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Explainer : नोएडा ट्विन टॉवर को गिराने से फैलने वाली धूल और धुएं का गुबार दे सकता है कैसी बीमारियों को जन्म

Noida: सुपरटेक के ट्विन टॉवर को गिराने की सभी तैयारियां पूरी

Noida: सुपरटेक के ट्विन टॉवर को गिराने की सभी तैयारियां पूरी

नोएडा में 28 अगस्त को ट्विन टॉवर को भारी मात्रा में विस्फोटकों के लिए जरिए धराशाई किया जाएगा. इस प्रक्रिया में भारी मात ...अधिक पढ़ें

हाइलाइट्स

नोएडा में ट्विन टॉवर को धराशाई करने के लिए मेट्रोलॉजिकल से लेकर एनवायरमेंट पर भी असर
टॉवर गिरने से कई तरह के फैक्टर्स आंखों से लेकर सांस की बीमारियों तक को दे सकते हैं जन्म
बचाव के लिए मास्क जरूर पहनें और आंखों पर चश्मा भी लगाएं

पिछले साल सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद अब 28 अगस्त को नोएडा में ट्विन टॉवर को भारी मात्रा में विस्फोटकों के जरिए गिराया जाना तय हो चुका है. ट्विवन टॉवर काफी बड़ी इमारत है लिहाजा इसको गिराए जाने पर भारी मात्रा में धुल और धुएं का गुबार आसमान पर छा सकता है. जबरदस्त आवाज और कुछ क्षणों के लिए कंपन जैसी स्थितियां भी पैदा हो सकती हैं. हालांकि अब तक सरकार या प्रशासन की ओर से इस मामले में स्वास्थ्य को लेकर सतर्क रहने संबंधी कोई एडवाइजरी जारी तो नहीं हुई है लेकिन इस ऊंची बिल्डिंग का डेमोलेशन कई तरह से स्वास्थ्य के लिए चिंताजनक पहलू बन सकता है.

इसे लेकर हमारी एक्सपर्ट्स से बात हुई. उसमें सांस संबंधी बीमारियों के विशेषज्ञ शामिल हैं तो पर्यावरण विशेषज्ञ भी. अमरेकी सरकार की एक रिपोर्ट का हवाला हम इसमें देंगे कि ऐसे हालात में दुनियाभऱ में क्या सावधानियां बरती जाती रही हैं. कुछ साल पहले चीन ने एक साथ 15 हाइराइज बिल्डिंग्स को धराशाई किया था, तब भी ये बहुत ज्यादा चर्चा का विषय बना था.

एक्सपर्ट का कहना है कि जब नोएडा का ट्विन टॉवर को धराशाई किया जाएगा, उस समय काफी हद इसका पर्यावरणीय और स्वास्थ्य प्रभाव इस पर भी काफी हद तक निर्भर करेगा कि हवा उस समय कैसी बह रही है और उसका रुख किस ओर है. साथ ही मौसम कैसा है. अगर मौसम बारिश का हुआ तो काफी हद तक पर्यावरण और स्वास्थ्य को लेकर असर काफी हद तक काम हो जाएगा.

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हवा तेज चली तो दूर तक फैलेंगे धूल और धुएं के कण
हकीकत ये है कि अगर ट्विवन टावर को धराशाई किए जाते समय मौसम और हवा का रुख नार्मल नहीं रहा तो धूल के हल्के और बारीक कण काफी दूर तक फैल सकते हैं और इससे सांस संबंधी बीमारियां हो सकती हैं या फिर इस तरह की बीमारियों से ग्रस्त लोगों के लिए दिक्कत और ज्यादा बढ़ जाएगी.
इसी तरह आंखों से लेकर कान की समस्या भी हो सकती है. इसलिए डेमोलिश की जाने वाली इमारत की आसपास की रिहायशी बस्तियों और आफिसों में काम करने वाले लोगों को कई घंटों के लिए इस जगह को खाली कर देना चाहिए और इससे दूर चले जाना चाहिए.
हालांकि जब सुप्रीम कोर्ट ने ट्विन टॉवर को गिराने का फैसला दिया था, तब इन्हीं सब बातों के मद्देनजर आसपास के सेक्टर्स की आरडब्ल्यूए सोसायटीज ने ब्लास्ट के असर को लेकर चिंता जाहिर की थी.

जहां भी डेमोलेशन होता है, इलाके में कई तरह की दिक्कतें पैदा होती हैं
पहले हम ये जानते हैं कि इस तरह विध्वंस में आमतौर पर क्या होता है और फिर विशेषज्ञों की बातों पर चर्चा करेंगे. दुनियाभऱ में जहां कहीं भी बडे़ डेमोलेशन होते हैं वहां धूल और धुआं एक बड़ी समस्या बनते हैं. साथ ही मलबा हटाने के लिए लगातार भारी मशीनों की आवाजों का भी आसपास के इलाके के निवासियों पर खराब असर पड़ता है.

बिल्डिंग निर्माण में एस्बेसटास और केमिकल इस्तेमाल का प्रतिकूल प्रभाव
आमतौर पर धूल के वो कण जो भारी होते हैं वो तो कुछ घंटे में हवा में ऊपर उड़कर नीचे आ जाते हैं लेकिन हल्के और माइक्रो कण दूर तक की सैर करके अपना असर पर्यावरण और स्वास्थय पर डालते रहते हैं. बिल्डिंग्स में कई तरह के मटीरियल्स का इस्तेमाल होता है जिसमें एसबेस्टस से लेकर केमिकल तक होता है, उनका भी प्रतिकूल असर होता है.

कैसे बचाव करें 
अमेरिका सरकार की एक रिपोर्ट में इसमें बचाव के लिए कुछ बातों पर जोर दिया गया है. जिसमें कानों में ईयरप्लग से लेकर आवाजरोधी प्ल्ग्स लगाने की बात कही गई है. आंखों पर चश्मा लगाना जरूरी बताया गया है और धूल से बचाव के लिए हर हाल में मास्क जरूर लगाएं. अगर मास्क की जगह गीला रूमाल भी नाक और मुंह पर ढंक लेंगे तो धुल के श्वांस नली में घुसने से बचाव हो जाएगा.

पर्यावरण के लिए क्यों चिंता का विषय 
आमतौर पर जब बिल्डिंग गिरती हैं तो उनसे भारी भरकम आवाज और कंपन होता है लेकिन शुक्र की बात है कि आजकल की तकनीक में विस्फोटक इसतरह लगाए जाते हैं कि कुछ सेकेंड्स में ही पलक झपकते बड़ी से बड़ी बिल्डिंग भी धराशाई हो जाती है. मलबे में बहुत सी चीजों को जलाया भी जाता है जो अपने आप में पर्यावरण के लिए चिंता का विषय होता है.

भारी मशीनों का मूवमेंट कंपन फील कराती है
कई बार जिन भारी भरकम मशीनों को मलबा उठाने के लिए या मलबे की बड़ी संरचनाओं को काटने के लिए बुलाया जाता है वो अपने मूवमेंट से कंपन का अहसास कराती हैं, जो हैंड वाइब्रेशन सिंड्रोम जैसी बीमारी की भी वाहक हो सकती है. जो भी वर्कर्स डेमोलेशन स्थल पर होते हैं. उन्हें कान, आंख, सिर, हाथ और पैरों के प्रोटेक्टर के साथ पीपीई किट पहनने की सलाह दी जाती है.

सांस की बीमारियां हो सकती हैं
पर्यावरण संस्था सीएसई यानि सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरमेंट से जुड़े पर्यावरण एक्सपर्ट विवेक चटोपाध्याय का कहना है कि ये तो तय है कि नोएडा में जो ऊंची बिल्डिंग गिराई जा रही है, उसका पर्यावरण असर तो होगा ही लेकिन ये कितना होगा ये देखने वाली बात होगी. उन्होंने कहा कि कई बात धूल के कण इतने सघन होते हैं कि दूर तक फैल जाते हैं. हालांकि ये कितनी दूर तक और कैसे फैलेगा वो हवा की तत्कालीन स्थिति पर निर्भर करेगा.

उन्होंने कहा कि इसका असर सांस पर हो सकता है लिहाजा मास्क जरूर लगाएं. खासकर कार्डियो, अस्थमा और सांस से जुड़ी दूसरी बीमारियों के लोगों को खासकर ख्याल रखना चाहिए. वो या तो इस एरिया से कुछ समय के लिए निकल जाएं या फिर अपने घरों में पूरी तरह बंद हो जाएं.

मलबा जब साफ होगा तो पत्थरों और बड़ी संरचनाओं को जिस तरह काटा जाएगा, वो अपने आपमें बीमारियों के लिए न्योता हो सकता है. जिनके लंग्स में पहले से प्रॉब्लम है, उन्हें बहुत सावधानी बरतनी चाहिए. छोटे कण सिलिकोसिस जैसी गंभीर बीमारी भी दे सकते हैं.  इस टॉवर के सामने ही वर्ड सेंचुरी भी है, लिहाजा वहां की बर्ड्स के लिए ये काफी घातक हो सकता है.

मास्क जरूर पहनें और चश्मे का भी इस्तेमाल करें
सफदरजंग हास्पिटल में रेस्पेटिरी डिपार्टमेंट के प्रमुख और श्वांस रोग विशेषज्ञ प्रोफेसर नीरज गुप्ता का भी कहना है कि काफी हद तक बिल्डिंग को डेमोलेशन करते समय ये देखना होगा कि हवा की गति उस समय कैसी रहती है, वो कैसी बह रही है, आमतौर पर धूल में हल्के पार्टिकल्स और सिलिका पार्टिकल्स दूर तक जाते हैं और श्वांस संबंधी दिक्कतें पैदा कर सकते हैं.

उन्होंने सलाह दी कि मास्क जरूर पहनें औऱ आंखों पर चश्मे का भी इस्तेमाल करें, इससे धूल और गुबार का असर काफी हद तक कम हो सकेगा. लेकिन तो पक्का है कि सांस संबंधी जो रोगी इस इलाके के आसपास रह रहे हैं उनके लिए बिल्डिंग धराशाई होने के बाद धूल का फैलना ट्रिगर का काम करेगा. खांसी बढ़ सकती है. लिहाजा डबल लेयर या ट्रिपल लेयर मास्क जरूर लगाएं. हालांकि एक दो दिनों के बाद धूल का गुबार कुछ हद तक शांत होने लगेगा.

दोनों विशेषज्ञों ने जोर देकर कहा कि ऐसे समय में सरकार और जिला प्रशासन को इस इलाके के लोगों के लिए एक एडवाइजरी जरूर जारी करनी चाहिए. ताकि वो सभी इस स्थिति से निपटने के लिए जागरूक हो सकें.

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