संयुक्त राष्ट्र संघ (United Nations) ने कुछ दिनों पहले लगभग दस देशों को इस बात के लिए चेतावनी दी है कि वे संगठन (organisation) को दी जाने वाली धनराशि का भुगतान कर दें, अन्यथा महासभा में मतदान करने के उनके अधिकार से उन्हें वंचित कर दिया जाएगा. आइए, इसी के बारे में कुछ जानते हैं. सन 1939 से 1945 के बीच चले लगभग पांच सालों के द्वितीय महायुद्ध की विभीषिका ने जब पूरी दुनिया के दिलों को हिलाकर रख दिया, तो उसके समाधान के लिए 1945 में एक संस्था का जन्म हुआ, जिसे संयुक्त राष्ट्र संघ के नाम से जाना जाता है.
भारत भी संस्थापक देश
इससे पहले एक जनवरी 1942 को वांशिंगटन डीसी में इसका घोषणा-पत्र तैयार किया गया था. एक सबसे महत्वपूर्ण बात यहां यह है कि भारत इस घोषणा-पत्र पर उसी समय हस्ताक्षर करने वालें देशों में शामिल था. इसके बाद जब अक्टूबर 1945 में इसकी विधिवत तरीके से स्थापना हुई, तो भारत को भी यह गौरव प्राप्त है कि वह इसके 51 संस्थापक देशों में से एक है.
एक महत्वपूर्ण ‘क्लब’
संयुक्त राष्ट्र संघ को पूरी दुनिया में शांति और सुरक्षा बनाए रखने वाला विश्व का सबसे बड़ा और महत्वपूर्ण क्लब कहा जा सकता है. क्लब इस मायने में कि इसकी सदस्यता किसी के लिए भी अनिवार्य नहीं है. वैसे भी दुनिया के लगभग 200 देशों में से 193 देश ही इसके सदस्य हैं. ऐसा भी नहीं है कि एक बार इसमें शामिल हो जाने के बाद इससे अलग नहीं हुआ जा सकता. कई देशों ने ऐसा किया भी है, जिनमें इंडोनेशिया का नाम हम सबके लिए जाना-पहचाना-सा नाम है.
संगठन का खर्चा
क्लब के रूप में इसका दूसरा महत्वपूर्ण चरित्र है- इसके खर्चे का इसके सदस्यों के द्वारा उठाया जाना. संयुक्त राष्ट्र संघ के जितने भी सदस्य हैं, उन सबको धन के रूप में अपना-अपना योगदान करना होता है. हां, यह बात जरूर है कि अन्य क्लबों की तरह यह धनराशि सभी सदस्यों के लिए बराबर नहीं होती.
6 मुख्य संगठन
संयुक्त राष्ट्र संघ के अपने 6 मुख्य संगठन हैं. साथ ही इससे जुड़ी यूनेस्को और यूनीसेफ जैसी जानी-मानी अन्य कई संस्थाएं भी हैं. इन 6 मुख्य संगठनों का खर्च संयुक्त राष्ट्र संघ का खर्चा माना जाता है. इन 6 संगठनों में सबसे महत्वपूर्ण विभाग इसकी महासभा होती है. हालांकि शक्ति की दृष्टि से सुरक्षा परिषद (Security Council) महत्वपूर्ण होती है, किन्तु उसमें केवल 15 सदस्य होने के नाते उसे लोकतांत्रिक नहीं माना जा सकता. इस दृष्टि से महासभा सबसे बड़ी संस्था होती है. इसका हर सदस्य महासभा से जुड़ा होता है. यह संयुक्त राष्ट्र संघ के अंतर्गत विचार-विमर्श एवं नीति-निर्धारण करने वाली प्रतिनिधि सभा होती है. संयुक्त राष्ट्र संघ की अन्य संस्थाओं के सदस्यों का चुनाव भी इसी के द्वारा किया जाता है.
सभी सदस्यों का एक ही वोट
इस महासभा का सबसे प्रशंसनीय पक्ष यह है कि चाहे कोई देश भौगोलिक दृष्टि से कितना भी बड़ा हो, आर्थिक दृष्टि से कितना भी समृद्ध हो तथा राजनीतिक दृष्टि से कितना भी शक्तिशाली हो, प्रत्येक सदस्य को एक ही वोट देने का अधिकार है. यदि शांति और सुरक्षा जैसे कुछ महत्वपूर्ण विषयों को छोड़ दिया जाए, तो ज्यादातर मामलों के लिए सामान्य बहुमत की जरूरत होती है.
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‘’एक देश एक मत’’ सिद्धान्त
इस पृष्ठभूमि में यदि किसी सदस्य को इस महासभा में मतदान करने के अधिकार से वंचित कर दिया जाए, तो उस राष्ट्र का संघ में क्या वजन रह जाएगा, इसे समझा जा सकता है. इससे उसकी अंतरराष्ट्रीय छवि भी काफी धूमिल हो जाती है. ‘’एक देश एक मत’’ सिद्धान्त का सबसे बड़ा लाभ छोटे और कमजोर राष्ट्रों को इस बात से मिलता है कि दुनिया के बड़े देश भी इन छोटे देशों को अपने पक्ष में रखने की कोशिश करते हैं, ताकि उन्हें उनके किसी प्रस्ताव पर उनका मत मिल सके. किसी राष्ट्र को उसके मत देने के अधिकार से वंचित करने का अर्थ एक प्रकार से इस संगठन में उसे अस्तित्वहीन बना देता है.
खर्चे का फार्मूला
जैसा कि पहले बताया जा चुका है, संयुक्त राष्ट्र संघ का खर्च इसके सदस्यों द्वारा ही उठाया जाता है. प्रत्येक राष्ट्र इसके लिए कितना धन देगा, इसके बारे में बाकायदे एक फार्मूला तैयार किया गया है. महासभा की एक कमेटी होती है – कमेटी ऑन कंट्रीब्यूशन. यह कमेटी प्रत्येक राष्ट्र के योगदान का निर्धारण तीन सालों के लिए करती है. इसके निर्धारण के लिए तीन सबसे महत्वपूर्ण सूत्र रखे गए हैं. इनमें पहला है-उस देश का कुल राष्ट्रीय उत्पाद; जिसे जीएनपी कहा जाता है. दूसरा उस देश की प्रतिव्यक्ति आय तथा तीसरा है, उस देश की विश्व के जीएनपी में योगदान. निम्न प्रतिव्यक्ति आय तथा विदेशी ऋण के बोझ से दबे राष्ट्रों को इसमें काफी छूट दी जाती है.
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धन जुटाने में परेशानी
यह महासभा दो तरह के अपने वार्षिक खर्च का निर्धारण करती है. इनमें से एक है- सामान्य खर्च तथा दूसरा है- शांति स्थापना बल के लिए किया जाने वाला खर्च. पिछले कुछ वर्षों से संयुक्त राष्ट्र संघ को अपने सदस्य राष्ट्रों से धन लेने में काफी दिक्कतें हो रही हैं. इसके कारण इसने अब अपने खर्चों में लगभग एक तिहाई की कटौती की है, जो अपने-आपमें एक बड़ी राशि है. फिलहाल इसका वार्षिक बजट 3.122 अरब अमेरीकी डॉलर (लगभग 2034 अरब रुपये) है.
अमेरिका की भूमिका
यूएनओ में सबसे बड़ा योगदान अमेरिका का है. वैश्विक जीएनपी में 27 प्रतिशत का दमखम रखने वाला अमेरिका संयुक्त राष्ट्र संघ को उसके कुल खर्चे का 22 प्रतिशत देता है. दूसरे स्थान पर लगभग 12 प्रतिशत देने वाला चीन और तीसरे स्थान पर लगभग 8½ प्रतिशत देने वाला देश जापान है. यदि हम शुरू के 20 राष्ट्रों के योगदान को जोड़ दें, तो यह 83.83 प्रतिशत बैठता है. इसी से अनुमान लगाया जा सकता है कि क्यों दुनिया के ये 20 बड़े राष्ट्र संयुक्त राष्ट्र संघ में अपना विशेष दबदबा रखते हैं.
भारत ठीक इसके बाद योगदान करने वाला 21वां बड़ा राष्ट्र है. विश्व जीएनपी में भारत की भागीदारी 2.727 प्रतिशत है. जबकि संयुक्त राष्ट्र संघ के कुल व्यय का यह 0.834 प्रतिशत (लगभग 175 करोड़ रुपये) देता है. यहाँ यह भी जानना उपयोगी होगा कि इसके लिए न्यूनतम योगदान की राशि भी निर्धारित की गई है, जो 0.001 प्रतिशत है. कई राष्ट्र इस तक का भुगतान करने में स्वयं को सक्षम नहीं पाते.
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Tags: Research, United nations, World
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