सावरकर भाइयों में सबसे बड़े गणेश दामोदर सावरकर का निधन आज ही के दिन साल 1945 में हुआ था. गणेश सावरकर का दूसरा ज्यादा प्रचलित नाम बाबाराव भी था. उन्होंने वीर सावरकर की ही तरह आजादी की लड़ाई में अहम योगदान दिया. हालांकि बाबाराव का नाम कम ही चर्चा में आता है. वीर सावरकर जब इंग्लैंड प्रवास पर थे, तब बाबाराव उनकी कविताओं को संपादित कर उसे छपने के लिए प्रेस भेजा करते और उसका प्रचार करते थे.
बाबाराव का जन्म साल 1879 में महाराष्ट्र के नासिक के पास भागपुर नामक गांव में चितपावन ब्राह्मण परिवार में हुआ था. शुरुआती शिक्षा के दौरान बाबाराव का मन पढ़ाई से इतर धर्म, योग और जप-तप में रमने लगा था. वे लगातार इन विषयों को पढ़ने लगे और आसपास आए इन विषयों के जानकारों से मिलने लगे. यहां तक कि उनका इरादा घर छोड़कर संन्यास लेने का बन चुका था कि तभी उनके पिता का प्लेग महामारी में निधन हो गया. 7 साल पहले उनकी मां राधाबाई का भी इसी महामारी में देहांत हो चुका था.
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घर में बड़ा भाई होने के नाते बाबाराव पर बाकी दो भाइयों और बहन की देखभाल का जिम्मा आ गया था. इसी वजह से उनका पूरी तरह से धर्म की सेवा में लगने का सपना अधूरा रह गया. हालांकि धर्म ने उनका साथ नहीं छोड़ा और आगे के समय में बाबाराव हिंदू राष्ट्रवाद के कट्टर समर्थक के रूप में सामने आए.

बाबाराव के छोटे भाई वीर सावरकर का नाम ब्रिटिश काल में ज्यादा चर्चा में रहा
महाराष्ट्र में उस दौरान अभिनव भारत सोसायटी नामक क्रांतिकारी दल काम कर रहा था. बाबाराव परिवार की देखभाल के साथ ही उस दल से जुड़ गए और जल्द ही उसके सक्रिय सदस्य हो गए. खुद छोटे भाई वीर सावरकर भी इसी दल से जुड़कर आजादी की मुहिम का हिस्सा बने थे. वैसे माना तो ये भी जाता है कि बाबाराव ने ही इस दल की शुरुआत की थी, जैसा कि बॉम्बे हाईकोर्ट ने कहा था. आगे चलकर बाबाराव ने दल के लिए पैसे जुटाने का काम अपने हाथ में ले लिया ताकि उससे बंदूक, पर्चे आदि खरीदे जा सकें और देश की आजादी की अलख जागे रहे.
इसी बीच छोटे भाई वीर सावरकर लंदन के ग्रे इन कॉलेज से वकालत की डिग्री हासिल करने चले गए. तब वे भी आजादी के आंदोलन से पूरी तरह से जुड़े हुए थे और वहां से कविताएं, भाषण, लेख समुद्र के रास्ते से भारत भेजा करते. ये बाबाराव का जिम्मा था, कि असंपादित चीजें संपादित होकर प्रकाशित भी हों. ये काम खतरे से खाली नहीं था.
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बाबाराव खुद भी बढ़िया लिखा करते थे. उनके लेखन में देशप्रेम और शोध साफ दिखता था. काफी शोध के बाद उन्होंने अंग्रेजी में एक किताब लिखी- इंडिया एज ए नेशन. ये किताब जब्त न हो जाए और आंदोलन ठप न हो जाए, इसके लिए किताब छद्म नाम दुर्गानंद नाम से लिखी गई. हालांकि जल्द ही इस बात की भनक अंग्रेजी हुकूमत को लग गई. किताब पर बैन लग गया. रातोंरात सारी प्रतियां दुकानों से उठा ली गईं और बाबाराव की खोजबीन का काम शुरू हो गया. अंग्रेज पहले से छोटे भाई वीर सावरकर पर भड़के हुए थे और आजादी के आंदोलन में सक्रिय भूमिका के कारण बाबाराव इस बार गुस्से का शिकार हुए.

हुकूमत के लिए बेहद खतरनाक मानते हुए ब्रितानी सरकार ने गणेश सावरकर को काला पानी की सजा सुनाई
साल 1909 में नासिक से बाबाराव की गिरफ्तारी हुई और उनपर देशद्रोह का मुकदमा चला. उन्हें भी अपनी हुकूमत के लिए बेहद खतरनाक मानते हुए ब्रितानी सरकार ने दूसरे खतरनाक कैदियों की तरह ही काला पानी की सजा सुनाई. पूरे 20 सालों तक वे अंडमान की सेल्युलर जेल की तंग कोठरी में असहनीय यातनाएं झेलते रहे. बाद में साल 1921 में उन्हें गुजरात लाया गया और सालभर तक वे साबरमती जेल में बंद रखने के बाद अंततः रिहा कर दिए गए.
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इतनी लंबी सजा और घोर यातनाएं झेलने के कारण बाबाराव की सेहत काफी गिर गई थी लेकिन वे रिहाई के बाद भी चुप नहीं बैठे, बल्कि हिंदू राष्ट्रवाद की ओर काम करने लगे. उन्हें डर था कि देश की आजादी के साथ बंटवारे जैसी बात भी उठ सकती है और ऐसा हो, इससे पहले बहुसंख्यकों को एकजुट हो जाना चाहिए. इसी मिशन के साथ वे डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार के संपर्क में आए, जो खुद एक हिंदू राष्ट्रवादी थी. इसी दौरान राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की दिशा-दशा तैयार हुई थी.
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गणेश ने मराठी में एक निबंध लिखा था 'राष्ट्र मीमांसा', जो अंग्रेजr में गोलवलकर के नाम से 'We or our Nationhood Defined' शीर्षक से छपा था. बाबाराव लिखित इस निबंध ने ही एक तरह से आरएसएस की मूलभूत अवधारणा को स्पष्ट किया था. यही कारण है कि उन्हें आरएसएस के पांच संस्थापकों में से एक माना जाता है. इस बात का जिक्र पूर्व यूनियन मिनिस्टर एमजे अकबर की किताब India: The Siege Within में मिलता है. किताब में पांच लोगों हेडगेवार के अलावा बाबाराव, डॉ बीएस मूंजे, डॉ एलवी परांजपे और डॉ थोलकर के नाम शामिल हैं.undefined
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Tags: Britain, Freedom fighters, RSS, Vir Sawarkar
FIRST PUBLISHED : March 16, 2021, 06:49 IST