उत्तराखंड (Uttarakhand) चमोली (Chamoli) जिले की नीति घाटी में नंदा देवी ग्लेशियर (Galcier) टूटने से बाढ़ (Flood) का सामना कर रहा है. वैसे तो भारत में ग्लेशियर की वजह से नुकसान आम बात नहीं है, लेकिन फिर भी भारत सरकार हिमालय के ग्लेशियरों पर खास तौर पर निगरानी का काम देश की कई अनुसंधान संस्थाओं के जरिए करती है. लेकिन प्रमुख कार्य बेंगलुरू स्थित भारतीय विज्ञान संस्थान (IISc) के दिवेचा सेंटर फॉर क्लाइमेट चेंज (DCCC)ने किया है. कश्मीर से लेकर अरुणाचल प्रदेश तक के भारतीय इलाकों में कुल 267 ग्लेशियर हैं जिन पर निगरानी रखने के साथ संबंधित शोध हुए हैं.
प्रमुख लक्ष्य
इस परियोजना के तहत ग्लेशियरों से पानी की उपलब्धता और जलवायु परिवर्तन की वजह से ग्लेशियर के आगे बढ़ने और पीछे हटने की गतिविधियों को समझने लिए निगरानी और अध्ययन किया गया. जलवायु परिवर्तन के कारण आए बदलावों के ग्लेशियरों पर पड़ने वाले प्रभावों को कम करना इस प्रोजेक्ट के प्रमुख लक्ष्यों में शामिल रहा है.
इन संस्थनों का सहयोग
दिवेचा सेंटर फॉर क्लाइमेट चेंज (DCCC) भारत सरकार के विज्ञान और तकनीक विभाग के अंतर्गत इस जिम्मेदारी का निर्वाहन करता है. इस कार्य में आईआईटी मुंबई, आईआईटी गांधीनगर, वाडिया इंस्टीट्यूट ऑफ हिमालियन जियोलॉजी और स्नो एंड एवलांच स्टडी एस्बलिशमेंट जैसी संस्थाओं का भी सहयोग मिला है.
अलग हैं भारतीय ग्लेशियर
ग्लेशियर उत्तर भारत की प्रमुख नदियों के एक तरह के रिजर्व बैंक हैं और जलवायु के प्रति बहुत संवेदनशील है. जलवायु परिवर्तन का उन पर व्यापक असर होता है. दुनिया के अन्य ग्लेशियरों की तुलना में हिमालय के ग्लेशियरों के बारे में बहुत कम जानकारी और आंकड़े हैं. इसकी सबसे बड़ी वजह यह है कि ये ग्लेशियर बहुत ही दुर्गम स्थानों पर हैं.
आपदा प्रबंधन की अहमित भी देखी गई थी
इस परियोजना की शुरुआत में ही माना गया था कि ग्लेशियरों का अध्ययन पर्यावरण के लिहाज से उपयोगी तो है ही, लेकिन इनका अध्ययन नीचे की ओर रहने वाले लोगों पर संभावित आपदा के आंकलन और पूर्वानुमान के लिहाज से बहुत अहम है. जियोलॉजिकल सर्वेऑफ इंडिया ने 9575 ग्लेशियरों की गिनती की है जिनमें से केवल 267 10 वर्ग किलोमीटर से ज्यादा बड़े हैं. पहले केवल चार ग्लेशियरों पर ही निगरानी रखी जाती थी लेकिन अब 267 ग्लेशियरों पर निगरानी की जाती है.
क्या होते हैं ग्लेशियर, जानें इनके बारे में सबकुछ
मास बैलेंस की अहमियत
ग्लेशियरो की निगरानी में मास बैलेंस एक प्रमुख कारक है. मास बैलेंस सर्दियों में जमा हुई बर्फ और गर्मिंयों में पिघल कर गई बर्फ के भार का अंतर है. बर्फ का कम होना एब्लेशन कहा जाता है जबकि बर्फ का अधिक होना एक्यूमिलेशन कहलाता है. मास बैलेंस सीधे सीधे ही एक ग्लेशियर सिस्टम में कुल पानी की उपलब्धता का संकेत होता है. इससे यह भी पता चलता है कि कितना पानी नदियों बह कर जाने वाला है. ग्लेशियर का स्थानीय पानी आपूर्ति में सीधा योगदान होता है.
दिवेचा मॉडल की खासियत
दिवेचा मॉडल में फील्ड में ही विस्तृत आकंड़े जमा किए जाते हैं इससे भविष्य में पानी की उपलब्धता की जानकारी तो मिलती ही है. इससे लोगों के सुरक्षा के बारे में योजना बनती है जो ग्लेशियर के नीचे की दिशा में रहते हैं. इसें मास बैलेंस की गणना करना आधार चट्टानों की आकृति का विश्लेषण, बर्फ की मात्रा का आंकलन भी किया जाता है जिसमें राडार तकनीक का उपयोग होता है. इन सभी अध्ययनों के लिए विभिन्न शाखाओं के विशेषज्ञों की जरूरत होती है. इसी लिए इसमें बहुत सारी संस्थाओं की मदद ली गई है.
जानिए कितना अहम है महासागरों के अंदर छिपा विशाल हाइड्रोकार्बन चक्र
ग्लेशियरों पर इसरो के सैटेलाइट भी निगरानी करते हैं. अब विश्लेषणों में सैटेलाइट के आंकड़ों और उनके जरिए अध्ययनों की भूमिका बढ़ने लगी है. हिमालय जैसे दुर्गम इलाकों में पाए जाने वाले ग्लेशियरों का अध्ययन सैटेलाइट से ज्यादा सटीक आंकड़े दे सकता है. हाल ही में इस तरह के निगरानी वाले अध्ययनों में सैटेलाइट का दखल भी बढ़ा है.
ब्रेकिंग न्यूज़ हिंदी में सबसे पहले पढ़ें News18 हिंदी | आज की ताजा खबर, लाइव न्यूज अपडेट, पढ़ें सबसे विश्वसनीय हिंदी न्यूज़ वेबसाइट News18 हिंदी |
Tags: Environment, Glacier Tragedy, Himalaya, Research, Science, Uttarakhand Glacier Avalanche
Cannes Closing Ceremony: दीपिका पादुकोण ने फ्लॉन्ट किया ट्रेडिशनल लुक, रफल्ड साड़ी में दिखा उनका खूबसूरत अंदाज
भोजपुरी एक्ट्रेस Garima Parihar की खूबसूरती देख भूल जाएंगे बॉलीवुड हसीनाओं का ग्लैमरस लुक! देखें PICS
Surbhi Jyoti B’day : कभी ‘नागिन’ कभी ‘जोया’ बन दर्शकों के दिलों पर राज करने वाली सुरभि ज्योति हैं बड़ी स्टाइलिश