बादशाह अकबर और उनके मंत्री बीरबल (Akbar-Birbal) के ढेरों किस्से हैं. इन किस्सों में बीरबल की हाजिर जवाबी और तेज दिमाग की बात सामने आती है, जिससे वो मुश्किल से मुश्किल सवालों और हालातों से बचने की युक्ति खोज निकालते थे. बीरबल ने अपनी खूबियों से अकबर के दिल में भी खास जगह बना रखी थी. ये दोनों इतने करीबी दोस्त थे कि बीरबल की मौत के बाद अकबर के जीवन में बड़ा बदलाव दिखा. वो उदास रहते थे. खाना-पीना कम कर दिया. दरबारी कामों में उनकी दिलचस्पी खोने लगी.
काबिलियत के चलते अकबर के खास बन गए बीरबल
अकबर के दरबार में बीरबल साल 1556 के दौरान शामिल हुए. तब उनकी उम्र 28 साल के आसपास थी. बीरबल के चेहरे पर चमकीली मूंछें थीं, जो अकबर से मिलती-जुलती थीं. जल्दी ही राजसी मामलों में अपनी काबिलियत की वजह से वह बादशाह के चहेते बन गए. उन्हें राजा के ओहदे से नवाजा गया.
ऐसा कहा जाता है कि तब बीरबल के पास 2000 सैनिक भी थे. तेज दिमाग और मुश्किल हालातों में भी संतुलन नहीं खोने की क्षमता तो उनमें थी ही साथ ही वो बृज भाषा के अच्छे जानकार और कवि भी थे. “द प्रिंट” में छपी एक रिपोर्ट के अनुसार बीरबल और अकबर के रिश्तों का जिक्र इरा मुखोती की किताब “The Great Mughal” में काफी विस्तार से मिलता है.
बीरबल को कभी बादशाह के गुस्से का सामना नहीं करना पड़ा
जब फतेहपुर सीकरी का निर्माण हो रहा था, तब अकबर ने बीरबल के लिए भी एक किला बनवाने को कहा था ताकि उनकी मुलाकातें रोज हो सकें. ये भी माना जाता है कि 30 सालों से ज्यादा वक्त तक अकबर के खास वजीर के तौर पर काम करते हुए एक बार भी बीरबल को दरबार नहीं आने की सजा नहीं मिली.
पुर्तगाली पादरी Antonio Monserrate मुगलकाल के दौरान भारत आए थे. उन्होंने अकबर-बीरबल की दोस्ती के बारे में लिखा. बकौल उनके, तब गलती करने पर लगभग सारे ही दरबारियों को बादशाह के गुस्से का सामना करना पड़ता था. ये गुस्सा अक्सर सांकेतिक सजा जैसे दरबार आने की मनाही जैसी बातों में दिखता था. यहां तक कि अकबर के करीबी दरबारियों को भी सजा मिली, जैसे मान सिंह, जब महाराजा राणा प्रताप का पीछा नहीं कर सके तो उन्हें अकबर के गुस्से का सामना करना पड़ा था. लेकिन बीरबल के साथ ऐसा कभी नहीं हुआ. वैसे उनके अलावा कवि फैजी और तानसेन भी अकबर के गुस्से से बचे रहे.
बीरबल लगातार विश्वसनीय होते गए
मुगल साम्राज्य के इतिहासकार अब्दुल कादिर बदायुंनी ने भी अकबर-बीरबल की दोस्ती से कुछ ईर्ष्या सी जताते हुए लिखा था कि अपने अनोखे स्वभाव की वजह से बीरबल दिनोंदिन बादशाह का चहेता होता गया और उनका सबसे ज्यादा विश्वसनीय हो गया.
जब अकबर ने बीरबल की जान बचाई
आमतौर पर बाहशाह अपने दरबारियों और प्रजा से काफी दूरी रखने के लिए जाने जाते हैं. उनके जीवन के वही हिस्से सामने आए, जिनका उन्हीं के कहने पर दस्तावेजीकरण हुआ. रोज मुलाकात के बाद भी दरबारियों और सम्राटों के बीच दूरी होती थी. हालांकि अकबर और बीरबल के रिश्ते में ये दूरी नहीं दिखती है.
एक वाकया ऐसा भी हुआ, जिसने सारे दरबार और प्रजा के सामने ये भेद खोल दिया कि बादशाह के लिए बीरबल के क्या मायने हैं. साल 1583 की बात है, तब फतेहपुर सीकरी में हाथियों की लड़ाई का आयोजन था. बादशाह संग सभी दरबारी हाथियों की कुश्ती का आनंद ले रहे थे कि तभी एक सबसे खतरनाक हाथी बीरबल के पास पहुंच गया. देखते ही देखते उन्हें अपनी सूंड में उठा लिया. इससे पहले कि सेनापति या सैनिक कोई कार्रवाई करें, घोड़े पर सवार अकबर तेजी से आगे बढ़े. हाथी को उकसाने लगे. अब हाथी बीरबल को छोड़कर अकबर की ओर बढ़ा तभी अचानक लड़खड़ाकर गिर पड़ा और बीरबल की जान बच गई.
बीरबल की मौत से अकबर को गहरा धक्का लगा
साल 1585 में बाहशाह अकबर पंजाब प्रांत की उथल-पुथल को संभालने निकले लेकिन तब किसी को अंदाजा भी नहीं था वे वापस फतेहपुर सीकरी कभी नहीं लौटना चाहेंगे. असल में पंजाब की यात्रा के दौरान अकबर को दो बेहद निजी तकलीफों से गुजरना पड़ा. पहली थी उनके सौतेले भाई मिर्जा हकीम की मौत. मिर्जा हकीम सौतेले होने के बाद भी बादशाह को बेहद अजीज थे. वे शराब पीने के भारी शौकीन थे और आखिरकार इसी वजह से उनकी जान चली गई. लेकिन इतिहासकारों का मानना है कि अकबर को इससे ज्यादा धक्का बीरबल की मौत से लगा था.
लाश तक बरामद नहीं हुई
साल 1586 में बीरबल और ज़ैन खान कोका को स्वात और बाजौर क्षेत्रों में पश्तून युसुफ़ज़ाई के खिलाफ एक अभियान पर भेजा गया था. वहां दोनों नेताओं के बीच असहमति के कारण बीरबल के खिलाफ एक जाल बुना गया और धोखे से काबुल की धूसर पहाड़ियों से नीचे दिया गया.
बीरबल की लाश तक नहीं मिल सकी. अकबर के शासनकाल में ये मुगलों की सबसे बड़ी हार थी, जिसमें 8000 से ज्यादा मुगल सैनिकों की जान गई. इनमें एक बीरबल भी थे. खबर मिलने पर बादशाह की हालत किसी बच्चे सी हो गई. उन्होंने दो दिन तक न कुछ खाया और न पिया. हरदम सख्त अनुशासन में रहने वाले अकबर ने इस दौरान दरबार का कोई भी काम देखने से इनकार कर दिया. तब तुरान का राजदूत भी राजसी चर्चा के लिए अकबर के पास आया हुआ था लेकिन उन्होंने उससे मिलने से भी मना कर दिया. अपने सबसे विश्वस्त और करीबी शख्स को खोने का दुख इतना ज्यादा था कि वे दिन-दिनभर झरोखे से बाहर देखते रहते.
बीरबल की मौत ने बहुत दुखी कर दिया
बीरबल की मौत के बाद अकबर के दुख में पूरा मुगल परिवार शामिल था. सारा राजकाज कुछ दिनों के लिए रुक सा गया था. तब बादशाह की हालत देख नौ-रत्नों में से एक अबुल फज्ल ने अकबरनामा में लिखा था कि वजीर की मौत ने उन्हें इतना दुख दिया कि उनका दिल हर बात से उठ गया था.
खोजने के लिए जाना चाहते थे काबुल
बीरबल से ईर्ष्या करने वाले बदायुंनी भी लिखते हैं कि बादशाह को किसी की मौत पर इतने सदमे में नहीं दिखा गया, जितना उन्हें इस दोस्त की मौत से हुआ. पूरे मुल्क को संभाल रहे बादशाह इस बात की कल्पना करते सिहर जाते थे कि उनके चहेते वजीर की कटी-फटी, खून से सनी लाश पहाड़ियों में कहीं पड़ी होगी. सदमे से उबरने के बाद भी अकबर बीरबल की लाश खोजने के लिए काबुल जाने की जिद पर अड़े हुए थे. वे चाहते थे कि शव का सही ढंग से अंतिम संस्कार हो सके. हालांकि बाद में दरबारियों के ये कहने पर कि बीरबल का शव सूरज की किरणों से ही पवित्र हो गया होगा, अकबर ने काबुल जाने का इरादा छोड़ दिया.
कई बार बीरबल के जिंदा होने की अफवाहें उड़ीं
बीरबल की लाश न मिलने की वजह से बाद के लगभग सालभर बादशाह काफी अस्थिर रहे. कई बार अफवाहें उड़तीं कि बीरबल जिंदा हैं. फलां जगह देखे गए हैं. कोई कहता है कि वे संन्यासी होकर फलां जगह रह रहे हैं. जैसे ही ये बातें अकबर के कानों तक पहुंचती, वे तुरंत अपनी सेना को उस जगह भेज देते ताकि बीरबल का कुछ पता लग सके. सालभर तक ये सिलसिला चलता रहा.
कभी नहीं लौटे फतेहपुर सीकरी
इसके बाद वैसे तो अकबर दरबारी काम-काज सामान्य तरीके से करते दिखने लगे लेकिन उनके भीतर कुछ टूट गया था. वे उस फतेहपुर सीकरी में लौटने की हिम्मत नहीं जुटा सके, जहां उनके विश्वसनीय वजीर और करीबी दोस्त बीरबल की यादें थीं. वे आगे और आगे उत्तर की ओर चलते हुए काबुल गए और फिर कश्मीर. एक बार खुद अबुल फज्ल के सामने अकबर ने बीरबल को खोने की तकलीफ बांटी थी, जिसका जिक्र अकबरनामा में भी मिलता है.
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