दुनियाभर में अवसाद के मरीज बढ़ते जा रहे हैं. कोरोना महामारी के बीच अवसाद का आंकड़ा तेजी से बढ़ा. इस बीच अवसाद की पहचान में समस्या दिख रही है. असल में आमतौर पर होता ये है कि डिप्रेशन की पहचान के लिए मनोवैज्ञानिक या मनोचिकित्सक पारंपरिक तरीके अपनाते हैं. वे बातचीत के आधार पर तय करते हैं कि डिप्रेशन किस स्तर पर है और उसी आधार पर इलाज होता है. लेकिन अब डिप्रेशन की पहचान के लिए भी ब्लड टेस्ट हो सकेगा, जिससे रोग का स्तर ज्यादा आसानी से समझ में आएगा.
भारत में डिप्रेशन के मरीज
अवसाद के मामले पहले ही बढ़ते जा रहे थे, इस बीच सालभर पहले कोरोना संक्रमण के कारण लगे लॉकडाउन ने दोहरी मार की. लोगों की नौकरियां जाने लगीं तो कहीं परिवार के सदस्य की संक्रमण से मौत होने लगी. इसका असर डिप्रेशन के बढ़े ग्राफ के रूप में दिखता है. 10 हजार भारतीय युवाओं पर GOQii नामक हेल्थकेयर प्लेटफॉर्म ने एक सर्वे किया, जिसके नतीजे डराते हैं.
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किनका, कितना है प्रतिशत
सर्वे में हिस्सा लेने वाले 26 प्रतिशत लोग माइल्ड डिप्रेशन के शिकार दिखे. 11 प्रतिशत लोग डिप्रेशन की मॉडरेट श्रेणी में, जबकि 6 प्रतिशत लोग इसके गंभीर स्तर पर दिखे. लगभग 59 प्रतिशत लोगों ने कहा कि उन्हें अब कोई भी काम करने में खुशी नहीं हो रही.

डिप्रेशन की पहचान के लगभग सारे तरीके काफी पारंपरिक होने के कारण इसकी पहचान थोड़ी मुश्किल रही- सांकेतिक फोटो (pixabay)
देश की इकनॉमी पर अवसाद का असर
डिप्रेशन के इस बढ़ते स्तर का असर न केवल व्यक्तिगत स्तर पर, बल्कि देश की GDP पर भी दिखेगा. दरअसल इसके कारण कामकाजी युवाओं की उत्पादकता कम होती है. वे नौकरी या बिजनेस में मन नहीं लगा पाते और लगातार घाटे में जाने लगते हैं. इससे न केवल उनका नुकसान होता है, बल्कि देश की स्वास्थ्य व्यवस्था और कुल GDP भी इससे प्रभावित होती है. यही कारण है कि पश्चिम में डिप्रेशन से पीड़ित लोगों की देखभाल पर खास ध्यान दिया जाता है.
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हालांकि डिप्रेशन की पहचान के लगभग सारे तरीके काफी पारंपरिक होने के कारण इसकी पहचान थोड़ी मुश्किल रही है. लेकिन अब इस समस्या का हल भी निकल चुका है. वैज्ञानिक अब ब्लड टेस्ट के जरिए इसकी जड़ तक पहुंचने का दावा कर रहे हैं.

पश्चिम में डिप्रेशन से पीड़ित लोगों की देखभाल पर खास ध्यान दिया जाता है- सांकेतिक फोटो (pixabay)
साइंस अलर्ट में इस बारे में रिपोर्ट आई है
इसके अनुसार विशेषज्ञों ने खून में ऐसे 26 बायोमार्कर्स को पहचाना, जिससे डिप्रेशन, बायपोलर डिसऑर्डर जैसी मानसिक समस्याओं की पहचान होगी. रिपोर्ट के मुताबिक कई बार होता ये है कि डिप्रेशन की पहचान नहीं हो पाती है या उसका सही स्तर नहीं पता चलता है. ऐसा इसलिए है क्योंकि इसकी पहचान अमूमन सवाल-जवाब फॉर्मेट में होती है. लेकिन अब खून की जांच से ही इसे पकड़ा जा सकेगा.
क्या कहते हैं वैज्ञानिक
इंडियाना यूनिवर्सिटी के मनोचिकित्सा विभाग के प्रोफेसर Alexander Niculescu की अगुवाई में हुई इस खोज में खून में उसी तरह के बायोमार्कर दिखे, जैसे ट्रॉमा से उबरे किसी मरीज के खून में होते हैं, या फिर अल्जाइमर्स के मरीज में दिखते हैं. खून में अलग तरह के संकेतों के आधार पर हल्के लक्षणों वाले डिप्रेशन के मरीज को सही इलाज दिया जाएगा ताकि बीमारी और गंभीर न हो जाए.
खून में बायोमार्कर्स की पहचान
ब्लड टेस्क के आधार पर जिन 26 बायोमार्कर्स की पहचान हुई है, उनमें से 12 बायोमार्कर्स का अवसाद से सीधा ताल्लुक है, वहीं 6 बायोमार्कर ऐसे हैं, जो बायपोलर डिसऑर्डर से जुड़े हुए हैं. इस खोज के बाद अब उम्मीद की जा रही है कि डिप्रेशन या फिर बायपोलर डिसऑर्डर की विश्वसनीय जानकारी मिल सकेगी और इसी आधार पर बेहतर इलाज दिया जा सकेगा.

वैज्ञानिकों ने इंटरनेट पर ऐसे कई थैरेपी प्लेटफॉर्म बनाए हैं जो डिप्रेशन से लड़ने में मदद करते हैं- सांकेतिक फोटो (pixabay)
समझें, डिप्रेशन आखिर है क्या
ये major depressive disorder के तहत आता है जो कि आम लेकिन सीरियस मेडिकल जरूरत है. अवसाद में हमारे सोचने और काम करने के तरीके पर असर पड़ता है. कम से कम दो हफ्ते तक लगातार सिर्फ नकारात्मक सोच रहे, नींद और खाने का तरीका बदल जाए, हरदम थकान रहे, शौक खत्म हो जाए तो ये सारे लक्षण डिप्रेशन के तहत आते हैं. हालांकि कई दूसरी बीमारियों के लक्षण डिप्रेशन से मिलते-जुलते हैं जैसे कि थायरॉइड, ब्रेन ट्यूमर और विटामिन डी की कमी. ऐसे में डिप्रेशन के नतीजे पर पहुंचने से पहले डॉक्टर दूसरी जांचें भी करवाते हैं.
इंटरनेट के जरिए भी बीमारी की पहचान
वैज्ञानिकों ने इंटरनेट पर ऐसे कई थैरेपी प्लेटफॉर्म बनाए हैं जो डिप्रेशन से लड़ने में मदद करते हैं. ये रिसर्च अमेरिका की इंडियाना यूनिवर्सिटी में की गई. शोधकर्ताओं ने 4781 लोगों को रिसर्च में शामिल किया और उन्हें वे थैरेपी दी गईं, जो इंटरनेट पर उपलब्ध हैं या जो इस तरह के दावे करती हैं. सकारात्मक रिजल्ट के बाद ये शोध जर्नल ऑफ मेडिकल इंटरनेट रिसर्च में भी प्रकाशित हुई.
इंटरनेट-बेस्ड कॉग्निटिव बिहेवियरल थेरेपी (iCBT) एप के जरिए भी डिप्रेशन से अलग-अलग स्तरों पर प्रभावित लोगों की मदद हो सकती है. हालांकि ये एप मनोवैज्ञानिकों, मनोचिकित्सकों और दवाओं का विकल्प नहीं.
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Tags: Depression, Mental Health Awareness, Research, Science news
FIRST PUBLISHED : April 18, 2021, 07:36 IST