इसमें कोई संदेह नहीं है कि अगर जीन (Genes) में बदलाव होते जीव के पूरे शरीर में बदलाव आ जाता है. वैज्ञानिकों ने जीन में बदलाव या जीन म्यूटेशन (Gene Mutations) को कई लाइलाज बीमारियों का कारण भी बताया, लेकिन फंतासी किताबों और फिल्मों में जीन म्यूटेशन से नायकों में सुपरपॉवर तक आने की कहानियां बनाई गईं. एक्समैन सीरीज में तो जीन म्यूटेशन से अलग ही मानव नस्ल की कहानी गढ़ी गई है. लेकिन क्या असल जिंदगी में जीन म्यूटेशन से इंसान में साकारात्मक बदलाव हो सकते हैं. नए अध्ययन में पाया गाया है कि जीन म्यूटेशन से इंसान ज्यादा बुद्धिमान (Intelligent) हो सकते हैं.
सकारात्मक भी हो सकते हैं म्यूटेशन के प्रभाव
वास्तव में जब जीन में बदालव होता है, जिसे जीन म्यूटेशन भी कहते हैं, तब इंसान के शरीर के तंत्रिका तंत्र में बदलाव देखने को मिलते हैं. इंसानों पर इसके प्रभाव का अध्ययन करने के लिए लेइपजिग और वुर्जबर्ग यूनिवर्सिटी के तंत्रिकावैज्ञानिकों ने मक्खी का उपयोग किया और दर्शाया कि न्यूरोनल जीन में म्यूटेशन के नकारात्मक प्रभाव के अलावा सकारात्मक प्रभाव भी हो सकते हैं और इससे इंसानों का बुद्धिमत्ता सूचकांक बढ़ सकता है.
एक खास बिंदु- सिनेप्स
इस अध्ययन के नतीजे प्रतिष्ठित ब्रेन जर्नल में प्रकाशित हुए हैं. अधिकांश तंत्रिका तंत्र विकारों का कारण दिमाग में संचार व्यवस्था में गड़बड़ी के कारण होते हैं. यह संचार दिमाग में सिनेप्स या अंतर्ग्रथन के जरिए होता है जो वे बिंदु होते हैं जिसके जरिए तंत्रिका कोशिकाएं एक दूसरे से बात करती हैं. इसकी वजह से जटिल आणविक प्रणाली में खराबी आ सकती है.
एक रिपोर्ट ने खींचा ध्यान
लेइपजिग के प्रोफेसर तोबियास लैंगनहैन और वुर्जबर्ग के प्रोफेस मैनफ्रेड हैकमैन ने एकवैज्ञानिक प्रकाशन में पढ़ा कि म्यूटेशन सिनेप्स संबंधी प्रोटीन को नुकसान पहुंचा सकता है. इससे दोनों ही न्यूरोबायोलॉजिस्ट की दिलचस्पी जागी. इसमें बताया गया था कि इस म्यूटेशन के कारण मरीज तो अंधे हो गए थे, लेकिन वे औसत से अधिक बुद्धिमान थे.
मक्खियों पर प्रयोग
इसी पहलू ने दोनों वैज्ञानिकों का ध्यान खींचा. लैंगनहैन ने उस म्यूटेशन के बारे में बताया कि वह बहुत ही कम पाया जाने वाला म्यूटेशन है जो किस कार्य को कम या खत्म करने के बजाय बेहतर बनाता है. लैंगनहैन और हैकमैन काफी सालों से सिनेप्टिक कार्यों के विश्लेषण के लिए मक्खियों का उपयोग कर रहे थे. जिसमें उनके शोधकार्य में मरीजों के म्यूटेसन को मक्खियों की समकक्ष जीन में डालना था.
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विशेष तकनीक का उपयोग
शोधकर्ताओं ने इलेक्ट्रोफिजियोलॉजी जैसे तकनीक का उपयोग कर यह जानने का प्रयास किया कि म्यूटेशन में सिनेप्स को क्या होता है. उनका मानना था कि म्यूटेशन प्रोटीन को इतना होशियार इसलिए बना देता है क्योंकि वह घायल प्रोटीन के न्यूरोन के बीच का संचार को बेहतर बना देता है. फिलहाल मानवों में इस तरह के मापन संभव नहीं हैं इसलिए उन्होंने जानवरों के प्रतिमान के रूप में चुना.
मक्खियों पर क्यों
लैंगनहैन ने बताया कि इंसानों में रोग पैदा करने वाले 75 प्रतिशत जीन्स घरेलू मक्खियों में भी होते हैं. पहले वैज्ञानिकों ने ऑक्सफोर्ड के शोधकर्ताओं के साथ मिलकर दर्शाया कि मक्खियों के प्रोटीन जिसे आरआईएमकहते हैं आणविक आधार पर इंसानों के प्रोटीन की तरह ही होते हैं. ये ‘अध्ययन के इंसानों पर उपयोगी होना’ सिद्ध करने के लिए जरूरी था.
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इसके बाद वैज्ञानिकों ने म्यूटेशन को मक्खियों के जीनोम में डाला और उसी तरह अध्ययन किया जैसा कि उन्होंने मरीजों का अध्ययन किया था. उसके बाद सिनेप्टिक गतिविधि जानने के लिए उन्होंने इलोक्ट्रोफिजियोलॉजिकल मापन किए. और उन्होंने मक्खियों में भी इंसानों की ही तरह के प्रभाव पाए, लेकिन साथ ही मक्खियों में संज्ञानात्मक प्रदर्शन भी बेहतर पाया. लेकिन साथ ही मक्खियों में अधापन भी देखा. शोधकर्ताओं का कहना है कि उन्हें इस तरह के जीन म्यूटनेशन के अध्ययन संबंधी एक बेहतर उपकरण मिल गया है.
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