डॉ राजेंद्र प्रसाद (Dr Rajendra Prasad) दो बार राष्ट्रपति चुने गए और इस पद पर 12 साल तक बने रहे. (तस्वीर: Wikimedia Commons)
आधुनिक भारत के इतिहास (History of Modern India) में देश में बहुत सारे नेता ऐसे रहे हैं जिन्होंने देश पर आजादी के पहले और आजादी के बाद भी प्रभाव डाला. जहां महात्मा गांधी जैसे व्यक्तित्व आज भी प्रभावी हैं जो समयातीत हो चुके हैं. लेकिन उनके अलावा पंडित जवाहरलाल नेहरू, सरदार वल्लभभाई पटेल जैसे कई नेता ऐसे थे जो आजादी से पहले और उसके बाद दोनों समय में प्रभावी बने रहे. इस सूची में एक प्रमुख नाम है डॉ राजेंद्र प्रसाद (Dr Rajendra Prasad) का, देश में सबसे लंबे समय, 12 साल तक देश के राष्ट्रपति (President of India) बने और उनका यह रिकॉर्ड अभी तक नहीं टूटा है.
बचपन से ही पढ़ाई पर ध्यान
डॉ राजेंद्र प्रसाद का जन्म 3 दिसंबर 1884 को एक कायस्थ परिवार में बिहार के सीवान के जीरादेई गांव में हुआ था जो उस समय बंगाल प्रेसिडेंसी में था. वे बचपन से हमेशा ही एक मेधावी छात्र थे. उनकी प्रारंभिक शिक्षा छपरा, फिर पटना में. कॉलेज की पढ़ाई कोलकाता के प्रेसिडेंसी कॉलेज में,स और हुई जिससके बाद 1915 में कानून की उत्तरोस्नातक डिग्री एमएलएम पास करने के बाद कानून के विषय में ही डॉक्टरेट की उपाधि पाने के बाद से डॉ राजेंद्र प्रसाद ही कहलाए गए.
हमेशा टॉप पर ही रहे
राजेंद्र बाबू के नाम से मशहूर डॉ राजेंद्र प्रसाद भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में उतने प्रत्यक्ष रूप से दिखाई नहीं दिए, लेकिन आजादी के बाद ही आम जन को उनकी प्रतिभा की जानकारी हुई जब वे संविधान सभा के निर्माताओं के नेता यानि सभा के अध्यक्ष बने. वे बचपन से ही पढ़ाई, वकालत की डॉक्टरेट, वकालत के पेशे, सभी में अव्वल ही रहे.
कभी नहीं छोड़ी अपनी सादगी
राजेंद्र बाबू हमेशा ही देश सेवा में जुटे रहे और ऐसा लगता है कि वे खुद को प्रचार से दूर रखने में भी सफल रहे. स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान उन्होंने देश में आकाल और बाढ़ पीड़ितों के सेवा में खुद को झोंक दिया तो देश का पहला राष्ट्रपति बनने के बाद भी उनकी सादगी को सभी का भरपूर सम्मान और स्नेह मिलता रहा. और उनके राष्ट्रपति बनने पर केवल उन्हीं को हैरानी हुई थी जो उन्हें नहीं जानते थे.
पद संभालने के समय बहन का जाना
26 जनवरी जब आजादी के ढाई साल बाद देश में संविधान लागू हुआ तो उन्हें राष्ट्रपति बनने की औपचारिकताएं पूरी करनी थी, लेकिन उससे एक दिन पहले ही यानि 25 जनवरी की रात को उनकी बहन भगवती देवी का देहांत हो गया. उन्होंने उनके अंतिम संस्कार की व्यवस्था तो की, लेकिन तभी जब वे परेड ग्राउंड से लौट सके.
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देश का सफल प्रतिनिधित्व
भारत के राष्ट्रपति के तौर पर उन्होंने संविधान की मर्यादाओं का बखूबी पालन किया और वे राजनैतिक रूप से पूरी तरह से तटस्थ भी रहे. उन्होंने देश के बाहर भी जब भारत का प्रतिनिधित्व किया तब भी सभी को प्रभावित किया. वे 1952 के बाद 1957 में फिर से राष्ट्रपति चुने गए और दो बार राष्ट्रपति चुने जाने वाले वे अब भी एकमात्र राष्ट्रपति ही हैं.
लेखक भी रहे थे राजेंद्र बाबू
राष्ट्रपति भवन का मशहूर मुगल गार्डन जनता के लिए पहली बार उन्हीं के कार्यकाल में खुलना शुरू हुआ था जो तभी से देश के सभी लोगों के लिए आकर्षण का केंद्र है. राजेन्द्र बाबू ने अपनी आत्मकथा के अतिरिक्त कई पुस्तकें भी लिखी जिनमें बापू के कदमों में बाबू, इण्डिया डिवाइडेड, सत्याग्रह ऐट चम्पारण, गान्धीजी की देन, भारतीय संस्कृति व खादी का अर्थशास्त्र इत्यादि उल्लेखनीय हैं.
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राष्ट्रपति के तौर पर उनकी एक बार परीक्षा भी हुई थी जब हिंदू कोड बिल के विवादित होने पर उन्होंने सक्रियता दिखाई थी. 1962 में उन्होंने रिटायर होने का ऐलान किया और राष्ट्रपति भवन छोड़ने के बाद वे पटना की बिहार विद्यापीठ रहने चले गए. इसके बाद 28 फरवरी 1963 को 78 साल की उम्र में उनका देहांत हो गया. उन्हें भारत रत्न से भी सम्मानित किया गया था.
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