नए अध्ययन के मुताबिक जिस तरह से पृथ्वी पर प्रजातियां नष्ट हो रही हैं वह महाविनाश (Mass Extinction) की प्रक्रिया से गुजर रही है. (प्रतीकात्मक तस्वीर: shutterstock)
पृथ्वी (Earth) पर अभी तक पांच महाविनाश (Mass Extinction) की घटनाएं हो चुकी हैं ऐसा माना जाता है. लेकिन महाविनाश में ऐसे जवलायु परिवर्तन (Climate Change) होते हैं जिनकी वजह से पृथ्वी की अधिकांश प्रजातियों (Species) के लिए अपना अस्तित्व कायम रखना असंभव हो जाता है और ऐसी पूरी की पूरी हर प्रजाति समूल नष्ट हो जाती है. इस तरह के पूरे घटना क्रम को महाविशान की संज्ञा दी जाती है. लेकिन नए अध्ययन में कहा गहा है कि जिस तरह से पृथ्वी पर जीव मर रहे हैं और प्रजातियां नष्ट हो रही हैं, पृथ्वी एक तरह के महाविनाश से गुजर रही हैं और इस तरह का एक महाविनाश पहले भी आ चुका है.
अभी चल रहा है एक महाविनाश
अभी पृथ्वी एक तरह से महाविनाश के मध्य में चल रही है जिसमें हर साल हजारों संख्या में प्रजातियां खत्म हो रही है. अध्ययन में सुझाया गया है कि पर्यावरणीय बदलावों के कारण इस तरह की घटना इतिहास में पहले भी हो चुकी है जो वैज्ञानिकों के पहले किए गए अनुमानों से लाखों साल पहले हुई थी. यह सारी जानकारी 55 करोड़ साल पुराने जीवन से शोधकर्ताओं को मिली है.
कब आया था ऐसा महाविनाश
पिछली बार जो पृथ्वी पर महाविनाश आया था वह 6.6 करोड़ साल पहले क्रिटेशियस काल के अंत में आया माना जाता है. उससे पहले पर्मियान और ट्रियासिक काल के ब च में 25.2 करोड़ साल पहले एक महाविनाश आया था. रिवरसाइड यूनिवर्सिटी ऑफ कैलिफोर्निया और वर्जीनिया टेक के शोधकर्तों के अध्यन में पता चला है कि 55 करोड़ साल साल पहे इडियाकैरन काल में भी एक महाविनाश आया था.
तब 80 प्रतिशत प्राणी हो गए थे खत्म
प्रोसिडिंग्स ऑफ द नेशनल एकेडमी ऑफ साइंसेस में प्रकाशित अध्ययन में शोधकर्ताओं ने माना हा कि एडियाकैरन प्राणियों में80 प्रतिशत पर्यावरणीय बदलावों के कारण नष्ट होगए थे. लेकिन यह स्पष्ट नहीं है कि क्या वास्तव में यह एक महाविनाश की घटना थी क्योंकि नष्ट हुई प्रजातियों का प्रतिशत इस तरह के कई दूसरी घटनाओं में भी देखा गया है जिसमें आज का समय भी शामिल है.
क्यों हुआ था महाविनाश
इस अध्ययन के सहलेखक और यूसीआर के पुरातन पारिस्थितिकी तंत्र विज्ञानी चेन्यी तू ने बताया कि भूगर्भीय रिकॉर्ड दर्शाते हैं कि उस समय दुनिया भर के महासागरों से बहुत सारी ऑक्सीजन खत्म हो गई थी और इस वजह से कुछ ही प्रजातियों के शरीर कम ऑक्सीजन के वातावरण में खुद को ढाल सके थे.
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नहीं हैं कोई जीवाश्म रिकॉर्ड
लेकिन बाद की महाविनाश की घटनाओं के विपरीत सबसे पहले की यह घटना का दस्तावेजीकरण और ज्यादा मुश्किल था क्योंकि उस समय के जीव जो खत्म हुए वे नर्म शरीर के जीव थे इसकी वजह से उनके अवशेषों का विखंडन जल्दी हो गया और उनके जीवाश्म रिकॉर्ड अच्छे से सुरक्षित नहीं रह पाए थे.
आसान नहीं सिद्ध करना
इस अध्ययन की सहलेखक और यूसीआर की पुरातत्व परिस्थितिकी विज्ञानी रेचल सरप्रेनैन्ट का कहना है कि उन्हें और उनकी टीम को संदेह है कि ऐसी घटना हुई होगी, लेकिन उसे सिद्ध करनेक लिए बहुत बड़ा डेटाबेस जमा करना होगा. टीम ने इडियाकैरन जानवरों के परर्यावरण, शारिरिक आकार, खुराक, गतिविधि क्षमताएं और आदतों संबंधित सभी ज्ञात जानकारियों का दस्तावेजीकरण किया.
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इस अध्ययन के जरिए शोधकर्ताओं ने इस बात का सिद्ध करने का प्रयास कि इडियाकैरन काल में जानवरों की जीवन का बड़े पैमाने पर नष्ट होना वास्तव में एक महाविनाश ही था. पहले विश्वास किया जाता रहा था क इस घटना की व्याख्या सही आंकड़ों के जमा किए बिना नहीं की जा सकती है. ऐसे प्रमाण भी नहीं मिलते हैं कि शिकारी या संक्रमणकारी प्रजाति ने अन्य प्रजातियों को नष्ट किया होगा. उन्होंने पाया कि इसकी वजह सिर्फ ऑक्सीजन में होने वाली भारी कमी ही हो सकती है.
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