चौधरी चरण सिंह का आज जन्मदिन है. उनका जन्म 23 दिसंबर 1902 में हापुड़ में नूरपुर गांव में जाट परिवार में हुआ था. वैसे तो करियर के तौर शुरुआत उन्होंने वकालत से की लेकिन गांधी जी के स्वतंत्रता आंदोलन में ही भाग लेते हुए वे राजनीति में आए. चरण सिंह ने अपने जीवन में कई दल बनाए और तोड़े. वो सादगी पसंद थे. उन्हें कई बातों से सख्त नफरत थे.
वो फिजूलखर्ची जरा भी बर्दाश्त नहीं करते थे. क्रिकेट और फिल्मों से सख्त नफरत थी. शराब से तो दूर रहते ही थे. अगर उन्हें मालूम भी हो जाए कि अमुक शख्स शराब का सेवन करता है, वो उससे कभी बात करना भी पसंद नहीं करते थे.
चरण सिंह के बारे में कहा जाता है कि अगर वो जानते कि आपका शराब से कोई ताल्लुक है तो वो कभी ऐसे व्यक्ति से बात करना क्या पास फटकने भी नहीं देते थे. उनका जीवन सादगी वाला था. जीवन भर घर का और पत्नी का बना सादा खाना ही खाया. पैसे की फिजूलखर्ची कतई बर्दाश्त नहीं कर पाते थे.
फिजूलखर्ची कतई बर्दाश्त नहीं थी
घर में अगर कोई फालतू बल्ब भी जला हो तो तुरंत बंद करा देते थे. एक बार बागपत से कुछ किसान उनसे अपनी मांगों के लिए मिलने आए तो उनको ये बात जरा भी पसंद नहीं आई, क्योंकि उन्हें लगा कि जिस काम के लिए वो पैसा और समय खर्च करके दिल्ली आए हैं, वो काम तो वो एक पोस्टकार्ड लिखकर भी कर सकते थे. ये बात उन्होंने किसानों से कही भी कि क्यों इतना पैसा खर्च करके यहां आए. बस एक पोस्टकार्ड पर लिख देते, आपका काम अपने आप हो जाता.
ऐसे में लाजिमी है कि वो किसानों की बड़ी रैलियों और धरने को किस नजर से देखते, कहना मुश्किल है. लेकिन शायद उन्हें ये पसंद नहीं आता लेकिन वो ये भी कभी नहीं चाहते कि किसानों का हक कहीं से भी मारा जाए. किसानों के हक के लिए वो सबसे आगे खड़े मिलते.
देश की आजादी के पहले ही वे जमीदारों के किसान मजूदरों के उत्पीड़न के खिलाफ आवाज उठाते रहे थे. वे किसानों कि समस्याएं सुन कर बहुत द्रवित हो जाया करते थे और कानून के ज्ञान का उपयोग वे किसानों की भलाई के करते दिखाई देते रहे थे.
किसानों के लिए नेहरू तक से भिड़ गए
1951 में वे उत्तर प्रदेश कैबिनेट में न्याय एवं सूचना मंत्री बने. इसके बाद वे 1967 तक राज्य कांग्रेस के अग्रिम पंक्ति के तीन प्रमुख नेताओं में गिने जाते रहे. भूमि सुधार कानूनों के लिए काम करते रहे. किसानों के लिए उन्होंने 1959 के नागपुर कांग्रेस अधिवेशन में पंडित नेहरू तक का विरोध करने से गुरेज नहीं किया.
फिल्मों से नफरत थी
चौधरी चरण सिंह को फिल्मों से नफरत थी. उन्होंने शायद अपने जीवन में कभी कोई फिल्म देखी भी नहीं. वो इसे समय की बर्बादी मानते थे और शायद सांस्कृतिक तौर पर भी पसंद नहीं करते थे. फ़िल्में वगैरह देखने से उनका दूर दूर का वास्ता नहीं था.वो ये भी पसंद नहीं करते थे कि उनके परिवार के लिए कभी पिक्चर हाल कोई मूवी देखने जाएं.
क्रिकेट भी पसंद नहीं करते थे
चौधरी चरण सिंह को क्रिकेट से भी नफरत थी. इसे उन्होंने सार्वजनिक तौर पर जाहिर भी किया. एक बार उन्होंने कहा, “रेडियो पर क्रिकेट की रनिंग कमेंट्री को बंद करवा देना चाहिए. यह 5-5 दिन तक लोगों को निठल्ला और बेकार बनाए रखता है. देश के लोगों के कामकाज पर ये बहुत बुरा असर डालता है.उनके समय में केवल टेस्ट क्रिकेट होता था, जो 05 दिनों तक खेला जाता था. इसके बाद अक्सर टेस्ट मैच ड्रा हो जाते थे.
जहाज में उड़ने के खिलाफ थे
वो आमतौर पर मामूली सी एंबेसडर कार में चला करते थे. जहाज़ पर उड़ने के ख़िलाफ़ थे. जब प्रधानमंत्री बने तब भी ट्रेन से ही लखनऊ जाया करते थे.
कांग्रेस से अलग होकर पहली गैर कांग्रेसी सरकार यूपी में बनाई
चौधरी चरण सिंह ने साल 1967 में कांग्रेस से खुद को अलग कर लिया और वे उत्तर प्रदेश के पहले गैर कांग्रेसी मुख्यमंत्री बने. भारतीय लोकदल के नेता के तौर पर वे जनता गठबंधन से जुड़े जिसमें उनका दल सबसे बड़ा घटक था. लेकिन राजनैतिक जानकार बताते हैं कि 1974 से वे गठबंधन में अलग थलग हो गए थे और जयप्रकाश नारायण ने जब मोरारजी देसाई को प्रधानमंत्री चुना तो वे बहुत निराश हुए. और फिर जब 1979 में प्रधानमंत्री बनने के बाद उन्हें कांग्रेस के समर्थन वापस लेने से इस्तीफा देना पड़ा.
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