वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने प्राकृतिक खेती को बढ़ावा देने के लिए 1 करोड़ किसानों की मदद का ऐलान किया है.
Agriculture Budget 2023: वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने ऐलान किया है कि प्राकृतिक खेती करने के लिए अगले तीन साल तक 1 करोड़ किसानों की मदद की जाएगी. इसके लिए 10,000 बायो इनपुट रिसोर्स सेंटर खोले जाएंगे. पारंपरिक तरीके से खेती करने वाले किसानों को ये जानना जरूरी है कि प्राकृतिक खेती क्या होती है? इससे उन्हें क्या फायदा मिलेगा और सरकार इस पर इतना जोर क्यों दे रही है. दरअसल, ऐसी खेती जिसमें किसी भी तरह के कैमिकल यानी रसायन का इस्तेमाल ना किया, प्राकृतिक खेती कही जाती है. प्राकृतिक खेती के लिए जैविक खाद व जैविक कीटनाशकों समेत अन्य प्राकृतिक चीजों का ही इस्तेमाल किया जाता है.
प्राकृतिक खेती में जमीन के प्राकृतिक स्वरूप को बनाए रखा जाता है. इसमें प्रकृति में बहुत आसानी से मिलने वाले जीवाणुओं और तत्वों का इस्तेमाल कर खेती की जाती है. इससे पर्यावरण को भी नुकसान नहीं होता है. साथ ही प्राकृतिक खेती में किसानों की लागत भी कम आती है. इसमें प्राकृतिक खाद, पेड़-पौधों के पत्ते से बनी खाद, गोबर खाद और जैविक कीटनाशक ही इस्तेमाल किए जाते हैं.
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किन राज्यों में हो रही प्राकृतिक खेती
रसायनमुक्त खेती यानी प्राकृतिक खेती को मिट्टी की उर्वरक क्षमता बढ़ाने के साथ ही पर्यावरण की बेहतरी, ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को खत्म करने या कम करते हुए किसानों की आय को बढ़ाने जैसे फायदे लेने के लिए शुरू किया गया है. दुनियाभर में प्राकृतिक खेती को धरती को बचाने वाली कृषि पद्धति माना जा रहा है. भारत में इस कृषि पद्धति को अपनाने वाले राज्यों में आंध्र प्रदेश, छत्तीसगढ़, केरल, हिमाचल प्रदेश, झारखंड, ओडिशा, मध्य प्रदेश, तमिलनाडु और अब उत्तर प्रदेश भी शामिल हैं. इसे भारतीय प्राकृतिक कृषि पद्धति के तौर पर केंद्र प्रायोजित योजना परंपरागत कृषि विकास योजना के तहत बढ़ावा दिया जा रहा है.
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क्या हैं प्राकृतिक खेती के फायदे
प्राकृतिक खेती से पहले साल उत्पादन में किसी तरह की गिरावट नहीं आती है. वहीं, रसायनों और खादों पर होने वाले हजारों रुपये का खर्च भी बच जाता है. यही नहीं, रसायनमुक्त होने के चलते प्राकृतिक खेती के जरिये पैदा होने वाली सब्जियां बाजार में जल्दी और ज्यादा कीमत पर बिक जाती है. इससे किसानों को कम खर्च पर ज्यादा आमदनी होती है. रासायनिक कीटनाशकों का इस्तेमाल फसलों पर करने से लंबे समय में लोगों के स्वास्थ्य पर असर दिखता है.
वहीं, जैविक कीटनाशकों के इस्तेमाल से ऐसी दिक्कतें नहीं होती हैं. इसके अलावा रासायनिक खाद का इस्तेमाल करने से जमीन की उर्वरक क्षमता धीरे-धीरे खत्म होने लगती है. इसके उलट जैविक खाद के इस्तेमाल से जमीन की उर्वरक क्षमता बढ़ती है. रासायनिक कीटनाशकों के इस्तेमाल से जल प्रदूषण, वायु प्रदूषण, मृदा प्रदूषण बढ़ता है. वहीं, जैविक कीटनाशक किसी तरह का प्रदूषण नहीं करते हैं.
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कहां से शुरू हुई प्राकृतिक खेती
प्राकृतिक खेती जापान के किसान व दार्शनिक मासानोबू फुकुओका ने पर्यावरण को बचाने के लिए शुरू की थी. फुकुओका ने इस पद्धति का पूरा ब्योरा जापानी भाषा में लिखी अपनी किताब ‘सिजेन नोहो’ में किया है. इसलिए दुनियाभर में इस कृषि पद्धति को ‘फुकुओका विधि’ भी कहा जाता है. इस पद्धति में ‘कुछ भी न करने’ की सलाह दी जाती है. इसमें कहा जाता है कि किसान किसी भी तरह से जुताई, निराई-गुड़ाई न करें और ना ही उर्वरक या कीटनाशक डालें. भारत में खेती की इस पद्धति को ‘ऋषि खेती’ भी कहा जाता है.
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