उस राज्यसभा चुनाव ने साबित किया कि अहमद पटेल सियासत के चाणक्य हैं

अहमद पटेल ने वर्ष 2017 में राज्यसभा चुनाव जीतकर साबित किया कि सियासी दांवपेंच में वो बहुत आगे हैं
आमतौर पर राज्यसभा (Rajya Sabha) के चुनाव सनसनी भरे नहीं होते लेकिन 03 साल पहले गुजरात (Gujarat) में जब अहमद पटेल (Ahemad Patel) राज्यसभा चुनाव के लिए खड़े हुए तो बीजेपी ने उन्हें हराने के लिए एड़ी चोटी का जोर लगा दिया. इसके बाद भी वो कैसे जीतकर चाणक्य (Chanakya) बन गए
- News18Hindi
- Last Updated: November 25, 2020, 10:38 AM IST
राज्यसभा के चुनाव तो बहुत होते हैं लेकिन 03 साल पहले गुजरात में राज्यसभा की उस सीट पर सारे देश की नजरें गड़ी हुईं थीं, जिस पर अहमद पटेल मैदान में थे. उस चुनाव को केंद्र की सत्ताधारी बीजेपी और कांग्रेस ने दोनों ने कमर कसी हुई थी. जहां बीजेपी ने पटेल की हार के लिए सारी ताकत झोंक दी थी, वहीं पटेल भी रणनीति के घोड़े दौड़ा रहे थे. हालांकि उस चुनाव में अहमद पटेल की हार या जीत ही होनी थी लेकिन उसको सोनिया गांधी की हार और जीत से जोड़ दिया गया था.
आमतौर पर राज्यसभा सीटों के लिए चुनाव इतने सनसनीखेज नहीं होते, उन्हें फ्रेंडली मैच माना जाता है. लेकिन वो राज्यसभा चुनाव एकदम अलग था. जब उस चुनावों में वोटों की गिनती हो रही थी तो देश की सांसें रुकी हुई थीं. देश का हर नेता दम साधे इन्हें देख रहा था. जनता की नजरें टीवी पर थीं. दरअसल इस चुनाव ने बीजेपी और कांग्रेस दोनों की साख दांव पर लगा दी थी.
ये राज्यसभा के लिए अहमद पटेल का पांचवां चुनाव था. उस समय दो वजहों से ये चुनाव एकदम हाईवोल्टेज ड्रामे में बदल गया. शंकरसिंह वाघेला ने नेता विपक्ष के पद से इस्तीफ़ा दिया. यानि वो कांग्रेस छोड़ गए. बीजेपी ने मन बना लिया कि इस चुनाव में वो पटेल को नहीं जीतने देंगे.
ये भी पढे़ं - कैसे गांधी परिवार के सबसे खास और विश्वासपात्र बन गए थे अहमद पटेलशंकर सिंह वाघेला ने कांग्रेस छोड़ दी थी
चूंकि शंकर सिंह वाघेला ने उस समय कांग्रेस छोड़ी थी लिहाजा ये माना जाने लगा कि वो इस चुनाव में बीजेपी के साथ जाएंगे. बीजेपी खुद ऐसा ही माहौल तैयार कर रही थी. हालांकि वाघेला बार बार इससे इनकार कर रहे थे. बीजेपी में बहुत उच्च स्तर तक इस चुनाव को लेकर तैयारी हो रही थी.

लगने लगा बाजी कांग्रेस के हाथ से निकल जाएगी
वक्त गुज़रने के साथ लगने लगा कि ये बाजी कांग्रेस के हाथ से निकलने वाली है. हालत ये हो गई कि पार्टी को अपने विधायकों को टूट से बचाने के लिए गुजरात से बाहर ले जाना पड़ा.
उस समय बीजेपी उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड और गोवा में सरकार बनाने के बाद मिले राजनीतिक लाभ को और मज़बूत करना चाहती थी और मनोवैज्ञानिक तौर पर कांग्रेस को तोड़ना चाहती थी. अगर गुजरात में अहमद पटेल इस चुनाव को हार जाते तो ना केवल कांग्रेस के लिए बड़ा झटका होता बल्कि सोनिया गांधी के लिए भी. वहीं रणनीतिक तौर पर बीजेपी के लिए बड़ी जीत.
ये प्रतीकों और विचारधारा की भी लड़ाई थी
ये वो दौर भी था जब बीजेपी 03 साल पहले जीतकर केंद्र की सत्ता में आई और उसने कांग्रेस मुक्त देश का नारा चलाया था. कुल मिलाकर ये प्रतीकों और विचारधाराओं के बीच भी लड़ाई जारी थी.
इसी के तहत अहमद पटेल को हराने की भरपूर कोशिश की गई. लेकिन कांग्रेस ये बाजी जीत ले गई. बीजेपी का पासा उल्टा पड़ा. इसका श्रेय दिया गया खुद अहमद पटेल को. जिनके बारे में माना गया कि पर्दे के पीछे से उन्होंने सारे मोहरे बखूबी चले.
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लड़ाई तीसरी सीट के लिए थी
उस चुनावों में गुजरात से तीन उम्मीदवारों को राज्यसभा में पहुंचना था. अमित शाह और स्मृति ईरानी की जीत पहली दो सीटों पर करीब तय थी. तीसरी सीट पर ही पटेल और बलवंत सिंह राजपूत के बीच कड़ा मुकाबला देखने को मिल रहा था.
जो परिणाम आए, उसमें अहमद पटेल को 44 वोट मिले जबकि स्मृति ईरानी को 46 और अमित शाह को भी 46 वोट मिले. चौथे उम्मीदवार बलवंत सिंह राजपूत को 38 वोट मिले.

दो बागी कांग्रेस विधायकों के वोट रद्द हुए
ये माना जा रहा था कि क्रॉस वोटिंग होगी और अगर ऐसा हुआ तो अहमद पटेल नहीं जीत पाएंगे. इसी बीच कांग्रेस की मांग मानते हुए चुनाव आयोग ने दो बागी कांग्रेस विधायकों के वोट रद्द कर दिए. बस इसी ने भाजपा का गणित बिगड़ दिया.
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कांग्रेस ने क्रॉस वोटिंग करने वाले अपनी ही पार्टी के दो विधायकों राघवजी पटेल और भोला गोहिल के वोट रद्द करने की मांग की थी, क्योंकि कथित तौर पर उन्होंने अपने मतपत्र अनाधिकारिक लोगों को दिखा दिए थे.
वोटों की गिनती रोकी गई
शाम 5 बजे ही गिनती शुरू होनी थी, लेकिन कांग्रेस की शिकायत के बाद गिनती रोक दी गई थी. देर रात वोटों की गिनती शुरू हुई और 174 वोटों को वैध माना गया.
नतीजों के बाद अहमद पटेल ने ट्विटर पर 'सत्यमेव जयते' लिखते हुए अपनी जीत का ऐलान किया. इस जीत ने ये भी साबित किया अहमद पटेल ही रणनीति कामयाब रही और राजनीति में वो खुद बड़े चाणक्य हैं.
आमतौर पर राज्यसभा सीटों के लिए चुनाव इतने सनसनीखेज नहीं होते, उन्हें फ्रेंडली मैच माना जाता है. लेकिन वो राज्यसभा चुनाव एकदम अलग था. जब उस चुनावों में वोटों की गिनती हो रही थी तो देश की सांसें रुकी हुई थीं. देश का हर नेता दम साधे इन्हें देख रहा था. जनता की नजरें टीवी पर थीं. दरअसल इस चुनाव ने बीजेपी और कांग्रेस दोनों की साख दांव पर लगा दी थी.
ये राज्यसभा के लिए अहमद पटेल का पांचवां चुनाव था. उस समय दो वजहों से ये चुनाव एकदम हाईवोल्टेज ड्रामे में बदल गया. शंकरसिंह वाघेला ने नेता विपक्ष के पद से इस्तीफ़ा दिया. यानि वो कांग्रेस छोड़ गए. बीजेपी ने मन बना लिया कि इस चुनाव में वो पटेल को नहीं जीतने देंगे.
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चूंकि शंकर सिंह वाघेला ने उस समय कांग्रेस छोड़ी थी लिहाजा ये माना जाने लगा कि वो इस चुनाव में बीजेपी के साथ जाएंगे. बीजेपी खुद ऐसा ही माहौल तैयार कर रही थी. हालांकि वाघेला बार बार इससे इनकार कर रहे थे. बीजेपी में बहुत उच्च स्तर तक इस चुनाव को लेकर तैयारी हो रही थी.

अगर गुजरात में अहमद पटेल इस चुनाव को हार जाते तो ना केवल कांग्रेस के लिए बड़ा झटका होता बल्कि सोनिया गांधी के लिए भी. वहीं रणनीतिक तौर पर बीजेपी के लिए बड़ी जीत.
लगने लगा बाजी कांग्रेस के हाथ से निकल जाएगी
वक्त गुज़रने के साथ लगने लगा कि ये बाजी कांग्रेस के हाथ से निकलने वाली है. हालत ये हो गई कि पार्टी को अपने विधायकों को टूट से बचाने के लिए गुजरात से बाहर ले जाना पड़ा.
उस समय बीजेपी उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड और गोवा में सरकार बनाने के बाद मिले राजनीतिक लाभ को और मज़बूत करना चाहती थी और मनोवैज्ञानिक तौर पर कांग्रेस को तोड़ना चाहती थी. अगर गुजरात में अहमद पटेल इस चुनाव को हार जाते तो ना केवल कांग्रेस के लिए बड़ा झटका होता बल्कि सोनिया गांधी के लिए भी. वहीं रणनीतिक तौर पर बीजेपी के लिए बड़ी जीत.
ये प्रतीकों और विचारधारा की भी लड़ाई थी
ये वो दौर भी था जब बीजेपी 03 साल पहले जीतकर केंद्र की सत्ता में आई और उसने कांग्रेस मुक्त देश का नारा चलाया था. कुल मिलाकर ये प्रतीकों और विचारधाराओं के बीच भी लड़ाई जारी थी.
इसी के तहत अहमद पटेल को हराने की भरपूर कोशिश की गई. लेकिन कांग्रेस ये बाजी जीत ले गई. बीजेपी का पासा उल्टा पड़ा. इसका श्रेय दिया गया खुद अहमद पटेल को. जिनके बारे में माना गया कि पर्दे के पीछे से उन्होंने सारे मोहरे बखूबी चले.
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लड़ाई तीसरी सीट के लिए थी
उस चुनावों में गुजरात से तीन उम्मीदवारों को राज्यसभा में पहुंचना था. अमित शाह और स्मृति ईरानी की जीत पहली दो सीटों पर करीब तय थी. तीसरी सीट पर ही पटेल और बलवंत सिंह राजपूत के बीच कड़ा मुकाबला देखने को मिल रहा था.
जो परिणाम आए, उसमें अहमद पटेल को 44 वोट मिले जबकि स्मृति ईरानी को 46 और अमित शाह को भी 46 वोट मिले. चौथे उम्मीदवार बलवंत सिंह राजपूत को 38 वोट मिले.

ये माना जा रहा था कि क्रॉस वोटिंग होगी और अगर ऐसा हुआ तो अहमद पटेल नहीं जीत पाएंगे. लेकिन आखिरी समय में बाजी पलट गई
दो बागी कांग्रेस विधायकों के वोट रद्द हुए
ये माना जा रहा था कि क्रॉस वोटिंग होगी और अगर ऐसा हुआ तो अहमद पटेल नहीं जीत पाएंगे. इसी बीच कांग्रेस की मांग मानते हुए चुनाव आयोग ने दो बागी कांग्रेस विधायकों के वोट रद्द कर दिए. बस इसी ने भाजपा का गणित बिगड़ दिया.
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कांग्रेस ने क्रॉस वोटिंग करने वाले अपनी ही पार्टी के दो विधायकों राघवजी पटेल और भोला गोहिल के वोट रद्द करने की मांग की थी, क्योंकि कथित तौर पर उन्होंने अपने मतपत्र अनाधिकारिक लोगों को दिखा दिए थे.
वोटों की गिनती रोकी गई
शाम 5 बजे ही गिनती शुरू होनी थी, लेकिन कांग्रेस की शिकायत के बाद गिनती रोक दी गई थी. देर रात वोटों की गिनती शुरू हुई और 174 वोटों को वैध माना गया.
नतीजों के बाद अहमद पटेल ने ट्विटर पर 'सत्यमेव जयते' लिखते हुए अपनी जीत का ऐलान किया. इस जीत ने ये भी साबित किया अहमद पटेल ही रणनीति कामयाब रही और राजनीति में वो खुद बड़े चाणक्य हैं.