जलवायु परिवर्तन (Climate Change) के प्रभावों के कारण दुनिया के सभी जानवर खुद को ढालने के प्रयास कर रहे हैं. यह बात अलग अलग शोधों में साबित ही की जा चुकी है. लेकिन इंसानों से (Humans) कुछ ज्यादा उम्मीदें हैं. पर क्या वे इन प्रभावों के कारण खुद में बदलाव कर रहे हैं? जहां सामाजिक और अन्य कारणों से बदलाव महसूस होने के साथ उनके लिए प्रयास भी किए जा रहे हैं, एक अध्ययन में पाया गया है कि जलवायु परिवर्तन के द्वारा लाए जा रहे बदलाव के अनुकूल ढलने (Adaptation) के मामले में इंसान व्यक्तिगत रूप से किए जा रहे प्रयास पर्याप्त नहीं हैं.
केवल समझना काफी नहीं
ग्लोबल एडाप्टेशन मैपिंग इनिशिएटिव (GAMI) के में अंतरराष्ट्रीय शोधकर्ता जलवायु परिवर्तन के लिए ढलने पर वैज्ञान्क साहित्य जमा कर उनका विशेष अध्ययन पर ध्यान लगाने का काम करता है. हाल ही में नेचर क्लाइमेट चेंज में प्रकाशित अध्ययन में शोधकर्ताओं ने पाया है कि मानव समाज तो जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को समझ रहा है, लेकिन लोग व्यक्ति स्तर पर ऐसा नहीं कर पा रहे हैं.
सुधार की बहुत जरूरत है
इस लेख के लेखकों में शामिल कॉन्कॉर्डा यूनिवर्सिटी के जियोग्राफी, प्लानिंग एंड एनवायर्नमेंट की एसिस्टेंट प्रोफेसर एलेक्जेंड्रा लेस्निकोवास्की ने इस बारे में वर्तमान साहित्य की जानकारी देते हुए कई ऐसे मामलों के बारे में बताया जहां सुधार के लिए वैश्विक बेहतरी की जरूरत है. यह ऐसे समय में ज्यादा जरूरी है जब जलवायु परिवर्तन के विनाशकारी प्रभाव, बढ़ते खर्च, विस्थापन जैसी समस्याएं साफ तौर पर दिख रहे हैं.
अनुकूलता की जरूरत
इन सब के बीच एक सच्चाई का सामाना करने की जरूरत है वह है इंसानों का इन बदलावों के हिसाब से ढलना या अनुकूलता. पूरे संसार में लोग उस जलवायु के साथ जीना सीखने की कोशिश रहे हैं जो पिछली पीढ़ीयों के समय के जैसी नहीं रही. इस शोध में 125 शोधकर्ताओं मशीन लर्निंग के जरिए 50 हजार वैज्ञानक दस्तावेजों का अनुकूलन के लिए अध्ययन किया जिसमें उन्होंने पाया कि 1682 लेखों में अनुकूलन लागू करने के संबंधी प्रतिक्रिया संबंधी विषयवस्तु है.
नतीजे नहीं मिले
शोधकर्ता इस नतीजे पर पहुंचे कि यह साहित्य दर्शाता है कि लोग जलवायु परिवर्तन के खतरों के प्रति प्रतिक्रिया दे रहे हैं, लेकिन इस बारे में कोई आंकड़े नहीं हैं जिससे पता चल सके कि क्या ये प्रतिक्रियाएं जोखिम को कम कर रहे हैं या नहीं हैं. उन्होंने यह भी पाया इन प्रतिक्रियाओं ने कोई बहुत प्रभावकारी बदालव लाने वाले नतीजे नहीं दिए हैं.
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केवल स्थानीय स्तर पर ही
लेस्निकोवस्की का कहना है कि इसमें कोई हैरानी की बात नहीं थी जब पता चला कि बहुत जिन अनुकूलनो का दस्तावेजीकरण हुआ वे बहुत ही स्थानीय स्तर पर थे जिसमें व्यक्तियों के साथ स्थानीय सरकार भी शामिल थी. लेकिन इससे यह पता जरूर चलता है कि एक असंतुलन जरूर बना है जिसमें स्थानीय स्तर पर तो काफी कुछ हो रहा है, लेकिन बड़े स्तर पर बहुत कम हो रहा है.इतना ही नहीं निजी क्षेत्र में अनुकूलन के लिहाज से ज्यादा शोध भी नहीं हुए हैं.
अलग जगहों पर अलग बात पर ध्यान
शोधकर्ताओं ने पाया कि अनुकूलन उपायों तकनीकों के मालमे में भी बहुत विविधता है. यूरोप और उत्तरी अमेरिका जहां अपने अनुकूलन प्रास अधोसंरचना और तकनीकी पर केंद्रित कर रहे हैं. अफ्रीका और एशिया के गरीब लोग बर्ताव और सांस्कृतिक पहलुओं पर ज्यादा जोर दे रहे हैं. यह भी पाया गया है कि बहुत से समाज जलवायु परिवर्तन के कारण किसी तरह का अनुकूलन बर्ताव में जुटे हैं जिसकी कारगरता प्रभावी तौर पर मापी नहीं जा सकी है.
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अध्ययन में साफ तौर पर माना गया है कि जहां जलवायु परिवर्तन के कारकों को कम पर तो जोर दिया जाता है पर उन प्रयासों को नतीजों और जलवायु परिवर्तन की अनुकूलता पर शोध तक कम हुए संपूर्ण जोखिम को कम करने नतीजों पर भी सीमित शोध हुए. इस दिशा में उठाए कदमों की कमी एक चिंता का विषय है.
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Tags: Climate Change, Environment, Research, Science