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INS Chakra: समंदर में 10,300 किमी सफर तय कर भारत पहुंची थी पहली परमाणु पनडुब्‍बी, घबराते थे चीन-पाक

आईएनएस चक्र-1 को रूस से तीन साल के लिए किराये पर लिया गया था.

आईएनएस चक्र-1 को रूस से तीन साल के लिए किराये पर लिया गया था.

First Nuclear Submarine in India - रूसी परमाणु पनडुब्‍बी आईएनएस चक्र को समुद्री मार्ग से भारत लाने वाले दल में सभी भारत ...अधिक पढ़ें

हाइलाइट्स

आईएनएस चक्र-1 ने ऑपरेशनल लाइफ में 72000 मील का सफर समुद्र में किया. फिर रूस लौट गई.
परमाणु पनडुब्‍बी आईएनएस चक्र-1 से भारतीय नौसेना ने 5 मिसाइल और 42 टॉरपीडो फायर किए थे.

INS Chakra: भारत की समुद्री सीमाओं और पानी के नीचे दुश्‍मनों को मुंहतोड़ जवाब देने के लिए भारतीय नौसेना ने अपनी ताकत अब काफी बढ़ा ली है. रूस इस काम में लगातार भारत की मदद कर रहा है. देश को पहली परमाणु पनडुब्‍बी भी रूस ने ही दी थी. देश की पहली परमाणु पनडुब्‍बी रूस से 18 दिन में 10,300 किमी का समुद्री सफर तय कर 3 फरवरी 1988 को विशाखापत्‍तनम पहुंची थी. एसएसजीएन के-43 को भारत पहुंचने के बाद आईएनएस चक्र नाम दिया गया. तत्‍कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने विशाखापत्‍तनम पहुंचकर देश में इस परमाणु पनडुब्‍बी का स्‍वागत किया था.

आईएनएस को कोल्‍ड वॉर खत्‍म होने के बाद तीन साल के लिए रूस से किराये पर लिया गया था. भारतीय नौसेना को चार्ली क्‍लास न्‍यूक्लियर क्रूज मिसाइल सबमरीन दी गई थी. तब ये पहली बार हुआ कि किसी देश ने परमाणु पनड़ब्‍बी किराये पर दी थी. ‘फॉक्‍सट्रॉट टू अरिहंत: द स्‍टोरी ऑफ इंडियन नेवीज सबमरीन आर्म’ के लेखक जोसेफ पी. चाको ने लिखा कि आईएनएस चक्र ने अपनी ऑपरेशनल लाइफ में 72,000 मील का समुद्री सफर किया. इसका मुख्‍य पावर प्‍लांट कुल 430 ऑपरेटेड रहा. वहीं, इसने 5 मिसाइल दागीं और 42 टॉरपीडो फायर किए. इस परमाणु पनडुब्‍बी के भारतीय नौसेना के बेड़े में शामिल होने से पाकिस्‍तान ही नहीं चीन भी थर्राते थे.

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आईएनएस चक्र का प्रशिक्षण लेने के लिए एक गोपनीय अभियान के तहत नौसेना ने अपने एक अधिकारी को रूस भेजा था.

प्रशिक्षण के लिए गए और पनडुब्‍बी लेकर लौटे
भारत ने इस पनडुब्‍बी को 3 साल की लीज पर लेने के लिए जुलाई 1987 में समझौता किया था. रूस ने भारत से कहा कि परमाणु पनडुब्‍बी की लीज को आगे नहीं बढ़ाया जाएगा. लिहाजा, 17 दिसंबर 1990 को आईएनएस चक्र ने भारत से वापसी की यात्रा शुरू कर दी और 5 जनवरी 1991 को रूस पहुंच गई. भारत ने इस पनडुब्‍बी को लाने से पहले काफी तैयारी भी की थी. भारतीय नौसेना ने कॉमोडोर अरुण्‍ण कुमार को परमाणु पनडुब्‍बी का पूरा प्रशिक्षण हासिल करने के लिए रूस भेजा गया. वह इस गोपनीय अभियान पर अक्‍टूबर 1983 से अप्रैल 1986 तक रहे. वह 30 महीने के प्रशिक्षण के बाद जब लौटे तो साथ में आईएनएस चक्र को लेकर आए थे.

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आईएनएस चक्र-2 को आने में क्‍यों हुई देरी 
आईएनएस चक्र-1 के दो दशक बाद यानी अप्रैल 2012 में नौसेना में रूसी मूल की पनडुब्बी ‘नेरपा’ को शामिल किया गया. तत्‍कालीन रक्षा मंत्री एके एंटनी ने नेरपा को औपचारिक तौर पर नौसेना में शामिल किया. इसे आईएनएस चक्र-2 नाम दिया गया. इसे रूस से 10 साल के लिए किराये पर लिया गया था. भारत ने पनडुब्बी को किराये पर लेने के लिए 2004 में रूस के साथ 90 करोड़ डॉलर का समझौता किया था. इसे पहले ही भारत को सौंपा जाना था. लेकिन, 2008 में इस पनडुब्‍बी के फायर फाइटिंग सिस्‍टम में गड़बड़ी की वजह से जहरीली गैसों का रिसाव हुआ. इसी दौरान आग लगने से पनडुब्‍बी में सवार 20 लोगों की मौत हो गई. इस कारण इसकी आपूर्ति का समय बदलना पड़ा था.

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भारत ने 2012 में रूस से फिर परमाणु पनडुब्‍बी अईएनएस-2 किराये पर ली.

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दुनिया के खास क्‍लब में शामिल हुआ भारत
आईएनएस चक्र-2 आने के बाद भारत अमेरिका, रूस, चीन, फ्रांस, ब्रिटेन के परमाणु पनडुब्‍बी की ताकत रखने वाले देशों के क्लब में शामिल हो गया था. आईएनएस चक्र-2 का वजन 8,140 टन और लंबाई 110 मीटर थी. समुद्र में ये पनडुब्‍बी 43 किमी प्रति घंटा की गति से सफर तय कर सकती थी. इस पनडुब्‍बी के भारतीय नौसेना के बेड़े में शामिल होने से पाकिस्‍तान ही नहीं चीन भी चिंतित हो गया था.

Tags: India Russia defence deal, Indian navy, Nuclear weapon, Submarines

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