लाल बौने तारों (Red Dwarf) से निकलने वाला प्रकाश भी प्रकाश संश्लेषण प्रणाली के लिए उपयोगी होता है. (तस्वीर: Wikimedia Commons)
पृथ्वी से बाहर जीवन (Life Beyond the Earth) की तलाश में वैज्ञानिक कई कारकों की तलाश करते हैं. इनमें से एक प्रकाश संश्लेषण (Photosynthesis) की अनुकूलता भी शामिल है. लेकिन क्या जिस तरह का प्रकाश हमारा सूर्य हमारी पृथ्वी तक पहुंचाता है प्रकाश संश्लेषण के लिए वह जरूरी है. क्या हमारी गैलेक्सी में अधिकांश मात्रा में मौजूद लाल बौने तारों से निकलने वाला प्रकाश (Light Spectrum form Red Dwarf) इस प्रक्रिया के लिए के पर्याप्त नही हैं. यही जानने के लिए वैज्ञानिकों ने एक अध्ययन किया जिसमें उन्होंने पाया है कि बावजूद इसके कि लाल तारे वैसा प्रकाश नहीं दे पाते हैं जैसे कि पृथ्वी के हरे पौधों के लिए जरूरी होता है, उनसे निकलने वाला प्रकाश उनके ग्रहों में जीवनदायी हो सकता है.
पृथ्वी पर प्रकाश संश्लेषण
प्रकाशसंश्लेषण पृथ्वी के अधिकांश जीवन का आधार है और पृथ्वी पर ऑक्सीजन का अधिक मात्रा के लिए भी. यह यूं ही नहीं कहा जाता है कि पृथ्वी पर प्रकाशसंश्लेषण नहीं होगा तो जीवन नहीं होगा. प्रकाश संश्लेषण के कारण ही पौधे सूर्य से आने वाली रोशनी अवशोषित करते हैं जिसकी मदद से क्लोरोफिल उस प्रक्रिया को पूरी करता है.
हरा और जामुनी रंग
पौधे सूर्य से आने वाले प्रकाश में से लाल और नीले प्रकाश का अवशोषण करता है जिसकी वजह से हमारी आंखों के पेड़ पौधों की पत्तियां हरि दिखाई देती हैं. लेकिन एक अन्य प्रकाश का प्रकाश संश्लेषण भी है जि हरा प्रकाश अवशोषित करता है और नीला और लाल प्रतिबिंबित करता है. अगर हमारे पौधे इस प्रणाली का उपयोग करते तो हमें सभी पौधे हरे की जगह जामुनी दिखाई देते.
क्लोरोफिल की जगह रैटीनल?
वास्तव में क्लोरोफिल की जगह रेटिनल नाम का एक प्रकाश संश्लेषण रसायन हरे प्रकाश को अवशोषित कर लाल और नीला प्रकाश प्रतिबिंबित करता है. कुछ बैक्टीरिया इसी का उपयोग करते हैं. शुरुआती सरल जीवन में रेटिनल का उपयोग ज्यादा होता होगा. लेकिन क्लोरोफिल वाला प्रकाश संश्लेषण सूर्य की चमकीले प्रकाश का लाभ लेने के लिए ही पनपा होगा जिसका अधिकांश प्रकाश दिखाई देने वाले स्पैक्ट्रम के रूप में निकलता है.
सूर्य और लाल बौने
लेकिन दिक्कत यह है कि हमारी गैलेक्सी में सूर्य जैसे चमकीले तारे केवल 8 प्रतिशत से भी कम हैं और दो तिहाई से अधिक तारे लाल बौने तारे हैं और साथ ही अधिकांश बाह्यग्रह भी लाल बौनों का चक्कर लगा रहे हैं जो सूर्य की तुलना में बहुत छोटे और ठंडे होते हैं. इनका अधिकांश प्रकाश अवरक्त विकिरण होता है. ये तरंगे गर्म तो होती हैं, लेकिन क्या इनमें प्रकाश संश्लेषण का चलाने के लिए पर्याप्त शक्ति होती है, इसी प्रश्न का हल इस अध्ययन में खोजने का प्रयास किया था.
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क्या किया प्रयोग
शोधकर्ताओं ने इसकेलिए एक तारे के प्रकाश का सिम्यूलेटर बनाया जिसमें एक एलईडी की शृंखला थी जो लाल बौने के स्पैक्ट्रम की तरह थी. इस उपकरण की खास बात यह थी वह कई तरह के तारों के स्पैक्ट्रम का नकल कर सकता था. लाल तारे का स्पैक्ट्रम बनाने के बाद उन्होंने एक ऐसा वायुमडंल बनाया जो आवासीय ग्रह पर जीवन की शुरुआत के पहले के माहौल वाला था. इसमें कुछ बैक्टीरिया डालकर उन्होंने तारे का प्रकाश इस वायुमंडल मे डाला.
सफल रहा प्रयोग
शोधकर्ताओं ने शुरुआत सायनोबैक्टीरिया से की जो पृथ्वी पर प्रकाश संश्लेषण द्वारा ऑक्सीजन बनाने वाले पहले जीवों में से एक थे. ये बहुत ही कठोर और विपरीत वातवारण में जिंदा रह लेते हैं. उन्होंने पाया कि सायनोबैक्टीरिया लाल बौनों के अवरक्त प्रकाश में अच्छे से पनप सकते हैं. इसके बाद उन्होंने यहल बी बाता कि हरे शैवाल को भी इस माहौल में पनपने में कोई परेशानी नहीं हुई.
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भले ही लाल बौने उस तरह का प्रकाश उत्सर्जित नहीं करते जैसा कि पृथ्वी पर आता है, ऐसे तारों के ग्रहों में भी जीवन पनप सकता है. यह पृथ्वी से बाहर जीवन की तलाश करने वालों के लिए अच्छी खबर है. फिर भी लाल बौनों के ग्रहीय तंत्रों में कुछ अलग तरह की चुनौतियां भी हैं जिससे इनके ग्रहों में जीवन होना कठिन हो जाता है, फिर भी यह अध्ययन काफी उम्मीदें जगाने वाला माना जा रहा है.
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