पंजाब, हरियाणा, पश्चिमी उत्तर प्रदेश और राजस्थान के किसान दिल्ली के बॉर्डर (Delhi Border) पर अपनी मांगों को लेकर लगातार विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं. अपने अधिकारों की लड़ाई में दिल्ली तक पहुंच गए किसान गृह मंत्री अमित शाह (Amit Shah) के प्रस्ताव को भी ठुकरा चुके हैं और केंद्र सरकार (Central Government) पर इसलिए दबाव बना रहे हैं क्योंकि उनके राज्यों की सरकारों ने किसानों के हक में साथ देने का रवैया नहीं अपनाया. एक तरफ, इस मुद्दे पर तमाम राजनीतिक पार्टियां भिड़ी (Politics over Farmers) हैं, तो दूसरी तरफ, किसान अपना आंदोलन खुद संचालित कर रहे हैं.
किसान सीधे इसी बात पर अड़े हुए हैं कि केंद्र सरकार या तो तीनों नए कानूनों को वापस ले या फिर किसानों के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य की गारंटी दे. इस स्पष्ट मांग को लेकर कोविड 19 के दौर में दिल्ली के बॉर्डर पर बैठे किसान पिछले पांच दिनों में कैसे अपने आंदोलन को शक्ल दे सके हैं? ये भी जानिए कि इस आंदोलन से जुड़े कौन से सवाल हैं, जो चर्चा में हैं.
कैसे बड़ा हो गया आंदोलन?
बीते 26 नवंबर को हज़ारों किसान पंजाब और भाजपा शासित हरियाणा से दिल्ली की तरफ बढ़े, तो हरियाणा पुलिस ने पानी की बौछारों और आंसू गैस दागकर किसानों को रोकने की कोशिश की. बाद में, मार्च को मंज़ूरी दी गई. कई किसानों ने पानीपत के पास सर्द रात गुज़ारी. इसके बाद 27 तारीख को दिल्ली के टिगरी और सिंघू बॉर्डर पर किसान इकट्ठे होने लगे.
हरियाणा और दिल्ली बॉर्डर पर प्रदर्शनकारी किसानों पर आंसू गैस और पानी की बौछारें की गईं.
बैरिकैड के आगे न बढ़ सकें, इसलिए किसानों पर यहां भी पुलिस ने आंसू गैस और पानी की बौछारें इस्तेमाल कीं. शाम तक किसानों को दिल्ली में घुसने दिया गया और उन्हें बुराड़ी मैदान पर धरने की इजाज़त दी गई. प्रशासन से कई किसानों की असंतुष्टि के बीच 28 नवंबर शनिवार को दिल्ली की सीमा पर आंदोलन जारी रहा और पंजाब व हरियाणा से और किसान जुटते चले गए.
आगामी 3 दिसंबर को किसानों के प्रदर्शनों को लेकर केंद्र सरकार बैठक करने वाली थी, लेकिन किसानों के आंदोलन के चलते रविवार शाम को अमित शाह, रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह, कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर और भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा के बीच विचार विमर्श हुआ. इसके बाद, किसानों ने सोमवार को कहा कि कोई सशर्त बातचीत नहीं होगी और अगर मांगें नहीं मानी गईं तो दिल्ली के पांचों एंट्री पॉइंट किसान बंद करेंगे.
क्या हैं किसानों की स्पष्ट मांगें?
केंद्र सरकार ने पिछले दिनों जो तीन कृषि कानून लागू किए हैं, उन्हें वापस लिये जाने की मांग किसान कर रहे हैं, जिनके कारण फसलों की बिक्री नियंत्रण मुक्त होती है. एमएसपी को लेकर संशोधन करने की मांग भी किसान कर रहे हैं और साथ ही, किसान प्रस्तावित बिजली संशोधन बिल 2020 को भी वापस लेने पर दबाव बना रहे हैं, जिससे उन्हें खतरा है कि सब्सिडी वाली बिजली किसानों को नहीं मिलेगी.
कौन है आंदोलन में किस तरह शामिल?
अखिल भारतीय किसान संघर्ष समिति ने 'दिल्ली चलो' का आह्वान किया तो राष्ट्रीय किसान महासंघ और भारतीय किसान यूनियन इसके समर्थन में आईं. किसानों के मार्च में संयुक्त किसान मोर्चा का बैनर दिखा तो राष्ट्रीय किसान महासंगठन, जय किसान आंदोलन, अभा किसान मज़दूर सभा, क्रांतिकारी किसान यूनियन, भारतीय किसान यूनियन की कई इकाइयां आंदोलन में शामिल हैं.
ज़्यादातर आंदोलनकारी किसान पंजाब के हैं, जबकि हरियाणा के भी किसानों की संख्या खासी है. दिल्ली चलो आंदोलन को उत्तर प्रदेश, राजस्थान सहित उत्तराखंड और मध्य प्रदेश के किसानों को समर्थन भी मिला है.
न्यूज़18 क्रिएटिव
क्या हैं विवादास्पद कानून?
किसान उत्पाद व्यापार व कॉमर्स (Promotion and Facilitation) एक्ट 2020, मूल्य आश्वासन व फार्म सर्विस पर किसान (Empowerment and Protection) करार एकट 2020 और एसेंशियल कमोडिटी (संशोधन) एक्ट 2020, केंद्र सरकार ने ये तीन कानून पिछले दिनों पास किए, जिनसे किसान सहमत नहीं हो पा रहे हैं. दूसरी तरफ, पंजाब सरकार ने इन कानूनों को राज्य में बेअसर करने के लिए जो बिल बनाए हैं, उन पर अभी राज्यपाल की मंज़ूरी नहीं मिली है.
क्या है केंद्र का जवाब?
केंद्र सरकार ने किसानों की यूनियनों के प्रतिनिधियों को बुलाकर एक बैठक की थी और इन कानूनों को लेकर चर्चा की थी, लेकिन इस बैठक का कोई नतीजा नहीं निकला. केंद्र ने लगातार यही कहा कि इन कानूनों से एमएसपी सिस्टम खत्म नहीं होगा और किसानों को बेहतर व्यवस्था और मूल्य मिलेंगे, लेकिन किसान इन बातों से न तो सहमत नज़र आ रहे हैं और न ही आश्वस्त.
क्या है किसानों का डर?
सरकार के दावों के उलट पंजाब और हरियाणा के किसानों को खतरा महसूस हो रहा है कि इन कानूनों से एमएसपी सिस्टम खारिज कर दिया जाएगा. समय के साथ कॉर्पोरेट सेक्टर के बड़े खिलाड़ी खेती किसानी को अपने कब्ज़े में ले लेंगे और किसानों की झोली खाली रह जाएगी. यह डर भी है कि मंडी सिस्टम के वर्चुअल होने से किसानों को सही कीमत नहीं मिलेगी और किसानों को कर्ज़ देने वाले 'आड़तिये' इस पूरे धंधे से बाहर हो जाएंगे.