देखा जाता है कि बच्चे (Children) बड़ों की तुलना में तेजी से सीखते हैं, लेकिन इसका कारण पता नहीं था. (प्रतीकात्मक तस्वीर: Pixabay)
माना जाता है कि सीखने के मामले में बच्चे (learning in Children) , बड़ों से ज्यादा जल्दी और तेजी से सीखते हैं. उनका दिमाग (Brain of Children) सूचनाएं ग्रहण करने में ज्यादा तेज और सक्रिय समझा जाता है. उनके दिमाग की तंत्रिकाएं किसी तरह से नए ज्ञान को ज्यादा आसानी से ग्रहण कर लेती हैं, उन्हें आसानी से याद भी कर लेती हैं और तो और नए अनुभव होने लगे हों तभी यह प्रक्रिया उसी तरह से कायम रहती है. यानी उन्हें जानकारी और ज्ञान पचाने के लिए अतिरिक्त समय की भी जरूरत नहीं होती है. नए अध्ययन में वैज्ञानिकों ने इसके लिए जिम्मेदार रसायन(Brain Chemical) का पता लगा लिया है.
कौन सा है ये रसायन
नए अध्ययन में जर्मनी की रेजन्सबर्ग और अमेरिका की ब्राउन यूनिवर्सिटी के न्यूरोसाइंटिस्ट की टीम ने पता लगाया है कि दिमाग में वह कौन सा रसायन होता है जो बच्चों के मस्तिष्क को सीखने के मामले में इतना कारगर बना देता है. उन्होंने पाया है कि इसके लिए जीएबीए यानी गामा-अमीनोब्यूटाइरिक एसिड नाम का दिमागी रसायन जिम्मेदार होता है.
बच्चों में ज्यादा
यही रसायन बच्चों में तब ज्यादा निकलता है जब बच्चे सीख रहे होते हैं या फिर सीख चुके होते हैं जिससे उनका दिमाग ज्यादा सीखने की क्षमता रख पाता है. ब्राउन यूनिवर्सिटी के कॉग्नेटिव मनोविज्ञानी टेको वाटनाबे, जो इस अध्ययन के सहलेखक हैं, का कहना है कि समान्य तौर पर माना जाता है कि बड़ों के मुकाबले में बच्चे सीखने में ज्यादा तेज होते हैं.
नई तकनीक का उपयोग
इस मान्यता का समर्थन करने का कोई वैज्ञानिक आधार नहीं है. अगर कुछ हुआ भी तो बहुत ही कमजोर है.. शोधकर्ताओं ने उन्नत न्यूरोइमेजिंग तकनीक का उपयोग किया जिसे फंक्शनल एमआरएस (fMRS) कहते हैं जिससे सीखने की गतिविधि के दौरान ही बच्चों के दृष्टि कोर्टेक्स में जीएबीए की मात्रा को अप्रत्यक्ष रूप से मापा जा सकता है और यह देखा जा सकता है कि वह वयस्कों से कितना और कैसे अलग होता है.
कैसे किया गया प्रयोग
इस मापन के प्रयोग में शोधकर्ताओं ने 8 से 11 साल के 55 बच्चों और 18 से 35 साल के वयस्कों को शामिल किया ता जिसमें तीन तरह की समायावधि के अवलोकन किए गए. ये दृष्टि शिक्षण कार्य के शुरू होने से पहले, उसके दौरान और उस गतिविधि के खत्म होने के बाद का काल थे.
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क्या था नतीजा
नतीजों ने दर्शाया कि वयस्कों में जीएबीए स्तर पूरे प्रयोग के दौरान एक सा ही कायम रहा, जबकि बच्चों में जीएबीए के स्तर बढ़ते हुए पाए गए. वाटनाबे का कहना है कि सीखने के दौरान बच्चों में जीएबीए तेजी से बड़ा और ऐसा केवल सीखने के दौरान ही नहीं हुआ बल्कि सीखने केबाद भी उनमें जीएबीए कास्तर ज्यादा ही पाया गया. यह एक बड़ा खुलासा करने वाली पड़ताल साबित हुई है.
क्या होता है जीएबीए
दिमाग में जीएबीए एक रासायनिक मैसेंजर की तरह काम करता है जिसे नई जानकारी सीखने की प्रक्रिया के लिहाज से बहुत अहम माना जाता है. यह स्थिरीकरण में प्रमुख भूमिका निभाता, जिसे सीखने के बाद का कूलिंग ऑफ समय कहा जाता है. इस दौरान नए न्यूरल नेटवर्क मजबूत होते हैं और दिमाग में सूचना मजबूती से जमा कर ली जाती है. लेकिन यदि इस कूलिंग ऑफ की अवधि में कुछ और सीखने का प्रयास किया गया तो रेट्रोग्रेड इंटरफियरेंस की प्रक्रिया शुरू हो जाती है.
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अध्ययन में वैज्ञानिकों ने पाया कि रेट्रोग्रेड इंटरफियरेंस यानि जिसे हमें सूचना या जानकारी पचाने की प्रक्रिया का समय भी कह सकते हैं वयस्कों में ज्यादा समय, करीब एक घंटा, लेती है जबकि बच्चों में यह बहुत कम, 10 मिनट का, समय लेती है. शोधकर्ताओं ने पाया कि जीएबीए बच्चों में सीखने की क्षमता को ज्यादा प्रभावी बनाता है. यह शोध करंट बायोलॉजी में प्रकाशित हुआ है.
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