पाकिस्तान की पहली 'फर्स्ट लेडी' थी एक ब्राह्मण महिला, असली नाम था शीला पंत
बाद में वो पाकिस्तान की मादर-ए-वतन बनीं. साथ ही सिंध की गवर्नर की कुर्सी पर बैठीं. जुल्फिकार अली भुट्टो ने उन्हें कैबिनेट मिनिस्टर बनाया था
पाकिस्तान के पहले प्रधानमंत्री थे नवाबजादा लियाकत अली खान. बंटवारे के बाद भारत से पाकिस्तान गए लियाकत को कायदेआजम मोहम्मद अली जिन्ना ने पहला प्रधानमंत्री बनाया था. लियाकत लंदन में वकालत पढ़कर लौटे थे. जब उन्होंने लखनऊ में पहली बार एक खूबसूरत सी लड़की को देखा, तो उस पर मोहित हो गए. ये लड़की कुमाऊंनी ब्राह्णण पंत परिवार से ताल्लुक रखती थी. ये एक रोचक किस्सा है कि किस तरह ये लड़की उनकी बीवी बनी और फिर पाकिस्तान की पहली महिला. एक दिन पहले ही पाकिस्तान की इस फर्स्ट लेडी का जन्मदिन था.
लियाकत अली करनाल के नवाब के बेटे थे. आकर्षक व्यक्तित्व के धनी थे. आजादी से ठीक पहले भारत में लार्ड माउंटबेटन द्वारा बनाई गई पहली अंतरिम सरकार में वित्त मंत्री थे. लियाकत जब लंदन से पढ़कर लौटे तो उन्होंने मुस्लिम लीग ज्वाइन कर ली. कहा जाता है कि 20 के दशक के आखिर में उनका प्यार परवान चढ़ा. उन्होंने लखनऊ में पहली बार शीला पंत को देखा.
गाय से पाकिस्तान कर रहा है हैरान कर देने वाला ये काम
शीला के पिता थे भारतीय सेना में बड़े अफसर शीला पंत का पूरा नाम ईरीन शीला पंत था. वो अल्मोड़ा के कुमाऊंनी ब्राह्णण परिवार से ताल्लुक रखती थीं. उनके पिता ब्रिटिश सेना में मेजर जनरल थे यानि सेना के बड़े अफसर. अंग्रेजों के साथ काम करने के कारण उन्हें महसूस हुआ कि अगर वो अपना धर्म बदल लें तो उन्हें ज्यादा बेहतर तरक्की मिल सकती है. लिहाजा वो क्रिश्चियन हो गए. तरक्की भी खूब पाई.
कैसे शुरू हुई प्रेम कहानी
उनकी बेटी शीला लखनऊ में कॉलेज में पढने के लिए गईं थीं. बताया जाता है कि वहां वो किसी चैरिटी प्रोग्राम के लिए टिकट बेच रही थीं. उनके पास दो टिकट बचे थे. वो सड़क पर लोगों को रोककर टिकट लेने का आग्रह कर रही थीं. तभी लियाकल अली खान की बग्घी वहां से गुजरी.अगर बचपन में आपके साथ हुआ है ऐसा हादसा, तो डरने के बजाए ऐसे करें दुनिया का सामना
नवाबजादा से जब उन्होंने टिकट खरीदने का आग्रह किया तो उन्होंने एक शर्त रख दी. शायद इसकी वजह ये थी कि लियाकत को वो पहली ही नजर में पसंद आ गईं थीं. उन्होंने कहा कि वो दोनों टिकट खरीद लेंगे, बशर्ते कार्यक्रम में वो उनके साथ बैठें. कुछ हिचकिचाहट के बाद शीला ने हां कर दी. यहीं से दोनों में दिल्लगी शुरू हुई जो बाद में निकाह में तब्दील हो गई.

लंबे कद की सुंदर युवती
शीला लंबे कद की गोरी और सुंदर युवती थीं. जिनके अंदर पारिवारिक अभिजात्यपन के साथ बेहतर शिक्षा की वजह से प्रखरता भी थी. वो अच्छी कविताएं भी लिखतीं थीं. चूंकि पिता सेना में थे और ईसाई धर्म में तब्दील हो चुके थे, लिहाजा उनमें एक खुलापन भी था. वो प्रगतिशील विचारों की थीं. पढाई के साथ समाजसेवा का काम भी करती थीं.
प्रेम कहानी का एक किस्सा ये भी
हालांकि दोनों की प्रेम कहानी को लेकर एक बात और कही जाती है. लखनऊ में इकोनॉमिक्स और सोशियोलॉजी में डबल मास्टर्स डिग्री लेने के बाद वो कोलकाता के किसी कॉलेज में पढाने लगीं. फिर उनकी नौकरी दिल्ली के इंद्रप्रस्थ कॉलेज में लगी. यहां वो अस्सिटेंट प्रोफेसर थीं.
8 कारण जिनके चलते वैलेंटाइन डे पर पार्टनर के साथ प्रेम बढ़ाने के बजाए हो सकता है ब्रेकअप
इसी दौरान लियाकत कॉलेज में भाषण देने आए. उनके भाषण से शीला पंत खासी प्रभावित हुईं. वहीं लियाकत उनकी बुद्धिमत्ता और सुदंरता पर रीझ गए. फिर प्रेमकहानी शुरू हो गई. 1931 में शीला पंत ने अपना धर्म बदला और मुस्लिम बनने के बाद उन्होंने लियाकत से निकाह रचाया.

परिवार ने किस तरह दी शादी पर प्रतिक्रिया
इस विवाह से शीला के परिवार को कोई विरोध नहीं था. होता भी क्यों, परिवार खुद कुमांऊनी ब्राह्मण से ईसाई बना था. लियाकत तब तक जानी-मानी शख्सियत बन चुके थे. बड़ी रियासत के मालिक भी थे. लिहाजा उनके ससुर के रसूख में ये शादी बढोतरी ही कर रही थी. निकाह के बाद उनका नाम कहकशां रखा गया. हालांकि पाकिस्तान में लोग उन्हें बेगम राणा लियाकत खान के तौर पर ही याद करते हैं.
लियाकत की रियासत पश्चिमी उत्तर प्रदेश का मुजफ्फरनगर इलाका मिला था. यहां लियाकत अली ने अपनी इस बेगम के लिए आलीशान कोठी बनवाई. जिसका नाम कहकशां रखा. हालांकि बाद में ये कोठी बिक गई. अब उसमें एक स्कूल चलता है.

वो भारतीय, जिसे हुआ 39 बार प्यार, फिर कर डालीं 39 शादियां
लियाकत अली की दो बीवियां थी. पहली बीवी का इंतकाल बड़ी बीवी के लिए कोठी दिल्ली में थी,जो अब पाकिस्तानी दूतावास के पास है. उसके लिए मुजफ्फरनगर में यह शानदार बंगला बनवाया, जिसमें 5 सूइट हैं, जिनमें खास तरह का प्लास्टर कराया गया था जिससे मक्खी --मच्छर भीतर नहीं आने पाए.
पाकिस्तान की मादर ए वतन भी बनीं
बेगम राणा लियाकत को पाकिस्तान में मादरे ए वतन का खिताब भी मिला. राजनीतिक तौर पर वह पाकिस्तान के निर्माण में खासी सक्रिय रहीं. बाद में जुल्फिकार अली भुट्टो ने उन्हें काबिना मंत्री बनाया. वह सिंध की गर्वनर भी बनीं. 1990 में उनका निधन हुआ.
1984 से 2014 तक, कैसे खिला भाजपा का कमल?
लियाकत अली करनाल के नवाब के बेटे थे. आकर्षक व्यक्तित्व के धनी थे. आजादी से ठीक पहले भारत में लार्ड माउंटबेटन द्वारा बनाई गई पहली अंतरिम सरकार में वित्त मंत्री थे. लियाकत जब लंदन से पढ़कर लौटे तो उन्होंने मुस्लिम लीग ज्वाइन कर ली. कहा जाता है कि 20 के दशक के आखिर में उनका प्यार परवान चढ़ा. उन्होंने लखनऊ में पहली बार शीला पंत को देखा.
गाय से पाकिस्तान कर रहा है हैरान कर देने वाला ये काम
शीला के पिता थे भारतीय सेना में बड़े अफसर शीला पंत का पूरा नाम ईरीन शीला पंत था. वो अल्मोड़ा के कुमाऊंनी ब्राह्णण परिवार से ताल्लुक रखती थीं. उनके पिता ब्रिटिश सेना में मेजर जनरल थे यानि सेना के बड़े अफसर. अंग्रेजों के साथ काम करने के कारण उन्हें महसूस हुआ कि अगर वो अपना धर्म बदल लें तो उन्हें ज्यादा बेहतर तरक्की मिल सकती है. लिहाजा वो क्रिश्चियन हो गए. तरक्की भी खूब पाई.
कैसे शुरू हुई प्रेम कहानी
उनकी बेटी शीला लखनऊ में कॉलेज में पढने के लिए गईं थीं. बताया जाता है कि वहां वो किसी चैरिटी प्रोग्राम के लिए टिकट बेच रही थीं. उनके पास दो टिकट बचे थे. वो सड़क पर लोगों को रोककर टिकट लेने का आग्रह कर रही थीं. तभी लियाकल अली खान की बग्घी वहां से गुजरी.
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नवाबजादा से जब उन्होंने टिकट खरीदने का आग्रह किया तो उन्होंने एक शर्त रख दी. शायद इसकी वजह ये थी कि लियाकत को वो पहली ही नजर में पसंद आ गईं थीं. उन्होंने कहा कि वो दोनों टिकट खरीद लेंगे, बशर्ते कार्यक्रम में वो उनके साथ बैठें. कुछ हिचकिचाहट के बाद शीला ने हां कर दी. यहीं से दोनों में दिल्लगी शुरू हुई जो बाद में निकाह में तब्दील हो गई.

अपने पति पाकिस्तान के पूर्व प्रधानमंत्री लियाकत अली खान के साथ उनकी बेगम
लंबे कद की सुंदर युवती
शीला लंबे कद की गोरी और सुंदर युवती थीं. जिनके अंदर पारिवारिक अभिजात्यपन के साथ बेहतर शिक्षा की वजह से प्रखरता भी थी. वो अच्छी कविताएं भी लिखतीं थीं. चूंकि पिता सेना में थे और ईसाई धर्म में तब्दील हो चुके थे, लिहाजा उनमें एक खुलापन भी था. वो प्रगतिशील विचारों की थीं. पढाई के साथ समाजसेवा का काम भी करती थीं.
प्रेम कहानी का एक किस्सा ये भी
हालांकि दोनों की प्रेम कहानी को लेकर एक बात और कही जाती है. लखनऊ में इकोनॉमिक्स और सोशियोलॉजी में डबल मास्टर्स डिग्री लेने के बाद वो कोलकाता के किसी कॉलेज में पढाने लगीं. फिर उनकी नौकरी दिल्ली के इंद्रप्रस्थ कॉलेज में लगी. यहां वो अस्सिटेंट प्रोफेसर थीं.
8 कारण जिनके चलते वैलेंटाइन डे पर पार्टनर के साथ प्रेम बढ़ाने के बजाए हो सकता है ब्रेकअप
इसी दौरान लियाकत कॉलेज में भाषण देने आए. उनके भाषण से शीला पंत खासी प्रभावित हुईं. वहीं लियाकत उनकी बुद्धिमत्ता और सुदंरता पर रीझ गए. फिर प्रेमकहानी शुरू हो गई. 1931 में शीला पंत ने अपना धर्म बदला और मुस्लिम बनने के बाद उन्होंने लियाकत से निकाह रचाया.

बेगम राणा लियाकत खान
परिवार ने किस तरह दी शादी पर प्रतिक्रिया
इस विवाह से शीला के परिवार को कोई विरोध नहीं था. होता भी क्यों, परिवार खुद कुमांऊनी ब्राह्मण से ईसाई बना था. लियाकत तब तक जानी-मानी शख्सियत बन चुके थे. बड़ी रियासत के मालिक भी थे. लिहाजा उनके ससुर के रसूख में ये शादी बढोतरी ही कर रही थी. निकाह के बाद उनका नाम कहकशां रखा गया. हालांकि पाकिस्तान में लोग उन्हें बेगम राणा लियाकत खान के तौर पर ही याद करते हैं.
लियाकत की रियासत पश्चिमी उत्तर प्रदेश का मुजफ्फरनगर इलाका मिला था. यहां लियाकत अली ने अपनी इस बेगम के लिए आलीशान कोठी बनवाई. जिसका नाम कहकशां रखा. हालांकि बाद में ये कोठी बिक गई. अब उसमें एक स्कूल चलता है.

शीला ईरीन पंत जो बाद में बेगम राणा लियाकत खान बन गईं
वो भारतीय, जिसे हुआ 39 बार प्यार, फिर कर डालीं 39 शादियां
लियाकत अली की दो बीवियां थी. पहली बीवी का इंतकाल बड़ी बीवी के लिए कोठी दिल्ली में थी,जो अब पाकिस्तानी दूतावास के पास है. उसके लिए मुजफ्फरनगर में यह शानदार बंगला बनवाया, जिसमें 5 सूइट हैं, जिनमें खास तरह का प्लास्टर कराया गया था जिससे मक्खी --मच्छर भीतर नहीं आने पाए.
पाकिस्तान की मादर ए वतन भी बनीं
बेगम राणा लियाकत को पाकिस्तान में मादरे ए वतन का खिताब भी मिला. राजनीतिक तौर पर वह पाकिस्तान के निर्माण में खासी सक्रिय रहीं. बाद में जुल्फिकार अली भुट्टो ने उन्हें काबिना मंत्री बनाया. वह सिंध की गर्वनर भी बनीं. 1990 में उनका निधन हुआ.
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Updated: February 18, 2019 03:24 PM ISTVIDEO: मेजर चित्रेश बिष्ट की शहादत के बाद सड़कों पर हो रहा प्रदर्शन