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अपनी संसद का आकार छोटा क्यों कर रहा है जर्मनी?

जर्मनी में सत्तारूढ़ पार्टियां काफी समय से संसद की सीटें कम करना चाह रही थीं. (प्रतीकात्मक तस्वीर: Pixabay)

जर्मनी में सत्तारूढ़ पार्टियां काफी समय से संसद की सीटें कम करना चाह रही थीं. (प्रतीकात्मक तस्वीर: Pixabay)

जर्मनी में संसद के सदस्यों की संख्या कम करने के लिए बिल पास कराया जा रहा है. इसके पास होने पर वहां के उच्च सदलन बुन्डेस ...अधिक पढ़ें

हाइलाइट्स

जर्मनी की संसद बुंडेस्टैग में अभी 736 सदस्य संख्या है.
वहां की सरकार सांसद की संख्या कम करना चाहती है.
इस फैसले का समर्थन और विरोध दोनों हो रह है.

भारत में बढ़ती जनसंख्या के दबाव में जनप्रतिनिधियों की संख्या में संतुलन लाने की जरूरत को देखते हुए नई संसद में सीटों की संख्या बढ़ा दी गई है. हालाकि अभी औपचारिक तौर पर सांसदों की संख्या उतनी ही है जितनी की पहले थी, लेकिन नई संसद में भविष्य की प्रबल संभावनाओं का ख्याल रखा गया है. लेकिन जर्मनी में उल्टा हो रहा है, वहां की संसद के उच्च सदन बुन्डेस्टैग का आकार कम किया जा रहा है. पिछले हफ्ते ही जर्मनी में सोशल डेमोक्रैट्स (एसपीडी), ग्रीन्स, और नियोलिबरल फ्री डैमोक्रैट (एफपीडी) के गठबंधन वाली सरकार ने इससे संबंधित बिल संसद में पेश किया है.

पूरी दुनिया का खिंचा है ध्यान
इस बिल में जर्मनी में तो हलचल है ही, पूरी दुनिया का ध्यान भी वहां पर गया है कि आखिर वहां ऐसा  क्यों हो रहा है. दरअसल जर्मनी की केंद्रीय संसद में 736 सदस्य हैं जोकि दुनिया के किसी भी लोकतांत्रिक पद्धति वाली संसद के सदस्यों की संख्या की तुलना में सबसे ज्यादा है. केवल चीन के नेशनल पीपुल्स कॉन्ग्रेस और यूके की गैरचुने गए हाउस ऑफ लॉर्ड्स ही इसके अपवाद हैं.

भारत से भी कहीं ज्यादा
दूसरी तरफ भारत को देखा जाए तो यहां की संसद के कुल सांसद ही  548 हैं जबकि क्षेत्रफल और आबादी के लिहाज से भारत ही नहीं भारत के कई राज्य तक जर्मनी से कहीं ज्यादा बड़े हैं. इस विचित्र स्थिति की वजह जर्मनी का चुनावी तंत्र है. जर्मनी के मतदाता संघीय चुनाव में दो तरह के वोट देते हैं. एक वे अपने संसदीय क्षेत्र का प्रतिनिधित्व करने वाले डिप्टी चुनते हैं और एक वोट से वे अपनी पसंद की पार्टी को चुनते हैं.

दो तरह के संघीय वोट
जर्मनी की संसद बुंडेस्टैग में सीधे चुने गए सांसद के साथ साथ पार्टी की सूची से चुने गए नेता के रूप में प्रतिनिधि होते हैं. दूसरे वोट से बुंडेस्टैग में पार्टी का आकार तय होता है. कई बार पार्टी उन्हें आवंटित सीटों से कहीं ज्यादा सीट जीत लेती है जिसे ओवरहैंग मेन्डेट कहते हैं. इसके बाद जनादेश को संतुलित करने के लिए अन्य पार्टियों को लेवलिंग मैन्डेट प्रदान किया जाता है.

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जर्मनी के लोग अपनी संसद के लिए दो तरह के संघीय वोट देते हैं. (प्रतीकात्मक तस्वीर: Pixabay)

लेवलिंग मैन्डेट से सीटों में इजाफा
लेवलिंग मैन्डेट सभी दूसरी पार्टियों को दिया जाता है जिससे वे पार्टी वोट द्वारा सीटों का एक अनुपात हासिल करती हैं  2021 के चुनावों में इस वजह से 138 अतिरिक्त सीटों का इजाफा हो गया. इसकी वजह यह रही थी कि पिछले कुछ समय से जर्मनी में छोटी पार्टियों की संख्या ज्यादा बढ़ गई थी जबकि बड़ी पार्टियों का सभी संसदीय क्षेत्र में समर्थन कम हो गया. इसका कारण सांसदों की संख्या 598 से 736 हो गई.

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बड़ी और खर्चीली है संसद
जर्मनी में कई ओपिनियन पोल सुझाते हैं कि अधिकांश जर्मन महसूस करते हैं कि उनके देश की संसद बहुत बड़ी है और इससे बहुत खर्चीली भी है. 2023 के संघीय बजट में केवल बुंडेस्टैग के ही ले 1.4 अरब यूरो का आवंटन हुआ था. सत्ताधारी  गठबंधन ओवरहैंग और लेवलिंग सीटों से पूरी तरह से मुक्त होने चाहता है. इसका मतलब यही होगा कि सीधे तौर पर चुने गए प्रतिनिधियों को स्वतः संसद में सीट नहीं मिलेगी.

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ओलाफ शुल्ज के अगुआई वाले गठबंधन वाली सरकार संसद में सीटों को कम करने का कानून ला रही है. (प्रतीकात्मक तस्वीर: Pixabay)

छोटी पार्टी के लिए
नए प्रस्ताव में एक और धारा को खत्म करने का प्रस्ताव है जिसके मुबातिक अगर की कम से कम तीन मैन्डेट जीतने वाली पार्टी को अपने दूसरे वोट के अनुताप में बुंडेस्टैग में प्रवेश मिल सकेगा, भले ही वह संसद में प्रवेश की न्यूनतम 5 फीसद वोट हासिल करने की शर्त पूरी ना कर सके. वाम पार्टियों को इसका 2021 के चुनाव में फायदा मिला था. पार्टी को केवल 4.9 फीसद वोट मिले थे. लेकिन चूंकि उसके तीन उम्मीदवारों को जीत मिली थी.  पार्टी को 39 सीट मिल गई थीं.

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5 फीसद वाला नियम इसलिए रखा गया था जिससे  संसद में बहुत सारी छोटी पार्टियां ना छा जाएं. इसी वजह से जर्मन इतिहास के वेमियर गणराज्य में नाजियों को उभरने का मौका मिला था. वहां हाल में एक दशक से संसद को छोटा करने के प्रयास चल रहे हैं.  लेकिन यह सफल नहीं हो पा रहा था क्योंकि खुद संसद को ही इस पर फैसला करना था. लेकिन कई बार पार्टियों को यह देखना होता है इससे उनका कहीं नुकसान तो नहीं हो रहा है. कई स्तर पर इस फैसले का विरोध भी हो रहा है तो कुछ लोगों का मानना है कि ऐसे कानून को संवैधानिक न्यायालय द्वारा खत्म होना चाहिए. वहीं सरकार को कानून पास करने के लिए साधारण बहुमत ही चाहिए होगा. इसके बाद इसका फैसला संवैधानिक कोर्ट ही करेगा.

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