नई दिल्ली: दो दिन बाद पृथ्वी के पास से एक क्षुद्रग्रह यानि कि एक (Asteroid) गुजरने वाला है. इस तरह अंतरिक्ष से पृथ्व तक या उसके पास आने वाले की चीजों की घटनाएं अब बहुत कम हो गई हैं , लेकिन ऐसा नहीं है कि आकाश से गिरने वाली चीजें कभी पृथ्वी तक नहीं पहुंची हैं. लंबे शोध के बाद विशेषज्ञों ने इस बात का प्रमाण हासिल किया है जब किसी उल्कापिंड (Meteoroid) ने सबसे पहले इंसान को मारा था.
रिकॉर्ड भी मिला है इस घटना का
इस मामले में प्रमाण के साथ विशेषज्ञों ने इसका रिकॉर्ड भी हासिल करने में कामयाबी पाई है. तुर्की गणराज्य के प्रेसिडेंसी के राज्य लेखागार के जनरल डायरेक्टरेट से मिले बहुत से कागजात के आधार पर यह जानकारी जुटाई गई है.
कब हुई थी यह घटना
इन दस्तावेजों के आधार पर पाया गया कि इराक के सुलेमानिया क्षेत्र में 22 अगस्त 1888 को एक उल्का पिंड के धरती पर टकरनाने से एक व्यक्ति की जान चली गई थी और एक को लकवा मार गया था. शोधकर्ताओं का मानना है कि यह उल्कापिंड से किसी व्यक्ति की होने वाली मौत का पहला उपलब्ध प्रमाण है.
ओटोमन साम्राज्य का हिस्सा था वह क्षेत्र
यह शोधपत्र मेटियोराइटिक्स एड प्लेनेटरी साइंस जर्नल में प्रकाशित हुआ है. इसके मुताबिक इस घटना की जानकारी सुलेमानिया के गवर्नर ने ओटमन साम्राज्य के 34वें सुल्तान अब्दुल हामिल द्वितीय को दी थी. यह इलाका उस समय विशाल ओटोमन साम्राज्य का हिस्सा था.
पूरी जानकारी नहीं है घटना की
इस घटना के जानकारी जैसे सटीक स्थान, उल्कापिंड की गति, आकार आदि की जानकारी नहीं मिल सकी है. माना जाता है कि वह उल्का पिंड दक्षिण पूर्व दिशा से आया था. और सुलेमानिया के पिरामिडनुमा पहाड़ी से टकराया था.

आकाशीय पिंड का पृथ्वी पर पहुंच पाना अब और मुश्किल होता जा रहा है.
क्यों प्रमाणिक मानी जा रही है यह जानकारी
शोधकर्ताओं का कहना है कि पहली बार इस तरह की घटना की जानकारी दी गई जिसमें कहा गया है कि एक उल्कापिंड के टकराने से किसी आदमी की मौत हुई. उनके मुताबिक तीन लिखित दस्तावेजों में इस घटना की जानाकरी है. सरकारी दस्तावेज होने के कारण इसमें संदेह की संभावना कम है.
अब तक किस घटना को माना जा रहा था सबसे पुरानी
इससे पहले इस तरह की सबसे पुरानी घटना नवंबर 1954 की मानी जाती रही थी. जब एक संतरे के आकार का सेलाकुआगा उल्कापिंड अमेरिका में 34 साल की महिला से टकराया था. तब उलकापिंड अलबामा स्थित ऐन एलिजाबेथ फॉलर होजेस केघर की छत को तोड़ता हुआ उनसे टकराया था.
बहुत कम होती हैं ऐसी घटनाएं
आमतौर पर उल्कापिंड पृथ्वी की सतह पर नहीं पहुंच पाते. उनके धरती तक पहुंचने से पहले ही वे हमारे वायुमंडल के घर्षण से जलकर नष्ट हो जाते हैं. ज्यादातर उल्कापिंड इस तरह से खत्म होते दिखाई भी देते हैं. इन्हें टूटता तारा भी कहा जाता है. इसके बाद अगर संयोगवश कुछ उल्कापिंड पृथ्वी के धरातल तक पहुंच भी जाएं तो यह संयोग भी बहुत ही कम होता है कि वे किसी इंसान से टकरा जाएं
क्या होते हैं उल्का और उल्कापिंड
विज्ञान में उल्का को लेकर कई अलग अलग शब्द प्रयुक्त किए जाते हैं. जो बड़ी चट्टाने या उनके बड़े टुकड़े सूर्य के चक्कर लगाते हैं उन्हें एस्टोरॉएड Asteroid) यानि क्षुद्रग्रह कहे जाते हैं. इनके अलावा धूल और बर्फ की बड़ी चट्टानें भी सूर्य का चक्कर लगाती है जिन्हें कॉमेट (Comet) यानि कि धूमकेतू कहा जाता है. धूमकेतू या क्षुद्रग्रह के टुकड़े मीटियराइट्स (Meteoroids) यानि उल्का कहे जाते हैं. जब ये पिंड पृथ्वी की ओर आते हैं तो उन्हें मीडटियर (Meteor) कहा जाता है, वहीं जब वे धरती की सतह पर आते हैं तो उन्हें( Meteorites) कहा जाता है. इनके लिए उल्कापिंड शब्द का प्रयोग भी होता है.
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Tags: Research, Science, Space
FIRST PUBLISHED : April 27, 2020, 18:39 IST