इस राज्य में सबसे ज्यादा होता है दलितों पर अत्याचार

दलित अत्याचार के मामलों पर एनसीआरबी ने ताजा आंकड़े जारी किए हैं
दलितों के खिलाफ अत्याचार (Dalit Atrocities) के मामलों पर नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) ने आंकड़े जारी किए हैं. दलितों के खिलाफ अत्याचार के मामलों में कहीं से कोई कमी नहीं आई है...
- News18Hindi
- Last Updated: October 22, 2019, 12:49 PM IST
अभी हाल ही में सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने एससी-एसटी एक्ट (SC-ST Act) के अपने 2018 के फैसले को पलटा है. 2018 में सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा था कि 'हाल के दिनों में एससी-एसटी एक्ट के दुरुपयोग के गंभीर मामले सामने आए हैं. इसलिए एक्ट के तुरंत गिरफ्तारी और बिना जांच के एफआईआर लिखने के प्रावधान को खत्म किया जाए.' 2018 के सुप्रीम कोर्ट के फैसले ने एक्ट को कमजोर कर दिया था. दलित संगठनों के विरोध के बाद सरकार एक बिल लाकर एक्ट को दोबारा से उसके पुराने स्वरूप में लेकर आई. सुप्रीम कोर्ट ने भी सितंबर में अपने फैसले को पलटते हुए एक्ट को पुराने स्वरूप में मंजूर किया.
सुप्रीम कोर्ट ने एससी-एसटी एक्ट के दुरुपयोग का हवाला देकर इसके प्रावधानों में तब्दिली की थी. सवाल है कि क्या सच में इसका दुरुपयोग हो रहा है? क्या दलितों पर अत्याचार गुजरे जमाने की बात हो चुकी है? क्या अनुसूचित जाति-जनजाति को अब किसी एक्ट की सुरक्षा की जरूरत नहीं रह गई है? इन सारे सवालों के जवाब नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो के ताजा आंकड़े से मिलता है.
एनसीआरबी ने दलितों के खिलाफ हो रहे अत्याचार (Dalit Atrocities) के ताजा आंकड़े देश के सामने रखे हैं. आंकड़े बताते हैं कि दलितों के खिलाफ अत्याचार में कहीं से कोई कमी नहीं आई है. एससी-एसटी के खिलाफ क्राइम (SC-ST Atrocities) पिछले वर्षों की तुलना में बढ़े हैं. जातीय आधार पर आज भी दलितों के साथ अत्याचार हो रहा है.
हर साल बढ़ रहे हैं दलित अत्याचार के मामलेएनसीआरबी ने 2017 में हुए दलित अत्याचार से संबंधित आंकड़े जाहिर किए हैं. इसके मुताबिक 2017 में दलित अत्याचार के 43,200 मामले दर्ज हुए. 2016 में यही आंकड़ा 40,801 का था, जबकि 2015 में दलित अत्याचार के 38,670 मामले दर्ज हुए थे. साल दर साल इसमें बढ़ोत्तरी ही हो रही है. कहीं से भी ये नहीं कहा जा सकता कि दलित अत्याचार के मामले अब गुजरे जमाने की बात हो चुकी है.

दलित अत्याचार में उत्तर प्रदेश का स्थान टॉप पर है. 2017 में यूपी में सबसे ज्यादा 11,000 दलित अत्याचार के मामले दर्ज किए गए. इसके बाद बिहार का नंबर आता है, जहां दलित अत्याचार के 6,700 मामले सामने आए. मध्य प्रदेश में इसका आंकड़ा 5,800 का रहा.
एक साल के दौरान हरियाणा में सबसे ज्यादा दलित अत्याचार के मामले बढ़े. हरियाणा में एससी एट्रोसिटी में 20 फीसदी की बढ़ोत्तरी दर्ज की गई. इस लिहाज से मध्य प्रदेश दूसरे नंबर पर रहा. हरियाणा में 2017 में दलित अत्याचार के 762 मामले दर्ज हुए, वहीं 2016 में ये आंकड़ा 639 था. एक साल में 19.24 फीसदी की बढ़त हुई. 2016 में भी यहां दलित अत्याचार के मामलों में 25 फीसदी की बढ़त रही थी. 2015 में यहां दलित अत्याचार के 510 मामले दर्ज किए गए थे.
इसलिए कमजोर नहीं किया गया एससी-एसटी एक्ट
ये हाल उस राज्य का है, जहां दलितों की संख्या अच्छी खासी है. हरियाणा में 22 फीसदी दलित वोटर्स हैं. ये जाट वोटर्स (29 फीसदी) के बाद दूसरा सबसे बड़ा वोटर्स समूह है. राज्य की कुल 90 विधानसभा सीटों में से 17 सीटें अनुसूचित जाति रिजर्व हैं. इसके बावजूद दलित अत्याचार के मामलों में कोई कमी नहीं आई है. हरियाणा में जितने दलित हैं उतने ही उनपर अत्याचार के मामले सामने आ रहे हैं.

एनसीआरबी के साल दर साल के आंकड़े बताते हैं कि दलित अत्याचार के मामले कहीं से भी कम नहीं हो रहे हैं. 2016 में हर दस लाख की आबादी पर अत्याचार के 214 मामले सामने आए थे. एक साल पहले 2015 में यही आंकड़ा 207 का था.
दलित अत्याचार के मामलों का स्वभाव भी पहले की तरह का है. इसमें भी बदलाव नहीं आया है. मसलन 2017 में दलित अत्याचार के पहले कुछ मामलों में यूपी की एक ऐसी घटना थी, जिसमें तीन दलितों की सिर्फ इसलिए पिटाई की गई थी क्योंकि उन तीनों ने ऊंची जाति के लोगों को राम-राम नहीं कहा था. जातीय अत्याचार के ऐसे मामले हरियाणा, मध्य प्रदेश, बिहार और राजस्थान जैसे राज्यों में सामने आते रहते हैं.
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सुप्रीम कोर्ट ने एससी-एसटी एक्ट के दुरुपयोग का हवाला देकर इसके प्रावधानों में तब्दिली की थी. सवाल है कि क्या सच में इसका दुरुपयोग हो रहा है? क्या दलितों पर अत्याचार गुजरे जमाने की बात हो चुकी है? क्या अनुसूचित जाति-जनजाति को अब किसी एक्ट की सुरक्षा की जरूरत नहीं रह गई है? इन सारे सवालों के जवाब नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो के ताजा आंकड़े से मिलता है.
एनसीआरबी ने दलितों के खिलाफ हो रहे अत्याचार (Dalit Atrocities) के ताजा आंकड़े देश के सामने रखे हैं. आंकड़े बताते हैं कि दलितों के खिलाफ अत्याचार में कहीं से कोई कमी नहीं आई है. एससी-एसटी के खिलाफ क्राइम (SC-ST Atrocities) पिछले वर्षों की तुलना में बढ़े हैं. जातीय आधार पर आज भी दलितों के साथ अत्याचार हो रहा है.

2017 में दलित अत्याचार के सबसे ज्यादा मामले यूपी में दर्ज किए गए
दलित अत्याचार में उत्तर प्रदेश का स्थान टॉप पर है. 2017 में यूपी में सबसे ज्यादा 11,000 दलित अत्याचार के मामले दर्ज किए गए. इसके बाद बिहार का नंबर आता है, जहां दलित अत्याचार के 6,700 मामले सामने आए. मध्य प्रदेश में इसका आंकड़ा 5,800 का रहा.
एक साल के दौरान हरियाणा में सबसे ज्यादा दलित अत्याचार के मामले बढ़े. हरियाणा में एससी एट्रोसिटी में 20 फीसदी की बढ़ोत्तरी दर्ज की गई. इस लिहाज से मध्य प्रदेश दूसरे नंबर पर रहा. हरियाणा में 2017 में दलित अत्याचार के 762 मामले दर्ज हुए, वहीं 2016 में ये आंकड़ा 639 था. एक साल में 19.24 फीसदी की बढ़त हुई. 2016 में भी यहां दलित अत्याचार के मामलों में 25 फीसदी की बढ़त रही थी. 2015 में यहां दलित अत्याचार के 510 मामले दर्ज किए गए थे.
इसलिए कमजोर नहीं किया गया एससी-एसटी एक्ट
ये हाल उस राज्य का है, जहां दलितों की संख्या अच्छी खासी है. हरियाणा में 22 फीसदी दलित वोटर्स हैं. ये जाट वोटर्स (29 फीसदी) के बाद दूसरा सबसे बड़ा वोटर्स समूह है. राज्य की कुल 90 विधानसभा सीटों में से 17 सीटें अनुसूचित जाति रिजर्व हैं. इसके बावजूद दलित अत्याचार के मामलों में कोई कमी नहीं आई है. हरियाणा में जितने दलित हैं उतने ही उनपर अत्याचार के मामले सामने आ रहे हैं.

2017 में दलित अत्याचार के सबसे ज्यादा मामले हरियाणा में सामने आए
एनसीआरबी के साल दर साल के आंकड़े बताते हैं कि दलित अत्याचार के मामले कहीं से भी कम नहीं हो रहे हैं. 2016 में हर दस लाख की आबादी पर अत्याचार के 214 मामले सामने आए थे. एक साल पहले 2015 में यही आंकड़ा 207 का था.
दलित अत्याचार के मामलों का स्वभाव भी पहले की तरह का है. इसमें भी बदलाव नहीं आया है. मसलन 2017 में दलित अत्याचार के पहले कुछ मामलों में यूपी की एक ऐसी घटना थी, जिसमें तीन दलितों की सिर्फ इसलिए पिटाई की गई थी क्योंकि उन तीनों ने ऊंची जाति के लोगों को राम-राम नहीं कहा था. जातीय अत्याचार के ऐसे मामले हरियाणा, मध्य प्रदेश, बिहार और राजस्थान जैसे राज्यों में सामने आते रहते हैं.
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