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Explainer: राहुल गांधी को ₹10 हजार में मिली जमानत, समझें अलग-अलग केस में कैसे तय होती है यह राशि

कांग्रेस बीट कवर कर रहे पत्रकार पर भड़के राहुल गांधी. (फाइल फोटो, क्रेडिट- पीटीआई)

कांग्रेस बीट कवर कर रहे पत्रकार पर भड़के राहुल गांधी. (फाइल फोटो, क्रेडिट- पीटीआई)

सूरत कोर्ट ने मानहानि मामले में राहुल गांधी को 02 साल की सजा सुनाने के बाद उन्हें जमानत भी दे दी. सुरक्षा के तौर पर उनस ...अधिक पढ़ें

हाइलाइट्स

राहुल गांधी को 10000 के निजी मुचलके पर जमानत दी गई, ये 30 दिन के लिए है
जमानत का राशि अलग तरह के अपराध के लिए अलग, कई बार व्यक्तियों की माली हैसियत देखकर भी
जमानत राशि संज्ञेय अपराधों में अलग होती है और अहिंसक मामलों में अलग

नई दिल्‍ली. सूरत की अदालत ने मानहानि मामले मं राहुल गांधी को अधिकतम दो साल की सजा के लिए दोषी करार दिया. हालांकि उसके थोड़ी ही देर बाद अदालत ने उन्हें 10 हजार की राशि पर जमानत दे दी. उनकी सजा को 30 दिन के लिए स्थगित रखा गया है ताकि वह इससे ऊपर की अदालत में इस सजा के खिलाफ अपील कर सकें.

राहुल को अदालत ने सजा सुनाने के बाद 10 हजार की राशि पर जमानत दी है. जमानत की राशि अलग अलग अपराध और मामलों में अलग होती है. ये अलग क्यों होती है किस आधार पर तय की जाती है. जानते हैं इस बारे में

सवाल: क्या होती है जमानत और जमानत राशि?
जवाब: ज़मानत किसी अपराध के आरोपी व्यक्ति को कारागार से छुड़ाने के लिये न्यायालय के समक्ष जो सम्पत्ति जमा की जाती है या देने की प्रतिज्ञा की जाती है, उसे कहते हैं. जमानत सजा से पहले और सजा के बाद दोनों समय में दी जाती है.

आमतौर पर अदालतें जब किसी व्यक्ति को सजा सुनाती हैं तो अगर उसकी सजा मामूली है और संज्ञेय नहीं है तो उसको अगली शीर्ष अदालत में अपील के लिए जो समय देती हैं, उस अवधि के लिए उसके द्वारा तय जमानत राशि देने पर जमानत भी दे देती हैं. हालांकि जमानत राशि का फैसला कई बार कोर्ट करती हैं और कई बार ऐसे मामले होते हैं कि थाना से भी जमानत मिल जाती है.

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सवाल: जमानत की राशि आमतौर पर अलग अलग होती है, ये कैसे तय होती है?
जवाब: जब जमानत अदालत में पेश होने या फिर अदालत द्वारा सजा सुनाए जाने के बाद अगली अदालत में अपील की अवधि के लिए होती है तो इसे अदालत ही तय करती है कि ये जमानत राशि क्या होगी.

सवाल: किसी मामले के लिए ये राशि 1000-2000 रुपए होती है तो कुछ में लाखों में होती है. ये कैसे तय होता है?
जवाब: इलाहाबाद हाईकोर्ट के रिटायर्ड जस्टिस सभाजीत यादव बताते हैं कि जब अदालत को जमानत राशि तय करनी होती है तो वो कई बातों पर विचार करती है. मसलन अपराध या सजा किस स्थिति की कितनी गंभीर है. दूसरा जिसे जमानत दी जा रही है, उसकी स्थिति क्या है. उसके लिए कितनी जमानत की राशि उपयुक्त रहेगी. कई बार ये जमानत राशि व्यक्ति की माली हैसियत देखकर भी तय होती है.

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सवाल: क्या इसका मतलब ये है कि इसकी कोई तय राशि नहीं होती, ये पूरी तरह जज या अदालत के विवेक से तय होता है?
जवाब: बिल्कुल ऐसा ही है, जमानत की ऊपर की स्थितियों में बताई गई जमानत की राशि अदालत या जज के विवेक पर तय होता है. वो ये फैसला करता है कि जिस व्यक्ति को जमानत दी जा रही है, उसे कितनी जमानत की राशि देनी चाहिए. ये व्यक्ति की हैसियत के साथ उसके अपराध और सजा की प्रवृत्ति पर भी निर्भर करता है.

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सवाल: राहुल गांधी को 10 हजार की जमानत राशि पर 30 दिनों के लिए जमानत दी गई है. इस बीच उन्हें उच्च अदालत में अपील करनी होगी. तो इस राशि का फैसला जज की मर्जी से तय किया गया होगा. कानून इस पर क्या कहता है?
जवाब: ये जज के विवेक के अनुसार ही तय किया जाता है लिहाजा राहुल गांधी के मामले में भी उनकी 30 दिनों की जमानत के लिए 10 हजार की राशि तय करने का काम अदालत के जरिए हुआ. बेशक अदालत ने ये राशि उनकी सजा और स्थिति देखकर ही तय की होगी. इस मामले में कानून जज को अपने विवेक से फैसला करने की छूट देता है.

सवाल: क्या ये जमानत की राशि फिर वापस भी हो जाती है?
जवाब: बिल्कुल क्योंकि ये राशि एक सुरक्षा के तौर पर जमा होती है, लिहाजा अगर वो सुरक्षा तोड़ी नहीं जाए और जमानत के नियमों का पालन किया जाए तो ये जमानत राशि वापस हो जाती है.

सवाल: आमतौर पर अहिंसक मामलों में सजा होने पर अधिकतम जमानत राशि 10,000 रुपए होती है लेकिन दूसरे मामलों में ये क्या होती है?
जवाब: यदि किसी व्यक्ति पर अहिंसक व्यवहार का आरोप लगाया गया है या सजा हुई और अदालत उसे अपील के लिए समय दे रही है तो ये राशि अधिकतम 10,000 रुपए होती है लेकिन हिंसक अपराध एक उच्च जमानत राशि के साथ आते हैं. इसमें अपराधी को 70,000 रुपए या इससे ऊपर भुगतान करना पड़ सकता है. आर्थिक फ्राड के मामलों में जमानत राशि लाखों में चली जाती है.

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सवाल: जमानत पर रिहा होने के दौरान के नियम या शर्तें क्या होती हैं?
जवाब: ज़मानत पर रिहा होना का मतलब है कि आपकी स्वतंत्रता की सीमाएं हैं. आप को देश छोड़ने से एवं बिना आज्ञा यात्रा करने के लिए बाधित किया जा सकता है. जब आवश्यक हो तो न्यायालय अथवा पुलिस के सामने पेश करना होता है.

सवाल: गैर जमानती मामले क्या होते हैं?
जवाब: कानूनी जानकार बताते हैं कि मामले दो तरह के होते हैं – जमानती और गैर जमानती. आमतौर पर मामूली अपराध जैसे मारपीट, धमकी, लापरवाही से हुई मौत आदि के मामले जमानती अपराध की श्रेणी में आते हैं. सीआरपीसी में एक सूची बनाई गई है कि कौन-कौन से अपराध जमानती हैं. ऐसे मामलों में आरोपी को जमानत का अधिकार होता है. गिरफ्तारी होने पर थाने से ही जमानत मिल सकती है. थाने का इंचार्ज बेल बॉन्ड भरने के लिए कह सकता है और बेल बॉन्ड भरने के बाद जमानत मिल जाती है.

सवाल: किन मामलों को गंभीर मानते हुए नहीं मिलती जमानत?
जवाब: आमतौर पर थाने में सामान्य मामलों में बेल बांड से जमानत मिल जाती है लेकिन बाकी सभी मामलों में अदालत जाना होता है. तब अदालत देखती है कि जमानत दी जा सकती है या नहीं. गैर जमानती मामलों में अगर जज या मजिस्ट्रेट को लगता है कि फांसी या उम्रकैद तक की सजा हो सकती है तो वह जमानत नहीं देता. हालांकि कई बार उम्रकैद या फांसी की सजा के प्रावधान वाले केस में भी जमानत अर्जी लगाने के बाद जमानत मिली है. सेशन कोर्ट किसी भी गंभीर मामले में जमानत दे सकता है लेकिन फैसला केस की मेरिट पर निर्भर करता है.

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