डॉ जाकिर हुसैन (Dr Zakir Hussain) ने महात्मा गांधी के लेखों को अनुवाद किया था. (तस्वीर: Wikimedia Commons)
भारत के तीसरे राष्ट्रपति डॉ जाकिर हुसैन (Dr Zakir Hussain) देश के पहले अल्पसंख्यक राष्ट्रपति ही नहीं थे. बल्कि उनकी शख्सियत राजनेता के मुकाबले एक शिक्षाविद के रूप में ज्यादा थी. वे 1967 में देश के राष्ट्रपति अपने जीवन के अंतिम दिन तक देश के राष्ट्रपति रहे. लेकिन राष्ट्रपति के रूप में उनका कार्यकाल उनके बारे में बताने के लिए काफी नहीं है. हैदराबाद में पैदा हुए डॉ जाकिर हुसैन का स्वतंत्रता आंदोलन (Freedom Movement) में बड़ा योगदान था और चाहे शिक्षाविद होने के नाते हो या फिर राजनेता के नाते उन्होंने मुस्लिम समाज के लिए उत्थान के लिए विशेष रूप से उन महात्मा गांधी (Mahatma Gandhi) का विशेष प्रभाव था जो उनके छात्र जीवन से शुरू हुआ और जीवन भर जारी रहा.
जामिया मिलिया इस्लामिया से गहरा नाता
हैदराबाद में अफरीदी पश्तून वंश में 8 फरवरी 1897 में पैदा हुए जाकिर हुसैन खान की शुरुआती पढ़ाई उत्तर प्रदेश के इटावा में हुई और फिर अलीगढ़ मुहम्मदन एंग्लो ओरिएंटल कॉलेज में पढ़ाई की. इसके बाद उन्होंने बर्लिन यूनिवर्सिटी से अर्थशास्त्र में अपनी पीएचडी पूरी की. वे दिल्ली की जामिया मिलिया इस्लामिया के संस्थापक सदस्य थे जिसके वे 1926 से लेकर 1948 तक वाइस चांसलर रहे.
पद्मविभूषण और भारत रत्न
1948 के बाद डॉ हुसैन ने अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी के वाइस चांसलर रह कर उसके शिक्षा की नई ऊंचाइयां भी दीं. शिक्षा में उनकी सेवाओं के लिए 1954 में भारत सरकार ने उन्हें पद्म विभूषण से नावाज और 1952 से 1957 तक वे शिक्षा में विशेषज्ञता रखने के नाते संसद में नामित भी किए गए. 1962 में वे देश के उपराष्ट्रपति चुने गए जिसके अगले साल उन्हें भारत रत्न से भी सम्मानित किया गया.
एक शिक्षाविद
उन्होंने कई किताबों को लेखने के अलावा उर्दू में अनुवाद का काम भी किया था. आज शिक्षा जगत में पोस्ट स्टैम्प, कई शिक्षण संस्थानों,लाइब्रेरी और सड़के उनके नाम पर हैं तो एशिया का सबसे बड़ा रोज गार्डन भी उन्हीं के नाम पर है. उन्होंने हमेशा ही शिक्षा के उत्थान के लिए विशेष तौर पर कार्य किए.
पहली बार गांधी जी का असर
महात्मा गांधी का डॉ हुसैन पर कॉलेज के समय से ही गहरा असर था. बाद में वे खुद गांधी जी से बहुत नजदीकी से जुड़े थे. 1920 में ही अलीगढ़ के मोहम्मडन एंग्लो ओरिएंटल कॉलेज में जब महात्मा गांधी आए थे तब उन्होंने वहां के सभी लोगों से असहयोग आंदोलन में हिस्सा लेने की गुजारिश की थी. तभी से वे गांधी जी से बहुत प्रभावित हो गए थे.
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जामिया मिलिया इस्लामिया
गांधी जी के आंदोलन के करीब रहे जामिया मिलिया इस्लामिया की स्थापना में भी हुसैन उसके संस्थापकों में से एक रहे जो 1925 में अलीगढ़ से दिल्ली स्थानांतरित हुआ और उसके अगले ही साल वे वहां के वाइस चैयरमैन बन गए. इसके दो मकसद थे. एक देश के युवा मुस्लिमों को शिक्षा के लिए प्रेरित करना और दूसरा इस्लामिक विचारों को हिंदू विचारों के साथ समन्वय स्थापित करना.
गांधी जी के भाषणों का अनुवाद
खिलाफत आंदोलन के दौरान मुस्लिमों को देश की आजादी की लड़ाई में शामिल करने के मकसद से ही गांधी जी के प्रयासों के दौरान हुसैन उनके संपंर्क में आए थे.1922 में बर्लिन यूनिवर्सिटी से पीएचडी करने के लिए वे जर्मनी चले गए जहां उन्होंने गांधी जी के 33 भाषणों का अनुवाद किया और 1926 में भारत लौटे जिसके बाद वे जामिया मिलिया इस्लामिया से जुड़े उसके लिए देशभर में घूम कर वित्तीय व्यवस्थाएं भी कीं. उन्हें गांधी जी के अलावा हैदराबाद के निजाम, सिप्ला के संस्थापक ख्वाजा अब्दुल हमीद, बंबई के समाजसेवी सेठ जमाल मोहम्मद जैसी हस्तियों की मदद भी मिली.
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जामिया के आर्थिक संकट के हालात में उन्होंने अपनी तनख्वाह 150 रुपये से घटा कर 80 रुपये कर दी थी लेकिन जामिया को आर्थिक वजह से खत्म होने नहीं दिया. उन्होंने जामिया के मूल मकसद को कभी भी विस्मृत होने नहीं दिया और देश के नौजवानों को देश से जोड़ने का काम करते रहे. जब इसके 25 साल पूरे हुए तब आजादी के समय देश हिंदू मुस्लिम के बीच दूरियां और तल्खियां बहुत बढ़ रही थी. लेकिन उस समारोह में मोहम्मद अली जिन्ना, लियाकत अली खान के साथ जवाहरलाल नेहरू और सीराजगोपालाचार्य ने भी शिरकरत की.
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