लालबहादुर शास्त्री के निधन के बाद फिर सवाल खड़ा हो गया कि अगला प्रधानमंत्री कौन बनेगा. कांग्रेस में इस पद के लिए 03 दावेदार थे. मोरारजी देसाई खुले तौर पर पीएम पद पर अपना दावा ठोक रहे थे. गुलजारी लाल नंदा भी इस पद पर रहना चाहते थे. कांग्रेसी चाहते थे कि कामराज इस पद को संभालें. लेकिन एक चौथा भी था, जो चुपचाप खुद के नाम को चलवाकर कांग्रेसियों को मनाने में लगा था, वो थीं इंदिरा गांधी, जो बहुत चतुराई के साथ प्रधानमंत्री पद की दौड़ में लग चुकी थीं. 19 जनवरी 1966 को ये तय हो गया कि इंदिरा गांधी ही देश की तीसरी प्रधानमंत्री बनेंगी.
11 जनवरी 1966 को ताशकंद से आई एक बुरी खबर. दिल का दौरा पड़ने से प्रधानमंत्री लालबहादुर शास्त्री का निधन हो गया. वे पाकिस्तान के साथ युद्ध खत्म करने के समझौते के लिए सोवियत संघ गए थे. देश सन्नाटे में था. बड़ी मुश्किल से नेहरू के बाद कौन की गुत्थी सुलझी थी कि “शास्त्री के बाद कौन” का सवाल सामने आ गया. कांग्रेस अध्यक्ष के.कामराज प्रधानमंत्री पद के स्वाभाविक उम्मीदवार थे, लेकिन न उन्हें हिंदी आती थी न अंग्रेजी. आखिर देश से संवाद कैसे करते?
इंदिरा को काफी चुनौतियां झेलनी पड़ीं
बतौर प्रधानमंत्री इंदिरा की शुरुआत अच्छी नहीं हुई. 1967 के चुनाव में डॉ. राम मनोहर लोहिया के गैरकांग्रेसवाद का नारा खूब चला और गुटों में बंटी कांग्रेस पहले के मुकाबले 60 सीटें खोकर 297 पर सिमट गई. कई राज्यों में संयुक्त विधायक दल की सरकारें बनीं. नेहरू जी के साथ प्रधानमंत्री आवास में कई बरस बिता चुकीं इंदिरा ने समझ लिया कि ताकतवर होने के अलावा कोई दूसरा रास्ता नहीं. उन्होंने मोरारजी के नेतृत्व में गोलबंद पार्टी के परंपरावादियों को चुनौती दी.
पार्टी तोड़कर वामपंथियों के सहयोग से सरकार चलाई
समाजवादी धड़ा उनके साथ था. उन्होंने 1969 में बैंकों का राष्ट्रीयकरण किया और पूर्व रियासतों को दिया जाने वाला प्रीवीपर्स खत्म कर दिया. वह पार्टी से अलग अपनी शख्सियत बनाने में जुट गईं. 1969 में राष्ट्रपति पद के लिए कांग्रेस के अधिकृत उम्मीदवार नीलम संजीवा रेड्डी के खिलाफ वी.वी.गिरी को समर्थन देकर जिता दिया. नतीजा पार्टी टूट गई लेकिन इंदिरा ने समाजवादियों और वामपंथियों के सहयोग से अगले दो साल तक सरकार चलाई.
रियासतों के विशेषाधिकार खत्म कराए
माखनलाल फोतेदार ने एक बार कहा था कि रियासतों के भारत में विलय के बावजूद विशेषाधिकार थे. इंदिरा गांधी ने संसद में बिल पास करवाकर उन्हें हटवाया. कहा गया कि इंदिरा ने भारत को दूसरी बार आजाद करवाया.
इंदिरा के नेतृत्व में अब एक नई कांग्रेस सामने थी. वे देश को आत्मनिर्भर बनाने, गरीबी और बेरोजगारी दूर करने का सपना दिखा रही थीं. कांग्रेस के युवा तुर्क ही नहीं, वामपंथी भी इंदिरा के जरिए भारत में समाजवादी क्रांति का सपना देखने लगे. लेकिन इसी के साथ संगठन बतौर कांग्रेस का क्षरण शुरू हो गया. इंदिरा गांधी संगठन के फैसलों के खिलाफ जाकर लोकतंत्र की नई परिभाषा गढ़ रही थीं. आगे चलकर ये कांग्रेस ही नहीं लोकंतंत्र के लिए भी घातक सिद्ध हुआ.
‘गरीबी हटाओ’ के नारे से हो गए वारे न्यारे
इंदिरा गांधी ने 1971 में पाकिस्तान को ही नहीं, देश में अपने विरोधियों को भी निर्णायक मात दी. गरीबी हटाओ का उनका नारा मतदाताओं के सिर चढ़कर बोला. अगले कुछ साल उपलब्धियों के रहे और 1974 में पोखरण में परमाणु विस्फोट करके उन्होंने पूरी दुनिया को चौंका दिया.
इंदिरा गांधी के गरीबी हटाओ नारे ने 1971 के बसंत में ऐसी बयार उठाई जो उनके विरोधियों को तिनके की तरह उड़ा ले गई. पहली बार लोकसभा के चुनाव विधानसभा चुनाव से पहले हो रहे थे. बैंकों के राष्ट्रीयकरण और प्रिवीपर्स खत्म कर देने जैसे कदमों को अदालती जंजीर में कसने की कोशिश के खिलाफ इंदिरा ने कार्यकाल खत्म होने के 14 महीने पहले ही लोकसभा भंग करने की सिफारिश कर दी थी. मार्च में हुए इस चुनाव में गरीबी हटाओ का नारा मतदाताओं के सिर जादू की तरह चढ़ गया. इंदिरा ने गरीबी और बेरोजगारी से आजाद भारत के सपने की ऐसी बड़ी लकीर खींची की बाकी सभी छोटे पड़ गए.
चुनावों में इंदिरा ने बहुत मेहनत की
इस चुनाव में इंदिरा ने दिन-रात एक कर दिया. वे इंदिरा कांग्रेस का अकेला चेहरा थीं. प्रचार के दौरान उन्होंने 36,000 मील की दूरी तय की और 300 सभाओं को संबोधित किया. गरीबों, भूमिहीनों, मुस्लिम और दलित वर्ग का पूरा वोट इंदिरा कांग्रेस के खाते में गया. इंदिरा को 352 सीटों के साथ दो तिहाई बहुमत मिला. संगठन कांग्रेस 16 सीटों पर सिमट गई.
लगातार बढ़ता गया उनका कद
इंदिरा के सामने अब कोई चुनौती नहीं थी. कहा जाने लगा कि मंत्रिमंडल में वे अकेली मर्द हैं. हर उपलब्धि के साथ उनका कद पहले से ऊंचा होता गया. और जब 1974 में भारत ने विकसित देशों के दबाव को दरकिनार करके पोखरण में पहला परमाणु विस्फोट किया तो दुनिया दंग रह गई. दक्षिण एशिया में इंदिरा के नेतृत्व में एक ऐसी शक्ति का उदय हुआ था जिसकी ओर कोई आंख उठाकर नहीं देख सकता था. इंदिरा देशभक्ति का पर्याय बन गईं. इसके आगे की कहानी इमरजेंसी, सरकार गंवाने और फिर सरकार बनाने के बाद ऑपरेशन ब्लू स्टार तक जाती है. इस ऑपरेशन के बाद इंदिरा गांधी को अपनी जान गंवानी पड़ी थी.
इंदिरा अनुशासन के साथ कभी कोई समझौता नहीं करती थीं. घर की सजावट से लेकर रिश्तों की बनावट तक, हर चीज को वे पाबंदी के साथ दुरुस्त रखना चाहती थीं. ये शायद देश को अपने लिहाज से दुरुस्त करने की ख्वाहिश ही थी, जो उन्हें इमरजेंसी जैसे बेहद अतिवादी कदम की तरफ लेकर चली गई.
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Tags: Indira Gandhi, Lal Bahadur Shastri, Prime Minister of India
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