'मिशन शक्ति' को लेकर सबसे ज्यादा पूछे जा रहे हैं ये सवाल, यहां जानिए उनके जवाब

प्रतीकात्मक तस्वीर
एंटी सैटेलाइट मिसाइल स्वदेशी तकनीकी से निर्मित था. भारत ने इस मिशन को पूरी तरह से स्वदेशी तकनीकी के जरिए अंजाम दिया है.
- News18Hindi
- Last Updated: March 28, 2019, 11:04 AM IST
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बुधवार को बताया कि भारत अंतरिक्ष में दुनिया की चौथी सबसे बड़ी महाशक्ति बन गया है. पीएम ने बताया कि डीआरडीओ के 'मिशन शक्ति' का परिक्षण सफलतापूर्वक पूरा हुआ है. इस मिशन के तहत भारत ने अर्थ ऑरबिट यानी LEO में मौजूद एक सैटेलाइट को मार गिराया है. इससे पहले अमेरिका, रूस और चीन ही ये कारनामा कर सके हैं.
इस मिशन को लेकर सभी के मन में कुछ सवाल उठ रहे होंगे. सरकार ने इस मिशन को लेकर सबसे ज्यादा पूछे गए सवालों की एक लिस्ट जारी की है, जिनके जवाब हम आपके लिए लेकर आए हैं.
क्या है मिशन शक्ति?भारत ने बुधवार (27 मार्च) को ओडिशा के तट से डॉक्टर एपीजे अब्दुल कलाम द्वीप प्रक्षेपण परिसर से एक एंटी सैटेलाइट मिसाइल का परीक्षण किया. यह डीआरडीओ का एक तकनीकी मिशन था. परीक्षण के दौरान जिस मिसाइल को निशाना बनाया गया, वे भारत के उन सैटेलाइट में से है, जो पृथ्वी की निचली कक्षा में मौजूद है. यह परीक्षण पूरी तरह से सफल रहा और प्लानिंग के अनुसार ही इसने सभी मापदंडों को पूरा किया है. परीक्षण के लिए बेहद सटीक और तकनीकी क्षमता की जरूरत होती है और डीआरडीओ ने अपने सभी तय लक्ष्यों को हासिल किया है.
एंटी सैटेलाइट मिसाइल स्वदेशी तकनीक से निर्मित था. भारत ने इस मिशन को पूरी तरह से स्वदेशीतकनीक के जरिए अंजाम दिया है. इसके साथ ही भारत, संयुक्त राज्य अमेरिका, रूस और चीन के क्लब
में शामिल हो गया है.
हमने कौन सी सैटेलाइट का किया इस्तेमाल?
इसमें इस्तेमाल की गई एंटी-सैटेलाइट मिसाइल को डीआरडीओ द्वारा तैयार किया गया था. इसमें बैलिस्टिक मिसाइल डिफेंस इंटरसेप्टर था.
क्या परीक्षण के बाद स्पेस से मलबा गिरेगा?
आने वाले कुछ सप्ताह में परीक्षण से उत्पन्न हुआ मलबा धरती पर गिरेगा. हालांकि इससे पर्यावरण को कोई नुकसान नहीं होगा और ये आसमान में नहीं फैलेगा.
हमने यह परीक्षण क्यों किया?
भारत अंतरिक्ष कार्यक्रमों में तेजी से आगे बढ़ रहा है. पिछले पांच सालों में यह रफ्तार और तेज हो गई है. भारत ने मंगल ग्रह पर मंगलयन मिशन को सफलतापूर्वक लॉन्च किया है. वहीं सरकार ने गगनयान मिशन को भी मंजूरी दे दी है. यह परीक्षण भी देश को सफलता दिलाएगा. भारत ने संचार उपग्रह, अर्थ आबर्जवेशन सैटेलाइट, एक्सपेरिमेंट सैटेलाइट और नेविगेशन सैटेलाइट को मिलाकर 102 अंतरिक्ष यान मिशन शुरू किया है. यह परीक्षण ये जांचने के लिए था कि हम अंतरिक्ष संबंधी अपनी संपत्ति की सुरक्षा करने में सक्षम हैं या नहीं. अंतरिक्ष में देश के हितो की रक्षा करना भी सरकार की जिम्मेदारी है.
यह परीक्षण अब क्यों किया गया?
भारत को इस परीक्षण की सफलता पर पूरा भरोसा था. इसलिए इसे अंजाम दिया गया. यह परीक्षण राष्ट्रीय सुरक्षा के प्रति सरकार की मंशा को दर्शाता है. भारत ने इस मिशन को 2014 में शुरू किया था.
क्या भारत अब अंतरिक्ष में भी हथियारों की रेस में शामिल हो गया है?
भारत का बाहरी अंतरिक्ष में हथियारों की रेस में शामिल होने का कोई इरादा नहीं है. देश चाहता है कि अंतरिक्ष का उपयोग केवल शांतिपूर्ण उद्देश्यों के लिए किया जाना चाहिए. यह परीक्षण इसलिए किया गया है कि कोई संदिग्ध सैटेलाइट भारतीय सीमा में प्रवेश न कर पाए. ऐसा करने से दुश्मन देश भारत की जासूसी नहीं कर पाएंगे.
हथियारों की तैनाती पर क्या है अंतरराष्ट्रीय कानून?
वर्ष 1967 में 'आउटर स्पेस ट्रीटी' नाम से एक अंतरराष्ट्रीय संधि हुई. इसमें तय हुआ कि अंतरिक्ष में किसी भी तरह के विस्फोटक हथियार को तैनात नहीं किया जा सकता है. फरवरी 2019 तक इस संधि पर 108 देश हस्ताक्षर कर चुके हैं. भारत भी इस संधि का एक हस्ताक्षरकर्ता है और 1982 में इसकी पुष्टि की गई. बाहरी अंतरिक्ष संधि केवल बाहरी अंतरिक्ष में सामूहिक विनाश के हथियारों को प्रतिबंधित करती है, न कि सामान्य हथियारों को. भारत किसी भी अंतरराष्ट्रीय कानून या संधि का उल्लंघन नहीं करता है.
क्या यह परीक्षण किसी देश के खिलाफ है?
डीआरडीओ का यह परीक्षण किसी भी देश के खिलाफ नहीं है. भारत जो अंतरिक्ष में अपनी क्षमताओं का विस्तार कर रहा है इसका कोई सामरिक उद्देश्य नहीं है.
यह भी पढ़ें: किन देशों के पास है एंटी सैटेलाइट हथियार तकनीक
यह भी पढ़ें- राहुल गांधी को इन दो लोगों ने दिया हर खाते में 72 हजार डालने का आइडिया
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इस मिशन को लेकर सभी के मन में कुछ सवाल उठ रहे होंगे. सरकार ने इस मिशन को लेकर सबसे ज्यादा पूछे गए सवालों की एक लिस्ट जारी की है, जिनके जवाब हम आपके लिए लेकर आए हैं.
क्या है मिशन शक्ति?भारत ने बुधवार (27 मार्च) को ओडिशा के तट से डॉक्टर एपीजे अब्दुल कलाम द्वीप प्रक्षेपण परिसर से एक एंटी सैटेलाइट मिसाइल का परीक्षण किया. यह डीआरडीओ का एक तकनीकी मिशन था. परीक्षण के दौरान जिस मिसाइल को निशाना बनाया गया, वे भारत के उन सैटेलाइट में से है, जो पृथ्वी की निचली कक्षा में मौजूद है. यह परीक्षण पूरी तरह से सफल रहा और प्लानिंग के अनुसार ही इसने सभी मापदंडों को पूरा किया है. परीक्षण के लिए बेहद सटीक और तकनीकी क्षमता की जरूरत होती है और डीआरडीओ ने अपने सभी तय लक्ष्यों को हासिल किया है.
में शामिल हो गया है.
हमने कौन सी सैटेलाइट का किया इस्तेमाल?
इसमें इस्तेमाल की गई एंटी-सैटेलाइट मिसाइल को डीआरडीओ द्वारा तैयार किया गया था. इसमें बैलिस्टिक मिसाइल डिफेंस इंटरसेप्टर था.
क्या परीक्षण के बाद स्पेस से मलबा गिरेगा?
आने वाले कुछ सप्ताह में परीक्षण से उत्पन्न हुआ मलबा धरती पर गिरेगा. हालांकि इससे पर्यावरण को कोई नुकसान नहीं होगा और ये आसमान में नहीं फैलेगा.
हमने यह परीक्षण क्यों किया?
भारत अंतरिक्ष कार्यक्रमों में तेजी से आगे बढ़ रहा है. पिछले पांच सालों में यह रफ्तार और तेज हो गई है. भारत ने मंगल ग्रह पर मंगलयन मिशन को सफलतापूर्वक लॉन्च किया है. वहीं सरकार ने गगनयान मिशन को भी मंजूरी दे दी है. यह परीक्षण भी देश को सफलता दिलाएगा. भारत ने संचार उपग्रह, अर्थ आबर्जवेशन सैटेलाइट, एक्सपेरिमेंट सैटेलाइट और नेविगेशन सैटेलाइट को मिलाकर 102 अंतरिक्ष यान मिशन शुरू किया है. यह परीक्षण ये जांचने के लिए था कि हम अंतरिक्ष संबंधी अपनी संपत्ति की सुरक्षा करने में सक्षम हैं या नहीं. अंतरिक्ष में देश के हितो की रक्षा करना भी सरकार की जिम्मेदारी है.
यह परीक्षण अब क्यों किया गया?
भारत को इस परीक्षण की सफलता पर पूरा भरोसा था. इसलिए इसे अंजाम दिया गया. यह परीक्षण राष्ट्रीय सुरक्षा के प्रति सरकार की मंशा को दर्शाता है. भारत ने इस मिशन को 2014 में शुरू किया था.
क्या भारत अब अंतरिक्ष में भी हथियारों की रेस में शामिल हो गया है?
भारत का बाहरी अंतरिक्ष में हथियारों की रेस में शामिल होने का कोई इरादा नहीं है. देश चाहता है कि अंतरिक्ष का उपयोग केवल शांतिपूर्ण उद्देश्यों के लिए किया जाना चाहिए. यह परीक्षण इसलिए किया गया है कि कोई संदिग्ध सैटेलाइट भारतीय सीमा में प्रवेश न कर पाए. ऐसा करने से दुश्मन देश भारत की जासूसी नहीं कर पाएंगे.
हथियारों की तैनाती पर क्या है अंतरराष्ट्रीय कानून?
वर्ष 1967 में 'आउटर स्पेस ट्रीटी' नाम से एक अंतरराष्ट्रीय संधि हुई. इसमें तय हुआ कि अंतरिक्ष में किसी भी तरह के विस्फोटक हथियार को तैनात नहीं किया जा सकता है. फरवरी 2019 तक इस संधि पर 108 देश हस्ताक्षर कर चुके हैं. भारत भी इस संधि का एक हस्ताक्षरकर्ता है और 1982 में इसकी पुष्टि की गई. बाहरी अंतरिक्ष संधि केवल बाहरी अंतरिक्ष में सामूहिक विनाश के हथियारों को प्रतिबंधित करती है, न कि सामान्य हथियारों को. भारत किसी भी अंतरराष्ट्रीय कानून या संधि का उल्लंघन नहीं करता है.
क्या यह परीक्षण किसी देश के खिलाफ है?
डीआरडीओ का यह परीक्षण किसी भी देश के खिलाफ नहीं है. भारत जो अंतरिक्ष में अपनी क्षमताओं का विस्तार कर रहा है इसका कोई सामरिक उद्देश्य नहीं है.
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