मंगल ग्रह (Mars) की सतह पर हालात पानी (Water) की मौजूदगी के अनुकूल नहीं हैं. ध्रुवों पर बर्फ जमी है, लेकिन पूरे ग्रह पर ही तापमान बहुत कम रहता है. इसके बाद भी वैज्ञानिक इस ग्रह पर तरल पानी की तलाश अब भी कर रहे हैं. उन्हें उम्मीद है कि मंगल ग्रह की सतह के नीचे प्रचुर मात्रा में पानी होना चाहिए. मंगल का चक्कर लगा रहे यूरोपीय स्पेस यूनियन (ESA) के ट्रेस गैस ऑर्बिटरने मंगल की घाटियों के तंत्र के बीच अच्छी खासी मात्रा में पानी की खोज की है. यह पानी वैलास मैराइनरीज में सतह के नीचे देखा गया है.
कितने बड़े इलाके में
इस छिपे हुए भंडार का आकार करीब 45 हजार वर्ग किलोमीटर है जो भारत के हरियाणा राज्य के बराबर है. इस नई खोज ने खगोलविदों को एक नए इलाका दे दिया है जहां वे ध्रुवों के अलावा भी पानी खोज सकते हैं. अंतरिक्ष यान मंगल की मिट्टी के ऊपरी एक मीटर की सतह पर हाइड्रोजन की उपस्थिति का पता लगा रहे थे जिससे पानी का उपस्थिति का पता चलता है.
मंगल की भूमध्य रेखा के पास
मंगल की भूमध्यरेखा पर बर्फ नहीं होती है क्योंकि यहां मगंल के चरम तापमान इतने कम नहीं होते हैं कि बर्फ जम सके. ऑर्बिटर ने सतह पर मिट्टी में धूल के कणों से ढकी बर्फ के रूप में पानी की तलाश की. इसमें मंगल के निचले अक्षांश में मौजूद खनिजों में भी कैद पानी की खोज शामिल थी और इस तलाश में वैज्ञानिक कुछ हद तक सफल भी हुए.
सतह के एक मीटर नीचे तक
मॉस्को के स्पेस रिसर्च इंस्टीट्यूट ऑफ द रशियन एकेडमी ऑफ साइंसेस के इगोर मित्रोफेनोव बताते हैं, “टीजीओ के जरिए हम मंगल की धूल वाली परत के एक मीटर नीचे तक देख सकते हैं. और यह देख सकते हैं कि वास्तव में मंगल की सतह के नीचे चल क्या रहा है. इससे हमें पानी से सम्पन्न ‘मरूद्यान‘ की स्थिति तय करने में मदद मिलती है जिन्हें इससे पहले के उपकरणों द्वारा नहीं देखा जा सका था.
पानी के हाइड्रोजन ने दिए संकेत
इस खोज के पीछे फाइन रिजोल्यूशन एपीथर्मल न्यूट्रॉन डिटेक्टर (FREND) टेलीस्कोप था जो ऑर्बिटर में लगा हुआ है. इसने वालेस मौराइनरिस के विशाल घाटीतंत्र में ऐसे इलाके का खुलासा किया है जिसमें असामान्य रूप से भारी मात्रा में हाइड्रोजन है जो हम पानी के अणुओं में बंधे देखते हैं. इस इलाके के सतह के पास के 40 प्रतिशत पदार्थ में पानी की मौजूदगी लगती है.
जानिए बाहरी अंतरिक्ष में होने वाली सामान्य लेकिन अजीब घटनाओं के बारे में
पहले भी उम्मीद थी इस इलाके में पानी के मिलने की
यूरोपीय स्पेस एजेंसी ने बुधवार को कहा था कि पानी समृद्ध क्षेत्र नीदरलैंड के आकार का है और इसमें कैंडोर कोएस की गहरी घाटियां शामिल हैं. यह इलाका उन घाटियों के तंत्र का हिस्सा माना जाता है जिसे मंगल पर पानी की तलाश के लिए उपयुक्त माना जाता है. मंगल पर पानी, विशेषतौर पर तरल पानी की तलाश सबसे बड़ा मुद्दा माना जाता है.
कैसी लगा पानी की मौजूदगी का पता
वैज्ञानिकों ने FREND के मई 2018 से लेकर फरवरी 2021 तक के अवलोकनों का विश्लेषण किया और वहां से प्रकाश के आने की वजह न्यूट्रॉन के आने के संकेत पाए. अध्ययन के सहलेखक एलेक्सी मालाखोव ने बताया कि न्यूट्रॉन तब निकलते हैं जब मंगल पर गैलेक्टिक कॉस्मिक विकरणओं के रूप में उच्च ऊर्जावान कण सतह से टकराते हैं. सूखी सतहों से गीली सतहों की तुलना में ज्यदा न्यूट्रॉन निकलते हैं. इससे पता लगाया जा सकता ह कि यहां प्रचुर मात्रा में पानी है.
उल्कापिंडों में कांच के टुकड़ों ने दी शुरुआती सौरमंडल की जानकारी
शोधकर्ताओं का कहना है कि ऑर्बिटर द्वारा देखा गया यह पानी बर्फ या तरल ही हो सकता है. इसके अलावा यह मिट्टी के खनिजों में रासायनिक रूप से भी बंधी हो सकता है. लेकिन दूसरे अवलोकन बताते हैं कि मंगल के इन इलाकों में बहुत खनिज पाए जाते हैं. इन इलाके में मिलने वाला पानी भविष्य में मंगल के लिए मानव अभियानों के लिए काम आ सकता है.
ब्रेकिंग न्यूज़ हिंदी में सबसे पहले पढ़ें News18 हिंदी | आज की ताजा खबर, लाइव न्यूज अपडेट, पढ़ें सबसे विश्वसनीय हिंदी न्यूज़ वेबसाइट News18 हिंदी |
Tags: Mars, Research, Science, Space