अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप (Donald Trump) पर विपक्षी आरोप लगा रहे हैं कि वे देश को जंग में झोंकना चाहते हैं. वहीं चुनावी रैली के दौरान ट्रंप ने एक चौंकाने वाली बात कही. उनके मुताबिक नॉर्थ कोरिया के शासक किम जोंग उन (Kim Jong-un) से उनकी बातचीत के कारण युद्ध टल गया. तो क्या अमेरिका और नॉर्थ कोरिया के बीच जंग का खतरा था? अगर हां तो अमेरिका जैसे ताकतवर देश के सामने किम का देश कहां ठहरता? रक्षा विशेषज्ञों का मानना है कि किम का देश छोटा होने के बाद भी काफी शक्तिशाली है और उससे जंग आसान नहीं.
आखिर क्यों ये देश अमेरिका के पीछे पड़ा है?
सबसे पहले तो ये समझते हैं कि आखिर नॉर्थ कोरिया क्यों बार-बार अमेरिका से जबानी जंग करता रहा है. साल 2017 में भी किम जोंग ने आरोप लगाया था कि यूएस उससे लड़ाई चाहता है. हालांकि यूएस ने उसके इस आरोप को बेबुनियाद बताया था. बाद में दोनों देशों के बीच दो बार बातचीत भी हुई लेकिन दोनों ही देश किसी नतीजे पर नहीं पहुंचे. वैसे दोनों देशों के बीच रंजिश की जड़ में कोरियाई युद्ध है. कोरियाई युद्ध(1950-53) की शुरुआत 25 जून, 1950 को उत्तरी कोरिया से दक्षिणी कोरिया पर आक्रमण के साथ हुई. चीन और रूस उत्तर कोरिया के सपोर्ट में थे. वहीं अमेरिका साउथ कोरिया का साथ दे रहा था.

तीन सालों तक उत्तर कोरिया पर नॉनस्टॉप हवाई हमले किए जाते रहे- सांकेतिक फोटो (Photo-pixabay)
अमेरिका ने उत्तर कोरिया को बदल दिया मलबे में
हालात काबू में करने के लिए अमेरिका ने उत्तर कोरिया पर हवाई हमले शुरू कर दिये. अमरीकी बमवर्षक विमान बी-29 और बी-52 देश के हर हिस्से में मंडराने लगे. इससे गांव के गांव और शहर तबाह हो गए. लाखों उत्तर कोरियाई मारे गए. इस क्रूर हमले के बारे में खुद अमरीकी विदेश मंत्री डेयान रस्क ने कहा था- 'हम ने हर हिलती हुई चीज़ पर बमबारी की.
तीन सालों तक उत्तर कोरिया पर नॉनस्टॉप हवाई हमले किए जाते रहे. इसके बाद कई देशों के दखल के बाद युद्दविराम का एलान हो गया. अपने लोगों के मारे जाने के कारण उत्तर कोरिया के मन में आज भी अमेरिका को लेकर गुस्सा है. इसके बाद ये देश खुद को परमाणु शक्ति संपन्न करने लगा. ये देखते हुए अमेरिका ने उसपर आर्थिक प्रतिबंध भी लगा दिए. इससे देश के व्यापार की क्षमता चीन और कुछ कम्युनिस्ट देशों तक ही सीमित रह गई. ये भी उत्तर कोरिया के अमेरिका पर गुस्से का एक कारण है.
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नहीं कर सकते धमकी को नजरअंदाज
गरीबी और आइसोलेशन झेल चुका उत्तर कोरिया अगर किसी देश से जंग का एलान कर दे तो उसे हल्के तौर पर नहीं लिया जा सकता. सालों तक अंतरराष्ट्रीय समुदाय उत्तर कोरिया की सैन्य शक्ति को कम करके आंकता रहा. अब उत्तर कोरिया ने एक नई तरह की इंटरकॉन्टिनेंटल बैलेस्टिक मिसाइल (आईसीबीएम) का परीक्षण किया है जिसका नाम ह्वासोंग-15 है. ऐसा दावा खुद उत्तर कोरिया करता है.

सालों तक अंतरराष्ट्रीय समुदाय उत्तर कोरिया की सैन्य शक्ति को कम करके देखता रहा
बना परमाणु ताकत
जापानी समाचार एजेंसी क्योडो की एक रिपोर्ट के मुताबिक उत्तर कोरिया के अखबार 'रोडोंग सिनमुन' ने अपने पहले पन्ने पर देश की तारीफ करते हुए उसे 'न हारने वाली परमाणु ताकत' बताया. कुल मिलाकर देश के पास सभी तरह की परमाणु ताकत है, जो किसी भी विकसित देश के पास हो सकती है. ये परमाणु बम, हाइड्रोजन बम और यहां तक कि इंटरकॉन्टिनेंटल बैलिस्टिक मिसाइल तक का परीक्षण कर चुका है.
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क्या हो अगर लड़ाई छिड़ ही जाए
ऐसे में अगर अमेरिका या किसी भी देश से भड़का उत्तर कोरिया टकराए तो मामला काफी गंभीर हो जाएगा. इस बारे में वॉक्स में एक विस्तृत रिपोर्ट आई है. इसमें ओबामा प्रशासन के दौरान पेंटागन के टॉप अधिकारी रह चुके पूर्व नेवी अफसर जेम्स स्टेवरिडाइस (James Stavridis) के मुताबिक नॉर्थ कोरिया से जंग काफी मुश्किल होगी. इसकी वजह ये नहीं कि उस देश के पास कितनी सेना है. इसकी वजह ये है कि देश के पास हर तरह का परमाणु हथियार है, जो छोटी से लेकर लंबी दूरी तक वार कर सकता है. उसके पास असीमित संख्या में रॉकेट लॉन्चर भी हैं.
हथियारों का बड़ा जखीरा है
Congressional Research Service के एक अनुमान के मुताबिक अगर नॉर्थ और साउथ कोरिया के बीच भी लड़ाई छिड़ जाए तो किम जोंग उन हर चाहे तो हर मिनट में 10000 रॉकेट छुड़वा सकता है. इससे लड़ाई के शुरुआती दिनों में भी लगभग 300,000 दक्षिण कोरियाई लोग जान से हाथ धो बैठेंगे. ये हाल परमाणु, केमिकल या बायो वेपन के बगैर हो सकता है.

उत्तर कोरिया के पास हर तरह का परमाणु हथियार है, जो छोटी से लेकर लंबी दूरी तक वार कर सकता है सांकेतिक फोटो (Photo-pixabay)
केमिकल हथियार भी जमा कर रखे
बात अगर केमिकल वेपन की आ जाए तो किम के पास दुनिया के सबसे घातक केमिकल हथियार माना जा रहे हैं. एक अनुमान के मुताबिक नॉर्थ कोरियाई सेना के पास ढाई से 5 हजार मेट्रिक टन तक जानलेवा नर्व एजेंट्स हैं, जिनका इस्तेमाल लाखों लोगों को एक बार में मौत दे सकता है. ऐसे में अगर अमेरिका या कोई भी देश ज्यादा आक्रामक हुआ तो दशकों से हार और आइसोलेशन देख रहे देश के तानाशाह को केमिकल हथियार का उपयोग करते देर नहीं लगेगी. खासकर उन हालातों में, जब वो जानता है कि उसके पास अमेरिका जितनी आधुनिक सेना नहीं.
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यही वजह है कि उत्तर कोरिया के लगातार परमाणु परीक्षणों को देखते हुए उसपर रोक के लिए साल 2018 में सिंगापुर में किम जोंग उन और ट्रंप के बीच पहली मुलाकात हुई. बैठक में किम ने कोरियाई प्रायद्वीप के परमाणु निरस्त्रीकरण की दिशा में हामी भरी थी. हालांकि इसके अलावा बैठक के घोषणापत्र में कुछ नहीं कहा गया. इसके बाद हनोई में दोनों देशों के लीडरों की मुलाकात हुई. इस वार्ता को लेकर दोनों ही नेताओं पर परमाणु निरस्त्रीकरण पर ठोस कदम उठाने का दबाव था, लेकिन बातचीत किसी नतीजे पर नहीं पहुंच सकी. न ही अमेरिका ने देश पर लगाए आर्थिक प्रतिबंध ही पूरी तरह खत्म किए.
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Tags: America, Kim Jong Un, North Korea, North korea tension
FIRST PUBLISHED : September 06, 2020, 07:55 IST