सेंटर फॉर पॉलिसी रिसर्च ने गर्मी से निपटने के लिए तैयार की गईं केंद्र व राज्यों की 37 योजनाओं का विश्लेषण किया है.
Heatwave: भारतीय मौसम विभाग पहले ही अनुमान जता चुका है कि इस साल देश में भीषण गर्मी और लू की मार पड़ेगी. अनुमान के मुताबिक, इस साल अप्रैल-मई में ही लू चलना शुरू हो जाएगी. फरवरी 2023 में ही गर्मी ने लोगों के पसीने छुड़ा दिए थे तो मई, जून में क्या होगा, इसका अनुमान लगाना मुश्किल नहीं है. हालांकि, बेमौसम बारिश ने लोगों को गर्मी से कुछ राहत जरूर दी है, लेकिन ये ज्यादा दिन नहीं रहेगी. ऐसे में ये जानना जरूरी है कि अगर अनुमान के मुताबिक देश में गर्मी का प्रकोप पड़ा तो राज्य व केंद्र सरकारों की क्या तैयारी है?
गुजरात के अहमदाबाद में साल 2010 में तापमान 48 डिग्री सेल्सियस पहुंच गया था. उस समय भीषण गर्मी के कारण 750 से ज्यादा लोगों की मौत हो गई थी. इसके बाद गर्मी को लेकर चेते राज्यों ने इससे बचाव की योजनाएं बनानी शुरू कर दी थीं. अधिकारियों और अन्य संगठनों ने मिलकर हीट प्लान बनाए थे. हीट प्लान में भीषण गर्मी और लू के दौरान लोगों को बचाने के उपायों पर विचार किया गया था. साउथ एशिया में अपनी तरह की यह पहली कोशिश थी. इसमें स्वास्थ्यकर्मियों को विशेष प्रशिक्षण से लेकर आम लोगों को जागरूक करने तक के उपाय सुझाए गए थे.
देश में कई दर्जन हीट प्लान तैयार
‘हीट प्लान’ में बताया गया है कि घरों को ठंडा रखने के लिए नारियल की छाल, कागज की लुग्दी और मिट्टी की छत कारगर साबित होगी. यही नहीं, केंद्र और राज्य सरकारों ने कई योजनाएं तैयार की हैं. रिपोर्ट तैयार करने वाली टीम में शामिल रहे आदित्य पिल्लै ने न्यूज एजेंसी एपी से कहा कि हीट प्लान बनाने के मामले में भारत ने अच्छी प्रगति की है. देश में कई दर्जन हीट प्लान मौजूद हैं. फिर भी इन योजनाओं में कई दिक्कतें हें. जब तक उन्हें दूर नहीं किया जाता है, तब ये कारगर साबित नहीं होंगी.
बचाव की तैयारियों अभी अधूरी हैं
सेंटर फॉर पॉलिसी रिसर्च के एक अध्ययन के मुताबिक, देश के कमजोर व गरीब तबके को भीषण गर्मी और भयंकर लू के समय बचाने की तैयारियां अभी अधूरी हैं. गर्मी से निपटने के लिए तैयार की गईं केंद्र व राज्य सरकारों की 37 योजनाओं का विश्लेषण करने के बाद सीपीआर का कहना है कि इनमें जरूरत के अनुसार बदलाव नहीं किए जा रहे हैं. सबसे बड़ी बात अभी तक उन लोगों की भी पहचान नहीं की गई है, जिन्हें भयंकर गर्मी पड़ने पर बचाए जाने या कहें कि मदद की सबसे ज्यादा जरूरत होगी. वहीं, योजनाओं को अमलीजामा पहनाने के लिए जरूरी फंड भी उपलब्ध नहीं है. ये भी तय नहीं है कि इस पर होने वाला खर्च कौन वहन करेगा?
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फंड पर कोई नहीं करता है बात
तूफान, बाढ़, आंधी जैसी प्राकृतिक आपदाओं के मामले में साफ रहता है कि राहत व बचाव के लिए फंड कौन देगा? ये भी पता होता है कि प्राकृतिक आपदा के वक्त लोगों के लिए शुरू की गई योजनाओं को कौन लागू करेगा? इसके उलट हीट प्लान के मामले में फंड पर कोई भी बात करने को तैयार नहीं है. नेशनल रिसोर्सेज डिफेंस काउंसिल में जलवायु व स्वास्थ्य योजनाओं के हेड अभियंत तिवारी का कहना है कि केंद्र की पीएम नरेंद्र मोदी सरकार भीषण गर्मी को लेकर काफी सचेत है, लेकिन उसे भी पहले इन गंभीर सवालों के जवाब तलाशने होंगे, तभी बात बनेगी.
30 साल में गर्मी से 26 हजार की मौत
भारत में बीते 30 साल में करीब 26 हजार लोगों की मौत भीषण गर्मी के कारण हुई है. इनमें झोपड़ बस्ती में रहने वाले लोगों के साथ ही बुजुर्ग, गर्भवती महिलाएं, निर्माण क्षेत्र के मजदूर, घुटनभरे कमरों में काम करने वाले करीबर और किसान शामिल हैं. ये सभी हर बार सबसे पहले भीषण गर्मी और लू की चपेट में आते हैं. वहीं, ग्लोबल वार्मिंग और जलवायु परिवर्तन के कारण तापमान में साल-दर-साल बढ़ोतरी दर्ज की जा रही है. साल में गर्मियों के महीनों की संख्या बढ़ती जा रही है. वहीं, गर्मियों के शुरुआती महीनों में ही भयंकर लू के अनुमान जताए जा रहे हैं. ऐसे में लोगों को भीषण गर्मी से बचाने के लिए कारगर योजना अब जरूरी हो गई है.
काम के घंटों पर भी पड़ेगा असर
जैसे-जैसे गर्मी बढ़ती जाएगी, वैसे-वैसे काम के घंटों पर भी बुरा असर बढ़ता जाएगा. साल 2021 की एक रिपोर्ट के मुताबिक, बढ़ती गर्मी से काम के घंटों का सबसे ज्यादा नुकसान भारत को ही होगा. ये हर साल 100 अरब घंटे से भी ज्यादा तक पहुंच सकता है. अगर ऐसा होता है तो देश की अर्थव्यवस्था पर भी बुरा असर पड़ना लगभग तय है, जो गंभीर भी हो सकता है. लिहाजा, गर्मी को लेकर केंद्र और राज्य सरकारों का रवैया बदलना बहुत ही जरूरी है. इससे हर साल गर्मी के कारण होने वाले जानमाल के नुकसान को रोका जा सकता है.
हो सकता है पेयजल का संकट भी
ऑस्ट्रेलिया और हिमाचल की तरह भीषण गर्मी व भयंकर लू के कारण जंगलों में आग की घटनाएं आम हो सकती हैं. हर साल गर्मियों के दिनों में चेन्नई में पीने के पानी का संकट खड़ा हो जाताहै. अगर हर साल बढ़ती हुई गर्मी से निपटने के लिए ठोस योजना नहीं बनाई गई तो चेन्नई ही नहीं देश के कई राज्यों में जलसंकट पैदा होगा. वहीं, गर्मियों से होने वाली बीमारियों में भी बढ़ोतरी दर्ज की जा सकती है.
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