों ने किर्गिस्तान (Kyrgyzstan) के पुरानी कब्रों से ऐसे प्रमाण हासिल किए हैं जो ब्लैक डेथ की उत्पत्ति के बारे में कई खुलासे कर सकते हैं.
130 साल पहले मिले हड्डियों के अवशेष
1880 के दशक के अंत में जब किर्गिस्तान के उत्तर में कब्रों से करीब 30 इंसानी हड्डियों के ढांचे निकाले गए थे तो पुरातत्वविदों को जरा भी अंदाजा नहीं था कि 130 साल बाद अवशेषों से ब्लैक डेथ महामारी की उत्पत्ति की जानकारी मिल जाएगी. ब्लैक डेथ 500 साल लंबी महामारी की पहली लहर थी जिसे इतिहास की सबसे घातक महामारी माना जाता है.
1880 के दशक के अंत में जब किर्गिस्तान के उत्तर में कब्रों से करीब 30 इंसानी हड्डियों के ढांचे निकाले गए थे तो पुरातत्वविदों को जरा भी अंदाजा नहीं था कि 130 साल बाद अवशेषों से ब्लैक डेथ महामारी की उत्पत्ति की जानकारी मिल जाएगी. ब्लैक डेथ 500 साल लंबी महामारी की पहली लहर थी जिसे इतिहास की सबसे घातक महामारी माना जाता है.
मध्य युग का कहर
ब्लैक डेथ येरसीनिया पेस्टिस नाम के बैक्टीरिया से फैली थी और यह मध्य युग के समय यूरोपीय जनसंख्या का बड़ा हिस्सा साफ कर दिया था. इतने व्यापक प्रभाव के बाद भी शोधकर्ताओं को यह जानकारी नहीं मिल सकी कि यह महामारी कब और कहां से शुरू हुई थी. वे लंबे समय से बैक्टीरिया के वाय जीनोम को ट्रेस करने का प्रयास कर रहे हैं.
ब्लैक डेथ येरसीनिया पेस्टिस नाम के बैक्टीरिया से फैली थी और यह मध्य युग के समय यूरोपीय जनसंख्या का बड़ा हिस्सा साफ कर दिया था. इतने व्यापक प्रभाव के बाद भी शोधकर्ताओं को यह जानकारी नहीं मिल सकी कि यह महामारी कब और कहां से शुरू हुई थी. वे लंबे समय से बैक्टीरिया के वाय जीनोम को ट्रेस करने का प्रयास कर रहे हैं.
कहां हुई थी शुरुआत
नए अध्ययन में सुझाया गया है कि ब्लैक डेथ महामारी की शुरुआत मध्य यूरेशिया में हुई थी. यह अध्ययन प्लेग जैसी बीमारीयों के इतिहास को समझने के लिए हुए बहुत सारे पुरात्व और पुरातनपारिस्थितिकी अध्ययनों में से सबसे नया अध्ययन है. इस शोध में स्टर्लिंग यूनिवर्सिटी के इतिहासकार फिल स्लाविन ने इस अध्ययन की प्रमुख लेखक एवं पुरातत्व अनुवांशिकविद मारिया स्पायरोउ और बायोकैमिस्ट जोहानस क्रायूजद के साथ काम किया है.
नए अध्ययन में सुझाया गया है कि ब्लैक डेथ महामारी की शुरुआत मध्य यूरेशिया में हुई थी. यह अध्ययन प्लेग जैसी बीमारीयों के इतिहास को समझने के लिए हुए बहुत सारे पुरात्व और पुरातनपारिस्थितिकी अध्ययनों में से सबसे नया अध्ययन है. इस शोध में स्टर्लिंग यूनिवर्सिटी के इतिहासकार फिल स्लाविन ने इस अध्ययन की प्रमुख लेखक एवं पुरातत्व अनुवांशिकविद मारिया स्पायरोउ और बायोकैमिस्ट जोहानस क्रायूजद के साथ काम किया है.
यूरोप के मध्य युग में ब्लैक डेथ (Black Death) का कहर करीब 500 साल तक कायम था. (फाइल फोटो)
प्लेग से मरे हुए लोगों की जीनोम की तलाश
स्लविन ने बताया कि उनका अध्ययन इतिहास के सबसे बड़े और सबसे रोचक सवालों में से एक जवाब खोज रहा था. इसमें टीम ने पता लगाने का प्रयास किया कि कब और कहां इंसानों के सबसे कुख्यात और बदनाम हत्यारे की शुरुआत हुई. इससे पहले के अध्ययनों में उन लोगों के अवशेषों से मिले पुरातन जीनोम की तुलना की गई थी जो इंग्लैंड, फ्रांस, जर्मनी और अन्य जगहों पर प्लेग से मारे गए थे. लेकिन स्पायरोउ और क्रायूज ने रूस की नदी के पास के एक शहर से दूसरी प्लेग महामारी के जड़ों की तलाशना शुरू किया.
स्लविन ने बताया कि उनका अध्ययन इतिहास के सबसे बड़े और सबसे रोचक सवालों में से एक जवाब खोज रहा था. इसमें टीम ने पता लगाने का प्रयास किया कि कब और कहां इंसानों के सबसे कुख्यात और बदनाम हत्यारे की शुरुआत हुई. इससे पहले के अध्ययनों में उन लोगों के अवशेषों से मिले पुरातन जीनोम की तुलना की गई थी जो इंग्लैंड, फ्रांस, जर्मनी और अन्य जगहों पर प्लेग से मारे गए थे. लेकिन स्पायरोउ और क्रायूज ने रूस की नदी के पास के एक शहर से दूसरी प्लेग महामारी के जड़ों की तलाशना शुरू किया.
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और एक दावा
दूसरी टीमों ने दावा किया कि उन्होंने सबसे पुरातन ज्ञात प्लेग के शिकार व्यक्ति की जानकारी हासिल कर ली जो आज के लातविया में एक कम संक्रामक वाय पेस्टिसके स्ट्रेन के पूर्वज से 14 सदी में ब्लैक डेथ के फैलने के हजारों साल पहले संक्रमित था. लेकिन ब्लैक डेथ नाम की दूसरी प्लेग महामारी पांच सदियों तक पूरी दुनिया में तहलका मचाती रही. जिसकी उत्पत्ति पर काफी बहस होती रही.
दूसरी टीमों ने दावा किया कि उन्होंने सबसे पुरातन ज्ञात प्लेग के शिकार व्यक्ति की जानकारी हासिल कर ली जो आज के लातविया में एक कम संक्रामक वाय पेस्टिसके स्ट्रेन के पूर्वज से 14 सदी में ब्लैक डेथ के फैलने के हजारों साल पहले संक्रमित था. लेकिन ब्लैक डेथ नाम की दूसरी प्लेग महामारी पांच सदियों तक पूरी दुनिया में तहलका मचाती रही. जिसकी उत्पत्ति पर काफी बहस होती रही.
शोधकर्ताओं ने येरसीनिया पेस्टिस नाम के बैक्टीरिया (Bacteria) के जीनोम सीक्वेंसिंग की जिससे उसकी उत्पत्ति का पता चल सका. (प्रतीकात्मक तस्वीर: shutterstock)
कब्रिस्तान में मिले अवशेष
अब नए अध्ययन में पता चला है कि ब्लैक डेथ का उत्पत्ति की संभावना पूर्व में मध्य एशिया तक जाती है. इस बात के संकेत आज के किर्गिस्तान के दो कब्रास्तान से मिले सात लोगों के अवशेषों से मिले प्रमाणों से मिले हैं. इसाइक कुल झील के पास की घाटी में स्थित ये कब्रिस्तान वास्तव में 1885 से 1892 के बीच खोदे गए थे जिसमें एक सामूहिक रूस दफन किए लोगों की कब्रों के पत्थरों पर महामारी का अस्पष्ट रूप जिक्र था, लेकिन उनकी मृत्यु का कारण पुष्ट नहीं हो सका था.
अब नए अध्ययन में पता चला है कि ब्लैक डेथ का उत्पत्ति की संभावना पूर्व में मध्य एशिया तक जाती है. इस बात के संकेत आज के किर्गिस्तान के दो कब्रास्तान से मिले सात लोगों के अवशेषों से मिले प्रमाणों से मिले हैं. इसाइक कुल झील के पास की घाटी में स्थित ये कब्रिस्तान वास्तव में 1885 से 1892 के बीच खोदे गए थे जिसमें एक सामूहिक रूस दफन किए लोगों की कब्रों के पत्थरों पर महामारी का अस्पष्ट रूप जिक्र था, लेकिन उनकी मृत्यु का कारण पुष्ट नहीं हो सका था.
शोधकर्ताओं ने पाए गए कंकालों के दातों में से डीएनए निकाला और उसके जेनेटिक पदार्थ की सीक्वेंसिंग की और उसकी तुलना आधुनिक और पुरातन वायपेस्टिस जीनोम से तुलना की. पर्यावरण संक्रमण और बैक्टीरिया के संरक्षित बचने की गांरटी ना होने के बाद भी शोधकर्ता सातों व्यक्तियों के डीएनए की सीक्वेंसिंग कर सके जिनके कंकाल के अवशेष बचे थे. अंततः शोधकर्ता दर्शा सके कि 1338 में हुई इन व्यक्तियों की मौत इस महामारी की शुरुआत मध्य एशिया से हुई थी.
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