कोहराम मचाते कोरोना संक्रमण को कम करने का फिलहाल टीकाकरण ही सबसे बेहतर तरीका दिख रहा है. भारत समेत कई देशों ने टीके विकसित भी कर लिए लेकिन समस्या ये हो रही है कि अब भी टीकों का बंटवारा समान नहीं दिख रहा. अमीर मुल्कों में जहां बड़ी संख्या में वैक्सिनेशन के साथ मास्क तक पर ढिलाई दी जा चुकी, वहीं कई देश ऐसे भी हैं, जहां अब तक टीकाकरण शुरू तक नहीं हो सका है.
क्या कह रहे हैं एक्सपर्ट
अप्रैल के अंत में विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के प्रमुख डॉ. टेड्रोस अधानोम गेब्रेसस ने वैक्सीन को लेकर अपनी चिंता जताते हुए बताया कि अमीर देशों के पास लगभग 82% वैक्सीन है, वहीं गरीब देशों के पास कुल मिलाकर केवल 0.3% ही खुराक है. अलग-अलग रिपोर्ट्स में ये बात निकलकर भी आ रही है कि किस तरह से अमीर देशों में इस बात पर बहस चल रही है कि कौन सी वैक्सीन सबसे बढ़िया है. वहीं आर्थिक तौर पर कमजोर देश पूरी तरह से विकल्पहीन हैं.
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चाड में अस्पताल स्टाफ भी बगैर टीके के
मध्य अफ्रीकी देश चाड दुनिया के कुछ सबसे गरीब देशों में से है. इस देश का एक तिहाई हिस्सा सहारा रेगिस्तान में आता है. यहां अब तक वैक्सीन नहीं पहुंच सकी है. यहां तक कि डॉक्टर और अस्पताल का बाकी स्टाफ भी अब तक बगैर टीकाकरण के ही मरीजों का इलाज करने को मजबूर है. उन्हें इस बात की जानकारी भी नहीं कि कब तक वैक्सीन उन तक पहुंच सकेगी.

अफ्रीकी देशों में ये भी डर है कि म्यूटेशन के कारण ज्यादा घातक हो चुके कोरोना वायरस पर कौन सी वैक्सीन सबसे बेहतर काम करेगी- सांकेतिक फोटो (pixabay)
ये देश हैं टीके से वंचित
WHO की मानें तो लगभग एक दर्जन देशों में अब तक टीके की एक खेप भी नहीं पहुंच सकी है. इनमें से ज्यादातर देश अफ्रीकी हैं. बुर्किना फासो, तंजानिया, बुरुंदी और इरिट्रिया इनमें से कुछ देश हैं. हालांकि इन देशों में कोरोना का ग्राफ उतना ऊंचा नहीं लेकिन जितने भी मामले हैं, वही आर्थिक तौर पर कमजोर इन देशों को और कमजोर बना देने के लिए काफी हैं. यहां के लोग व्यापार के लिए दुनिया के किसी हिस्से में ट्रैवल नहीं कर सकते क्योंकि उनका टीकाकरण नहीं हो सका है. इसके अलावा स्वास्थ्य सुविधाएं कमजोर होने के कारण यहां अब भी बड़े हिस्से खुद ही लॉकडाउन लगाए हुए हैं ताकि व्यवस्था एकदम चरमरा न जाए.
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क्या कर रहा है कोवैक्स
संयुक्त राष्ट्र (UN) की मदद से एक प्रोग्राम कोवैक्स (COVAX) तैयार किया गया था. वैक्सीन बनने से पहले तैयार हुए इस प्रोग्राम का मकसद था कि गरीब और मध्यम आय वाले देशों तक वैक्सीन पहुंच सके. हालांकि इसका भी उतना असर नहीं दिख रहा. फिलहाल तक ज्यादातर अफ्रीकी देश वैक्सीन का इंतजार ही कर रहे हैं. साथ ही वहां ये भी डर है कि म्यूटेशन के कारण ज्यादा घातक हो चुके कोरोना वायरस पर कौन सी वैक्सीन सबसे बेहतर काम करेगी.

इन देशों तक वैक्सीन पहुंच भी जाए तो उसका भंडारण एक बड़ी समस्या होने जा रही है- सांकेतिक फोटो (pixabay)
वैक्सीन के स्टोरज की व्यवस्था उतनी बढ़िया नहीं
इन देशों तक वैक्सीन पहुंच भी जाए तो उसका भंडारण एक बड़ी समस्या होने जा रही है. बता दें कि कोरोना वैक्सीन को काफी कम तापमान पर स्टोर करना होता है ताकि उसका असर बना रहे. कम ही अफ्रीकी देशों में ये सुविधा है. वैसे भी यहां औसत तापमान ही लगभग 44 डिग्री तक रहता है, ऐसे में ये समस्या और गहरा सकती है.
ये हैं हैती के हाल
इसी तरह से हैती की बात करें तो 11 मिलियन आबादी वाले इस देश में भी अब तक वैक्सीन नहीं पहुंच सकी है. वैसे भी ये देश पहले से ही लगातार प्राकृतिक आपदाओं का शिकार होता रहा है. इसपर कोरोना की मार ने इसे और हलाकान कर रखा है. यहां के हेल्थ वर्कर बिना वैक्सिनेशन के ही लोगों का इलाज करने को मजबूर हैं.
भंडारण का बंदोबस्त न होने के कारण खुद ही कर दिया इनकार
हैती में कोवैक्स प्रोग्राम के तहत वैसे तो एस्ट्राजेनेका की 756,000 खुराकें देने का वादा किया गया लेकिन इस देश ने खुद ही हाथ खड़े कर दिए. इंडिया टुडे की एक रिपोर्ट के मुताबिक यहां की सरकार ने बताया कि उनके पास इसके स्टोरेज की क्षमता नहीं है. साथ ही यहां से सिंगल डोज वैक्सीन की मांग आई ताकि इस मुश्किल को कुछ हद तक कम किया जा सके.
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FIRST PUBLISHED : May 24, 2021, 08:04 IST