पास के तारों की चमक में दूरस्थ गैलेक्सी (Galaxy) से आने वाला प्रकाश बहुत ही धुंधला हो जाता है. (प्रतीकात्मक तस्वीर: shutterstock)
सुदूर खगोलीय पिंडों की खोज करना आसान काम नहीं हैं. हमारे पास केवल वहां से आने वाले उनका प्रकाश ही होता है जो बहुत ही लंबा सफर करने के दौरान ना केवल धुंधला हो जाता है बल्कि विकृत भी हो जाता है. ऐसा केवल तारों के साथ ही नहीं बल्कि बहुत ही दूरस्थ गैलेक्सी (Distant Galaxy) तक के साथ भी ऐसा होता है. नए अध्ययन में वैज्ञानिकों ने ऐसी ही एक अदृश्य गैलेक्सी (Invisible Galaxy) को खोजा है जो आज के उन्नत टेलीस्कोप भी देख नहीं पाए थे. वैज्ञानिकों ने अपने शोध में पाया कि यह गैलेक्सी बिग बैंग (Big Bang) के बनने के 2 अरब साल बाद ही बनी थी.
गैलेक्सी की विशेषताएं भी
सुदूर गैलेक्सी को देख पाना आज की नए उन्नत उपकरणों से भी असंभव ही है, लेकिन वैज्ञानिक फिर भी कई पिंडों को अप्रत्यक्ष तरीके से खोजने का प्रयास करते हैं. द एस्ट्रोफिजिकल जर्नल में प्रकाशित अध्ययन में इटली के SISSA के शोधकर्ताओं की टीम ने इस गैलेक्सी की पूरी विशेषताओं की व्याख्या करने में भी सफलता पाई है.
मिल्की वे से तेज
इस अध्ययन के लिए शोधकर्ताओं ने आटाकामा लार्ज मिलीमीटर मिलीमीटर/सबमिलीमीटर ऐरे (ALMA) का उपयोग किया. वे यह पता लगाने में सफल रहे कि यह एक बहुत ही संघनित, और भारी मात्रा में अंतरतारकीय धूल से भरी क युवा गैलेक्सी थी जो मिल्की वे गैलेक्सी की तारे बनाने की दर से हजार गुना ज्यादा तेजी से तारे बना रही थी.
जानकारी का खजाना
सिसा में एस्ट्रोफिजिक्स डॉक्टोरल छात्र मारिका ग्यूलियेटी की अगुआई में शोधकर्ताओं की टीम ने इस गैलेक्सी को इतनी गहरे काले रंग की बताया है कि यह लगभग अदृश्य गैलेक्सी ही है जो बहुत ही उन्नत ही उपकरणों से देखी नहीं जा सकती है. उन्होंने कहा कि बहुत ही दूर स्थित गैलेक्सी ब्रह्माण्ड के उद्भव और विकास के भूतकाल और भविष्य की जानकारी की वास्तविक खदानों की तरह होती है.
मुश्किल क्यों है इसका अध्ययन
साफ है कि यह अध्ययन बहुत ही चुनौतीपूर्ण रहा होगा. क्योंकि एक तरफ कहा जा रहा है कि इस गैलेक्सी को आज उन्नत उपकरण के लिए देखना ही लगभग नामुमकिन है तो ऐसे में इसका अवलोकन कैसे हुआ. दूरी की वजह से इससे आने वाला प्रकाश बहुत धुधला तो था ही बीच में मौजूद गैलेक्सी और तारकीय धूल की वजह से भी इसमें विकृति आने की संभावना ज्यादा थी जिससे प्रकाश की तरंगों की आवृति में बदलाव आ रहा था.
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कैसे उपकरण से मिल सकती है मदद
इस वजह से प्रकाशीय उपकरणों के लिए इस तरह के पिंडों का अवलोकन असंभव हो जाता है, लेकिन इन्हें केवल शक्तिशाली इंटरफेरोमीटर के जरिए देखा जा सकता है जो बड़ी रेडियो तरंगों को पकड़ सकते हैं. लेकिन इन तरंगों का अध्ययन भी एक मुश्किल काम ही है. शोधकर्ताओं का कहना है कि वास्तव में काली गैलेक्सी इतनी काली भी नहीं होती हैं. हाल ही में ऐसी बहुत सी दूरस्थ गैलेक्सी खोजी भी गई हैं, जिन्हें हबल जैसा टेलीस्कोप भी नहीं देख सकता है.
एक फायदेमंद परिघटना भी
वैज्ञानिकों ने इस तरह के पिंडों की लिए ग्रैविटेशनल लेंसिंग नाम की पद्धति का उपयोग करते हैं. यह उस सिद्धांत का उपयोग करता है जिसमें दूरस्थ पिंड से आने वाला प्रकाश रास्ते में आने वाली धूल और अन्य पिंडों की वजह से इस तरह से विकृत होता है कि वह पिंड अपने मूल आकार से बहुत बड़ा दिखाई देता है. इस तरह से रास्ते के विशाल पिंड एक लेंस की तरह काम करते हैं. जिसका एक फायदा यह होता है कि ज्यादा बड़ी और चमकीली दिखने वाली गैलेक्सी अच्छे से दिखती है.
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शोधकर्ताओं का कहना है कि यह गैलेक्सी खास है क्योंकि लेंसिंग प्रक्रिया की वजह से इसने प्रकाश को एक खास तरह की तरंगों में बदला जिसे आल्मा जैसे टेलीस्कोप तंत्र ही पकड़ सकते थे. लेकिन उन्हें यह भी उम्मीद है कि भविष्य में जेम्स वेब स्पेस टेलीस्कोप इस गैलेक्सी के बारे में कुछ जानकारी जरूर हासिल कर सकेंगे. वहीं यह अध्ययन अब ब्रह्माण्ड में तथाकथित काले पिंडों का अध्ययन संभव कर सकेगा.
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