ग्लेशियर या हिमनद (Glacier) कई बार बहुत विनाशकारी रूप ले लेते हैं. लेकिन इसके अलावा भी इनका भौगोलिक प्रक्रियों में योगदान होता है. ग्लेशियर को बारे में माना जाता है कि उसकी बर्फ (Ice) ठोस लेकिन भुरभरी होती है. बर्फ की चादर में चट्टान की तरह छेद किया जा सकता है. ग्लेशियर भी चटक जाते हैं. उनसे बर्फ की सिल्लियां जैसे टुकड़े अलग हो जाते हैं. इससे बर्फीले पहाड़ों को आकार भी मिलता है. नए अध्ययन ने चौंकाने वाला खुलासा करते हुए इस धारणा को बदल दिया है. इसमें बताया गया है कि ग्लेशियर वास्तव में थोड़े दबाए जा सकते हैं और एक दलदल (Squishy) की तरह होते हैं.
घनत्व बढ़ जाता है
वॉशिंगटन यूनिवर्सिटी के इस शोध में दर्शाया गया है कि संपीड़न या दबे जाने के गुण के कारण ही अंटार्कटिका और ग्रीन लैंड जैसे इलाकों की विशाल बर्फ की चादरें ज्यादा घनत्व की हो जाती हैं. इतना ही नहीं, इसी वजह से इनकी सतह भी, जितनी उम्मीद की जाती है उससे, कई फुट नीचे कीओर बैठ जाती है.
सतह का नीचे चले जाना
पिछले सप्ताह ग्लेसियोलॉजी जर्नल में प्रकाशित अध्ययन के अनुसार अंटार्कटिका में जहां सतह 11.3 मीटर नीचे तक चली जाती है, वहीं ग्रीनलैंड में यह 5.8 मीटर तक नीचे चली जाती है. यूनिवर्सिटी के अर्थ एंडस्पेस साइंस के असिस्टेंट प्रोफेसर और अध्ययन के लेखक ब्राड लिपोविस्की ने कहा कि यह बिलकुल छिपी हुई बर्फ खोजने की तरह है. और हमने उस बर्फ के हिस्से को खोजा है जो सही तरह से जोड़ा नहीं गया था.
भारी मात्रा में बर्फ का दबना
पूरे अंटार्कटिका की बर्फ की चादर में सतह करीब 0.7 मीटर नीचे हो जाती है जो करीब 30200 गीगाटन की अतिरिक्त बर्फ के बराबर का क्षेत्र होता है. ग्रीन लैंड की सतह की चादर औसतन 0.8 मीटर नीचे चली जाती है. जिसमें तीन हजार गीगाटन की बर्फ समा सकती है. इस अध्ययन में शोधकर्ताओं ने इसकी वजह भी बताई.
अन्य कारक भी जिम्मेदार
शोधकर्ताओं का कहना है कि बर्फ की चादर पर इसका पूरा इल्जाम नहीं लगाया जा सकता. वह केवल आंशिक रूप से जिम्मेदार है. चूंकि ग्लेशियर का तापमान गहराई से बढ़ने लगता है. ऊष्मीय संपीड़न सतह के पास की ठंडी बर्फ को संघनित और दलदल की तरह नर्म या पिसा हुआ सा कर देता है.
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बढ़ जाता है वजन
गुरुत्वाकर्षण और ऊष्मीय संपीड़न का मिला जुला असर यही होता है कि बर्फ की चादर का कुल भार 0.2 प्रतिशत बढ़ जाता है. यह देखने में बहुत छोटा भाग लगता है, लेकिन इस प्रभाव को अलग ग्लेशियर संबंधी गणनों में शामिल किया जाए, तो समय के साथ ग्लेशियर के बदलाव बहुत बेहतर हो जाएंगे.
ठोस लेकिन फिर भी बहने वाली
इससे नए सैटेलाइट से किए गए ग्लेशियरों के वर्तमान सटीक मापन जलवायु परिवर्तन के लिहाज से किए जा रहे तुलनात्मक अध्ययन में बहुत मदद मिलेगी. लिपोवस्की का कहना है कि बर्फ का लंबे समय का प्रभाव बहने वाला है. वह थोड़ी फिसलती भी है लेकिन उसी समय यदि उस पर हथौड़े से प्रहार किया जाए तो वह छोटे अंतराल के लिए तो ठोस बन जाती है, लेकिन लंबे समय के लिहाज से बहने वाली ही रहती है.
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फिलहाल लंबी अवधि के जलवायु प्रतिमान संपीड़न को अपनी गणना में शामिल नहीं करते हैं जो अंटार्कटिका और ग्रीनलैंड जैसे इलाकों की विशाल बर्फीली चट्टानों के लिए एक बड़ा प्रभाव हो जाता है. लिपोवस्की कहते है कि लंबी अवधि के बहाव प्रतिमान बर्फ को असंपीडित की तरह मानते हैं. इतना ही नहीं बर्फ पिघलने से जो महासागरों के जलस्तर के अनुमान लगाए जा रहे हैं उसमें भी इजाफा देखने को मिलेगा. वे उम्मीद कर रहे हैं कि गणनाओं में इस सुधार को शामिल किया जाएगा.
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