भारत में पहले आम चुनाव 1951-1952 में हुए. तब पटेल का निधन हो चुका था. लेकिन नेहरू के पहले पीएम बनने की कहानी इतनी ही नहीं है. पूरी कहानी जानिए.
देशभर में चुनावी फिजा है. बहस-मुबाहिसें जारी हैं. बहस के प्रमुख विषय इतिहास के पन्ने हुआ करते थे. उत्तर प्रदेश की एक चुनावी सभा में जिला और ब्लॉक स्तर के नेता दलील दे रहे थे, "देश का पहला प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू नहीं वल्लभ भाई पटेल को होना चाहिए था. तब हुए चुनाव में नेहरू को नहीं पटेल को सारे वोट मिले थे. लेकिन नेहरू ने पटेल को पीएम बनने से रोक दिया. नेहरू रसिक और भावनात्मक रूप से कमजोर इंसान थे. ऐसा आदमी कभी अच्छा शासक नहीं हो सकता. पटेल नरेंद्र मोदी की तरह ही कट्टर थे. उन्होंने ही सभी रियासतों को भारत का हिस्सा बनाया."
हाल में वायरल एक वीडियो में राजस्थान में कुछ वकीलों से एक पत्रकार बात कर रहे हैं. वकील कहते हैं पहला पीएम नेहरू नहीं पटेल को बनना चाहिए था. पत्रकार कहते हैं, देश में पहली बार चुनाव कब हुए? जवाब आता है, 1951-1952 में. पटेल की मौत कब हुई? जवाब आया 1950 में, फिर नेहरू ने पटेल को पीएम बनने से रोक दिया. इसके बाद वकील चुप हो जाते हैं. उनके पास कहने को कुछ नहीं होता. लेकिन इस ऐतिहासिक कहानी में यही दो पन्ने नहीं हैं.
जब चुनाव ही नहीं हुए तो नेहरू कैसे बन गए पहले प्रधानमंत्री
भारत के पहले आम चुनाव 25 अक्टूबर 1951 से लेकर 21 फरवरी 1952 बीच हुए. इसके बाद भारत की पहली संवैधानिक सरकार चुनी गई. तब नेहरू देश के प्रधानमंत्री बने, लेकिन पहले नहीं, दूसरे. तब पटेल का निधन हो चुका था. लेकिन देश तो अगस्त 1947 में ही आजाद हो गया था. फिर 15 अगस्त 1947 से पहले चुनाव तक भारत का शासन किसके हाथ में था? नेहरू कैसे देश के पहले पीएम बन गए? उन्हें किसने पीएम बना दिया.
असल में, 14 अगस्त 1947 की आधी रात (तकनीकी तौर पर 15 अगस्त 1947) को संविधान सभा की ओर से चुने गए भारत के पहला गर्वनर जनरल (राष्ट्रपति सरीखे पद) लार्ड माउंटबेटन ने जवाहर लाल नेहरू को भारत के पहले प्रधानमंत्री पद की शपथ दिलाई थी. तब वल्लभ भाई पटेल सक्रिय राजनीति में थे. वह प्रधानमंत्री पद के प्रबल दावेदार हो सकते थे. लेकिन 1946 की गर्मियों में जो हुआ था, उसके बाद किसी भी हाल में पटेल देश के पहले पीएम नहीं बन पाते.
क्या हुआ था 1946 में, जिसके चलते पटेल के बजाय नेहरू को मिली सत्ता
1946 में भारत में दो चीजें एक साथ चल रही थीं. भारत छोड़ो आंदोलन देश में चरम पर था और द्वितीय विश्वयुद्ध आखिरी चरण में था. यह तय माना जाने लगा था कि द्वितीय विश्वयुद्ध खत्म होते ही ब्रिटिश सरकार भारत को आजाद कर देगी. लाजमी है तब भारतीय नेता आजाद भारत के शासन की तैयारी भी शुरू कर चुके थे.
यह भी पढ़ेंः कितना सच्चा है साल 1954 के कुंभ को लेकर किया गया पीएम मोदी का दावा?
उन्हीं दिनों 29 मार्च 1946 को ब्रिटेन लेबर पार्टी के नेता और वहां के प्रधानमंत्री क्लीमेंट एटली ने भारतीय नेताओं से बातचीत के लिए कैबिनेट मिशन प्लान भेजा. इस तीन सांसदों सर स्टेफर्ड क्रिप्स, एबी एलेंजडर, पैथिक लारेंस का दल भारत में संविधान की रूपरेखा के लिए संविधान सभा और अंतरिम सरकार बनाने का प्रस्ताव लेकर आया. एक तरफ मुस्लिम लीग पाकिस्तान बनाने का राग अलाप रहा था. दूसरी तरफ आजाद भारत की अंतरिम सरकार की रूपरेखा क्या होगी? कौन नेतृत्व करेगा इस पर माथापच्ची शुरू हो गई.
महात्मा गांधी ने निभाई थी महत्वपूर्ण भूमिकाः अंतरिम सरकार के प्रस्ताव को ध्यान में रखकर महात्मा गांधी ने तत्काल नए कांग्रेस अध्यक्ष के चुनाव कराने को कहा. ऐसा माना जा रहा था कि कांग्रेस का अध्यक्ष ही आगे चलकर देश के प्रधानमंत्री पद का दावेदार होगा. तब कांग्रेस के अध्यक्ष मौलाना अबुल कलाम आजाद थे. वह 1940 से ही कांग्रेस अध्यक्ष थे. अपनी किताब में उन्होंने 1946 में भी कांग्रेस अध्यक्ष पद पर चुनाव लड़ने की मंशा को लेकर लिखा था. वह 1946 में कांग्रेस अध्यक्ष पद का चुनाव लड़ना चाहते थे, लेकिन महात्मा ने ही उन्हें ऐसा ना करने को कहा.
तब कांग्रेस अध्यक्ष पद के चुनाव के लिए पूरी AICC के सदस्यों का मतदान कराया जाता था. लेकिन महात्मा गांधी इसे जल्द से जल्द पूरा करा लेना चाहते थे. इसलिए तय हुआ कि केवल प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्षों के मतदान से ही अगला कांग्रेस अध्यक्ष चुना जाएगा. उस वक्त के दस्तावेजों से मिली जानकारी के अनुसार 15 PCC के द्वारा भेजे गए नामों में 12 ने वल्लभ भाई पटेल के नाम की संस्तुति की थी. दो ने जेबी कृपलानी के नाम की संस्तुति की. जबकि एक ने अपना मत जाहिर नहीं किया. इसमें एक भी पीसीसी ने जवाहर लाल नेहरू को कांग्रेस अध्यक्ष बनाए जाने की संस्तुति नहीं की.
लेकिन महात्मा गांधी ने पहले कृपलानी से अपना नाम वापस लेकर जवाहर लाल नेहरू के पक्ष में जाने को कहा. बाद में उनके कहने पर ही वल्लभ भाई पटेल ने भी नेहरू को कांग्रेस अध्यक्ष पद दिए जाने का समर्थन कर दिया.
कांग्रेस अध्यक्ष का देश का पहला पीएम बनना तय था
1946 में कांग्रेस के चुने जाने वाले नए अध्यक्ष का ही भारत का पहला पीएम बनना तय था. यदि वल्लभ भाई पटेल कांग्रेस अध्यक्ष चुने गए होते तब शायद तस्वीर कुछ और होती. हालांकि तब वल्लभ भाई पटेल के पक्ष में अपना वोट देने वाले एक PCC अध्यक्ष द्वारका प्रसाद मिश्रा कहते हैं हमने पटेल को कांग्रेस अध्यक्ष बनाने के लिए मत दिया था ना कि देश का प्रधानमंत्री बनाने के लिए.
यह भी पढ़ेंः लोकसभा चुनाव 2019: वोटर लिस्ट में 76 बार जवाहरलाल नेहरू नाम, 211 बार नरेंद्र मोदी!
लेकिन वायसराय लॉर्ड वेवल ने 1 अगस्त 1946 को कांग्रेस अध्यक्ष जवाहर लाल नेहरू को अंतरिम सरकार बनाने का न्योता दिया. 2 सितंबर 1946 को नेहरू ने 11 अन्य सदस्यों के साथ अपने पद की शपथ ली. तब जो पद नेहरू को मिला उसे प्रधानमंत्री तो नहीं कहा गया. लेकिन उसे ही राष्ट्राध्यक्ष कहा गया. 4 जुलाई 1947 को ब्रिटिश संसद में भारतीय स्वतंत्रता विधेयक पेश किया गया. 18 जुलाई को इसे स्वीकृति मिल गई.
भारतीय स्वतंत्रता अधिनियम 1947 के अनुसार भारतीय संविधान सभा ने 15 अगस्त 1947 को लॉर्ड माउंटबेटन को भारत का प्रथम गर्वनर जनरल चुना. 15 अगस्त 1947 को माउंटबेटन ने नेहरू को भारत के पहले प्रधानमंत्री की शपथ दिलाई.
स्रोत (लेखक व किताबें)
मौलाना अबुल कलाम आजाद, India Wins Freedom, 1959 में प्रकाशित
राजमोहन गांधी, Patel: A Life, 1991 में प्रकाशित
दुर्गा दास, India From Curzon to Nehru and After 1969 में प्रकाशित
Brecher, Nehru: A Political Biography, 1959 में प्रकाशित
स्वराज में सी गोपालाचारी का लेख
यह भी पढ़ेंः
नया नहीं है पॉलिटिकल कनेक्शन, जावेद हबीब के दादा जी थे नेहरू के नाई
इलाहाबाद सीट: कांग्रेस के लिए 'सूखा कुआं' बना नेहरू का गृह जनपद, अमिताभ बच्चन थे आखिरी विजेता
ब्रेकिंग न्यूज़ हिंदी में सबसे पहले पढ़ें News18 हिंदी| आज की ताजा खबर, लाइव न्यूज अपडेट, पढ़ें सबसे विश्वसनीय हिंदी न्यूज़ वेबसाइट News18 हिंदी|
Tags: BJP, Congress, General Election 2019, Jawahar Lal Nehru University, Jawaharlal Nehru, Lok Sabha Election 2019, Sardar Vallabhbhai Patel