पाकिस्तान में अहमदिया मुसलमानों की मस्जिदों और लोगों पर आए दिन हमले होते रहते हैं.
Ahmadiyya Muslims: पाकिस्तान के कराची में 3 फरवरी को चरमपंथी समूह तहरीक-ए-लब्बैक पाकिस्तान ने अहमदिया मुस्लिमों की मस्जिद में फिर तोड़फोड़ की. ये पहली बार नहीं है, जब पाकिस्तान में अहमदिया मुसलमानों और उनकी मस्जिदों पर हमला हुआ हो. इससे पहले कराची में ही जमशेद रोड पर मौजूद अहमदिया मुसलमानों की मस्जिद अहमदी जमात खाना में 2 फरवरी को जमकर तोड़फोड़ की गई थी. इसके वायरल हुए वीडियो में कुछ लोग हथौड़ों से मस्जिद को तोड़ते हुए नजर आ रहे हैं. पाकिस्तानी मीडिया के मुताबिक, 2 फरवरी के महले में अज्ञात हमलावरों ने मस्जिद को काफी नुकसान पहुंचाया था. आइए जानते हें कि अहमदिया मुस्लिम कौन हैं? उनकी मस्जिदों पर पाकिस्तान में बार-बार हमले क्यों किए जाते हैं?
पाकिस्तानी मीडिया की रिपोर्ट के मुताबिक, पाकिस्तान में अहमदिया मुसलमानों पर हमलों और जुल्म का लंबा इतिहास है. अगर पिछले कुछ महीनों की ही बात करें तो महज 3 महीनों के भीतर पाकिस्तानी चरमपंथियों ने 5 अहमदी मस्जिदों को निशाना बनाया है. इससे पहले पिछले साल अगस्त में फैसलाबाद में अहमहिदया समुदाय की एक दर्जन से ज्यादा कब्रो को तोड़ा गया था. पिछले 4 साल में चरमपंथियों ने करीब 45 अहमदिया मुसलमानों की हत्या की है.
कानून में अहमदिया मुस्लिम ही नहीं
पाकिस्तान के संविधान में अहमदिया मुसलमानों को मुस्लिम माना ही नहीं गया है. उन्हें अल्पसंख्यक गैर-मुस्लिम धार्मिक समुदाय का दर्जा दिया गया है. पाकिस्तान में अहमदिया मुसलमानों के खिलाफ ईशनिंदा के मुकदमे दर्ज कर सजा देने के मामले आए दिन आते रहते हैं. ईशनिंदा के मामले में दोषी पाए जाने पर अहमदिया समुदाय के लोगों की हत्या कर दी जाती है. अहमदिया समुदाय की शुरुआत 1889 में भारत के पंजाब के लुधियाना के गांव कादियान में अहमदी आंदोलन के साथ शुरुआत हुई थी. इसके संस्थापक मिर्जा गुलाम अहमद ने खुद को पैगंबर मोहम्मद का अनुयायी और अल्लाह की ओर से चुना गया मसीहा घोषित किया था. उनके अनुयायियों का मानना है कि अल्लाह ने उन्हें धार्मिक युद्ध खत्म करने, खूनखराबे की निंदा करने के साथ शांति स्थापित करने को भेजा है.
क्यों अक्सर निशाना बनाया जाता है?
मिर्जा गुलाम अहमद की विचारधारा के मुताबिक, मुस्लिम धर्म और समाज को बचाने के लिए सुधारों की बहुत जरूरत है. बीबीसी ने ऑक्सफोर्ड इस्लामिक स्टडीज ऑनलाइन के हवाले से लिखा है कि अहमदिया समुदाय के मुताबिक, मिर्जा गुलाम अहमद को पैगंबर मोहम्मद के निर्धारित कानूनों के प्रचार के लिए भेजा गया था. वहीं, मुस्लिमों में शिया और सुन्नी समुदाय के लोग अहमदिया मुसलमानों के ऐसे दावों को हमेशा से खारिज कर रहे हैं. इस वजह से चरमपंथी ही नहीं लिबरल मुस्लिम भी अहमदिया मुसलमानों को इस्लाम का विरोधी मानते हैं. वहीं, 1974 में अहमदिया मुसलमानों को गैर-मुस्लिम अल्पसंख्यक घोषित किए जाने के बाद से समुदाय के लिए मस्जिद में जाने पर पाबंदी लगा दी गई. इसके बाद सैन्य तानाााह जिया-उल-हक के शासनकाल में एक अध्यादेश पारित कर उन्हें अपने आप को मुस्लिम कहने से भी रोक दिया गया. इसलिए पाकिस्तान में अहमदिया समुदाय की मस्जिदों और लोगों पर हमले होते हैं.
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किस कानून के तहत अहमदिया को सजा?
पाकिस्तान में खुद को अहमदी बताने वाले लोगों को मुसलमानाओं की धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाने में दोषी पाए जाने पर सख्त सजा का प्रावधान है. ऐसे मामलों में पाकिस्तान दंड संहिता की धारा-298सी के तहत 3 साल जेल की सजा का प्रावधान है. यही नहीं, कुछ मामलों में आरोपी पर जुर्माना भी लगाने की व्यवस्था है. वहीं, मतदान के मामले में भी उनके लिए अलग व्यवस्था है. मतदाता सूची में अहमदिया मुसलमानों को गैर-मुस्लिम अल्पसंख्यकों के तौर पर दिखाया जाता है.
दुनिया में अहमदिया समुदाय की स्थिति?
दुनियाभर में सबसे ज्यादा अहमदिया मुसलमान पाकिस्तान में ही रहते हैं. पड़ोसी मुल्क में अहमदिया मुसलमानों की कुल आबादी 40 लाख है. यह समुदाय करीब 200 देशों में फैला हुआ है. दुनियाभर में अहमदिया मुसलमानों की कुल आबादी सवा करोड़ से ज्यादा है. इनकी पूरी दुनिया में 16 हजार से ज्यादा मस्जिदें हैं. इस समुदाय के कुरान का 65 से ज्यादा भाषाओं में अनुवाद किया जा चुका है.
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