सऊदी अरब में प्रिंस सलमान (Saudi Prince Mohd Bin Salman) के शासनकाल में महिला अधिकार एक्टिविस्ट लोजैन अल हथलोल को पिछले कुछ सालों से अमानवीय बर्ताव झेलना पड़ा है. हाल में न्यूज़18 ने आपको बताया था कि लोजैन को किस तरह अधिकारों की लड़ाई लड़ने के लिए दमन और प्रताड़ना का शिकार (Loujain Al-Hathloul Sentenced as Terrorist) बनाया गया. ताज़ा खबरों की मानें तो अब इस महिला एक्टिविस्ट की रिहाई के समर्थन में दुनिया के कई हिस्सों से आवाज़ उठ रही है और सऊदी अरब के रवैये के खिलाफ कई प्रतिष्ठित लोगों ने नाराज़गी (Anger Against Saudi Arabia) ज़ाहिर की है. आपको यह भी बताएंगे कि किस तरह पहले भी दुनिया लोजैन के समर्थन में नोबेल पुरस्कार (Nobel Prize for Peace) की पैरवी भी कर चुकी है.
सबसे पहले तो ये जानिए कि सऊदी अरब में कानून और सिस्टम के अनुसार महिलाएं लिंगभेद की ज़बरदस्त शिकार रहीं. ऐसे ही सिस्टम के खिलाफ जब लोजैन ने आवाज़ उठाई तो दो नतीजे हुए, एक तो मध्य पूर्व के इस देश में कुछ नियम कायदों में बदलाव हुए और दूसरे, यह कि लोजैन को इसकी कीमत चुकानी पड़ी. यानी उन्हें गिरफ्तारी, नज़रबंदी, धमकियों, प्रताड़नाओं यहां तक कि यौन शोषण और हत्या के खतरे का भी सामना करना पड़ा. पिछले ही दिनों सऊदी की एक अदालत ने उन्हें आतंकवादी करार देकर करीब छह साल की कैद की सज़ा सुना दी. इस फैसले से दुनिया भर में हलचल मच गई है.
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क्या सऊदी में मानवाधिकार नहीं हैं?
खबरें इस तरह की रहीं कि लोजैन को एक तरह से किडनैप किया गया और उन पर झूठे केस चलाकर उन्हें सज़ा सुना दी गई. संयुक्त राष्ट्र, मानवाधिकार वॉच और मानवाधिकारों से जुड़े कई विशेषज्ञों ने इस फैसले को 'बकवास' और 'निंदनीय' बताया और आरोप लगाया कि सऊदी का राज परिवार संदेह के घेरे में है. यह भी गौरतलब है कि लोजैन की बहन लीना लगातार उनके साथ हो रहे दमनकारी सुलूक के विरोध में आवाज़ उठा रही हैं. सोशल मीडिया से लेकर राजनीति तक वह लोजैन के लिए समर्थन जुटा रही हैं.
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यह भी कहा जा रहा है कि अत्याचारों के खिलाफ कैद में रहते हुए लोजैन ने भूख हड़ताल तक की, लेकिन कोर्ट ने सब बातों को नज़रअंदाज़ करते हुए लोजैन, अन्य एक्टिविस्टों और लोजैन के परिवार पर ज़ुल्म करने वाले सभी अधिकारियों को क्लीन चिट दे दी. एक तरफ, सऊदी प्रशासन के खिलाफ महिलाएं सड़कों पर उतर रही हैं और महिला बाइक रैली तक की गई, तो दूसरी तरफ, इस पूरे मामले में कई देशों ने आवाज़ उठाई.
किन देशों से उठी सऊदी के खिलाफ आवाज़?
लोजैन की रिहाई और इंसाफ के लिए उठी आवाज़ों में सबसे पहले अमेरिका की बात करते हैं. नवनिर्वाचित राष्ट्रपति जो बाइडन के सुरक्षा सलाहकार जेक सुलिवान ने लोजैन को दी गई सज़ा को 'न्याय विरुद्ध' बताया और मानवाधिकारों के साथ खड़े होने की बात कही.

बाइडन के एडवाइज़र सुलिवान ने किया था लोजैन के समर्थन में ट्वीट.
पैरिस के मेयर एन हिडाल्गो ने लोजैन की तत्काल रिहाई की मांग की. बेल्जियम के विदेश मंत्रालय ने लोजैन का समर्थन करते हुए उसकी जल्द रिहाई की बात कहते हुए हमदर्दी ज़ाहिर की. जर्मनी की सांसद बारर्बेल कोफलर ने सऊदी अरब के रवैये पर नाराज़गी जताता और विरोध करता एक पूरा बयान जारी किया. सऊदी अरब पर अंतर्राष्ट्रीय दबाव बनने के बावजूद फिलहाल ऐसी खबर नहीं है कि लोजैन को रिहा करने पर विचार हो रहा हो.
लोजैन के लिए हो चुकी नोबेल की मांग
अक्टूबर 2020 में खबरें थीं कि लोजैन को शांति का नोबेल पुरस्कार देने के पक्ष में फ्रांस की एक अंतर्राष्ट्रीय अधिकार कमेटी ने प्रस्ताव रखा था. इससे पहले, फरवरी 2020 में अमेरिकी कांग्रेस के 8 सदस्यों ने नोबेल के लिए नामित किया था. जब ग्रेटा थनबर्ग को नोबेल की मांग हो रही थी, उसी वक्त लोजैन के लिए भी आवाज़ें उठ रही थीं. कनाडा की एनडीपी ने 2019 के नोबेल पुरस्कार के लिए लोजैन को नामित किया था.
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इसके अलावा, कई अन्य संस्थाएं भी लोजैन को शांति पुरस्कार के पक्ष में थीं क्योंकि सऊदी में महिलाओं की स्थिति में बदलाव लाने के लिए लोजैन बड़ी कीमत पिछले कुछ सालों से चुका रही हैं. उनकी कोशिशें रंग भी लाईं. चेंज पोर्टल ने लोजैन को नोबेल के समर्थन में पिछले साल एक पिटिशन भी जारी की थी. इन तमाम खबरों के बीच क्या सऊदी सिस्टम के कान पर कोई जूं नहीं रेंग रही?

सऊदी अरब के प्रिंस सलमान.
क्या है सऊदी की चाल और दुनिया का रुख?
अमेरिकी मीडिया में कहा गया है कि सऊदी के प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान की रणनीति इस तरह की रही कि एक्टिविस्टों और पश्चिम को शांत करने के लिए देश में कुछ कानूनों में बदलाव कर महिलाओं को कुछ अधिकार मुहैया कराए गए, लेकिन गुस्सा भी एक्टिविस्टों पर निकाला गया. लेकिन कहा गया है कि अब यह दांव उल्टा पड़ सकता है क्योंकि अब एक्टिविस्ट और भी भड़क गए हैं और ज़्यादा बदलाव चाह रहे हैं.
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अमेरिका का साफ रुख है कि सऊदी के प्रिंस को बेहतर तरीके खोजने होंगे और वो भी जल्दी. नहीं हुआ तो नतीजा यह हो सकता है कि बाइडन प्रशासन महिला एक्टिविस्टों के खिलाफ सऊदी की इन 'सत्यानाशी' नीतियों के लिए हर मदद से हाथ खींच ले. अमेरिका ने हाथ खींचे तो सऊदी को कई और दोस्त भी गंवाने पड़ेंगे.
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Tags: Human rights, Saudi arabia, Violence against Women
FIRST PUBLISHED : January 06, 2021, 08:59 IST