जलवायु परिवर्तन अरब सागर के पानी की सतह की फूड चेन को प्रभावित कर रहा है.
नई दिल्ली: क्या हिमालय (Himalaya) का अरब सागर (Arabian Sea) किनारे रह रे समुद्री जीवों से कोई संबध है. इसका जवाब तो ना में होना चाहिए, लेकिन एक शोध ने दोनों के बीच खास संबंध निकाला है और एक खतरा का अंदेशा भी देखा है. शोध में पाया गया है कि दुनिया की सबसे ऊंची पर्वतमाला से बर्फ का पिघलने का संबंध अरब सागर के तटीय पानी की खाद्य श्रृंखला (Food Chain) पर असर हो रहा है.
कैसे हो रहा है असर
शोध के मुताबिक हिमालय में कम हो रही बर्फ के कारण दूसर तटीय पानी की खाद्य श्रृंखला में खतराक बदलाव हो रहे हैं और इसका अंतिम कारण ग्लोबल वार्मिंग ही है. जिस तरह एक माली बागों में पेड़ के आसपास की मिट्टी ऊपर नीचे करता है. उसी तरह हिमालय से आने वाली ठंडी हवा अरब सागर की सतह को ठंडी करती है जिससे घना पानी नीचे चला जाता है और ताजा पोषणो से भरपूर लहरें उसकी जगह ले लेती है.
दूसरे तरह के जीव पनपने लगे हैं यहां
जलवायु परिवर्तन के प्रभाव पर खास रोशनी डालता हुआ यह शोध नेचर साइंटिफक रिपोर्ट्स में प्रकाशित हुआ है. जलवायु परिवर्तन के कारण शीतकालीन मानसून जल्दी है गर्म और आर्द्र वाले होते जा रहे हैं जिसकी वजह से समुद्री आवास में ऑक्सीजन और पोषण की कमी होने लगी है. इससे बिना ऑक्सीजन वाले भूमि में सूक्ष्मजीव पनपने लगे हैं. हाल ही इसकी मात्रा इतनी ज्यादा बढ़ गई कि यहां हरे शैवाल (एल्गी) की मोटी परतें अंतरिक्ष तक से दिखाई देने लगी हैं.
अरब सागर में तेजी से पनप रहा है ये
इसे नॉटिलूका सिंटिलांस कहते हैं. इसके चमकीले प्रभाव के कारण इस सी स्पार्कल (Sea Sparkle) भी कहते हैं. यह जीव एक मिलीमीटर लंबा समुद्री डाइनोप्लैगेलेट होता है. यह बिना ऑक्सीजन और सूर्य की रोशनी के पनप सकता है. पिछली सदी के अंत तक यह सोमालिया, यमन और ओमान में दिखाई नहीं देता था लेकिन आज यह बहुत बड़े पैमाने पर पनप चुके हैं. शोधकर्ताओं का मानना है कि अरब सागर में इसके पनपने का संबंध जलवायु परिवर्तन से है.
यह जलवायु परिवर्तन के सबसे नाटकीय नतीजों में से एक
कोलंबिया यूनिवर्सी के शोधकर्ताओं का मानना है कि यह जलवायु परिवर्तन का सबसे नाटकीय परिवर्तनों में से एक है. अभी तक इस तरह के नॉक्टिलुका दक्षिण पूर्व एशिया के देशों में देखे गए हैं जिसमें थाईलैंड, वियतनाम और सेशेल्स के तट शामिल हैं. जहां भी यह पनपती है तो यह समस्या बन जाती है. यह पानी की गुणवत्ता को प्रभावित करती है और इससे काफी संख्या में मछली मरती हैं.
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Tags: Climate Change, Global warming, Research, Science
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