चीन (China) में जनसंख्या में 60 सालों में पहली बार कमी देखने को मिली है. (तस्वीर: Pixabay)
चीन की आबादी (Population of China) पिछले 60 सालों में पहली बार कम हुई है. हाल में चीन कोविड-19 महामारी (Covid-19 Pandemic) की लहर से जूझ रहा है जिसके आंकड़ों को पूरी दुनिया संदेह की नजरों से देख रही है. बताया जा रहा है कि महामारी के बाद से पहली बार चीन में ऐसा देखने को मिल रहा है कि देश में मरने वालों की संख्या पैदा होने की तुलना में बहुत ज्यादा हो गई है. पिछले साल चीन ने अपने आबादी करीब 1.4 अरब बताई थी. यह गिरावट चीन और संयुक्त राष्ट्र (United Nations) के एक दशक पहले लगाए गए अनुमान के विपरीत आई है. इस गिरावट ने चीन को कई मुद्दों पर चिंता में डाल दिया है जिसमें सबसे प्रमुख आर्थिक पहलू है.
1961 में कम हुई थी आबादी
चीन की जनसंख्या 1961 में आए विशाल सुखे के समय कम हो गई थी और उसके बाद से उसकी जनसंख्या में तेजी से इजाफा होने लगा था. यही वजह थी कि 1970 के दशक में बढ़ती जनसंख्या को लगाम लगाने के लिए चीन ने एक परिवार एक बच्चा की नीति लागू की थी. लेकिन छह साल पहले चलन उलटा होने पर उसने इस नीति को खत्म कर दिया था.
कितनी कमी आई है
चीन ने आधिकारिक तौर पर मंगलवार को ही ऐलान किया है कि उसकी आबादी में 8.5 लाख की कमी आई है. यह गिरावट कोविड-19 के कारण हो रही मौतों की संख्या की तुलना में पैदा हो रहे बच्चों की संख्या में कई लाख कम होने की वजह से है. चीन लंबे समय से अपनी एक परिवार एक बच्चा की नीति को सख्ती से लागू करने के लिए बदनाम रहा है.
पुरानी नीति का असर
एक परिवार एक बच्चा नीति की भी कई तरह के असर चीनी समाज पर पड़े हैं. वहां अब पुरुषों की संख्या लड़कियों की तुलना में ज्यादा हो गई और इसी के साथ बच्चे कम पैदा होने से बुजुर्गों की संख्या बहुत ही तेजी से बढ़ने लगी. यही वजह रही कि 2016 में चीन ने एक परिवार एक बच्चा की नीति खत्म की और लोगों को एक परिवार में तीन बच्चे पैदा करने की इजाजत दे दी.
प्रोत्साहन कार्यक्रम और उसके नतीजे
जब तक चीन ने 2016 अपने एक बच्चे की नीति को खत्म किया था, तब तक वहां की जन्मदर पिछली सदी के अंत की तुलना14.03 प्रति हजार बच्चे से केवल 6.77 रह गई थी. चीन ने वहां लोगों को कई प्रोत्साहन कार्यक्रम भी चलाए जिससे वे ज्यादा बच्चे पैदा करने के लिए प्रोत्साहित हो सकें, लेकिन वहां महंगी होती आजीविका और बूढ़ों की देखभाल की जरूरत की वजह से इन कार्यक्रमों के वांछित नतीजे नहीं मिल रहे हैं.
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क्या हो सकता है असर
संयुक्त राष्ट्र का अनुमान है कि चीन की जनसंख्या इस सदी के अंत तक 80 करोड़ तक कम हो सकती है. कई लोगों को लगता है की चीन का हाल जापान की तरह हो सकता है जहां के आर्थिक हालात गिरती जन्मदर और बूढ़ी होती जनसंख्या के कारण खराब होती जा रही है. इसी वजह से चीन को दुनिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनने के लिए अमेरिका को पीछे छोड़ने में दिक्कत हो सकती है.
करने होंगे बदलाव
विशेषज्ञों का कहना है कि इसके लिए चीन को अपने सामाजिक, आर्थिक, रक्षा और विदेश नीति में बदलाव करना होगा. फिलहाल चीन के आर्थिक विकास की धुरी अब भी श्रम आधारित निर्माण क्षेत्र पर टिकी हुई है. पिछले कई सालों से वह दुनिया भर में सस्ते श्रम की वजह से सस्ते उत्पाद प्रदान कर पा रहा है. लेकिन भारत, बांग्लादेश और वियतनाम जैसे देशों से उसे प्रतिस्पर्धा मिल रही है. लेकिन समय के साथ चीन के कार्यबल में कमी आने लगेगी जिससे चीन के उत्पादन कम प्रतिस्पर्धी हो जाएंगे
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इस समस्या को सुलझाने के लिए चीन को अपने कार्यबल की उत्पादकता बढ़ानी होगी, जिससे श्रमनिर्भर अर्थव्यवस्था एक नवाचार और तकनीकी संचालित वृद्धि वाली अर्थव्यवस्था बन सके. अगर चीन ने ऐसा नहीं किया तो वह मध्यमवर्ग के जाल में फंस कर रह जाएगा. उसे सार्वजनिक सस्थानों, शिक्षा तंत्र और देश की व्यापारिक संस्कृति में भारी सुधार करने होंगे. इसके अलावा चीन को वहां के आम लोगों के लिए जीविका सस्ती करने के उपाय भी खोजने होंगे जिससे लोग ज्यादा बच्चे पैदा करने में हिचक खत्म कर सकें.
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