लाखों साल पहले इंसानों (Humans) की प्रजातियों में पूरे शरीर पर बाल हुआ करते थे. (तस्वीर: Wikimedia Commons)
पृथ्वी पर मानव विकास और उद्भव (Evolution of Human beings) का अपना इतिहास है. उसके विकासक्रम कई बदलावों को अहम टर्निंग प्वाइंट के रूप में देखा जाता है. जैसे सीधे होकर चलने की क्षमता हासिल करना, पेड़ों को छोड़ जमीन पर चलने लगना ऐसे ही टर्निंग प्वाइंट माने जाते हैं. करीब दस लाख साल पहले मानव के शरीर पर बाल ऊगना (Hairs of whole body) बंद हो गए थे या तकनीकी तौर पर कहें कि लंबे बालों की जगह रोंगटे आ गए थे. नए अध्ययन में पाया गया है कि जो जीन के समूह (Set of Genes) सारे शरीर पर बाल होने के लिए जिम्मेदार हैं वे आज भी इंसानों मे मौजूद हैं और खत्म नहीं हुए हैं.
शरीर के बालों के लिए जिम्मेदार जीन समूह
ई लाइफ जर्नल में प्रकाशित इस नए अध्ययन में वैज्ञानिकों ने पाया है कि यह भी एक प्रमुख बदलाव था जिससे मानव की कुछ जीन के समूह में बदलाव आए थे. इन्हीं से तय होता है कि जीव के सारे शरीर पर बाल रहेंगे या नहीं. इन्हीं जीन्स की वजह से चिंम्पांजियों के शरीर में बाल होते है जबकि आज के मानव यानि होमोसेपियन्स में ऐसा नहीं है.
63 स्तनपायी जानवरों के जीन समूह की तुलना
शोधकर्ताओं ने इस अध्ययन में मानव जैनेटिक ब्लूप्रिटं को 63 अन्य स्तनपायी जीवों के जीन से तुलना की और यह जानने का प्रायस किया कि कैसे अलग अलग समय में विभिन्न प्रजातियां बिना बालों वाले जीव के रूप में विकसित हो गई थीं. इस शोध में उन जीन की भी पहचान की गई जिनका सीधा संबंध पूरे शरीर के बालों से है.
कई सवालों के जवाब मिल सकेंगे
इस खोज के बारे में कहा जा रहा है कि इससे एक दिन दुनिया के करोड़ों लोग जो गंजे हो रहे हैं उनके इलाज में मदद मिल सकेगी. वही विभिन्न स्तनपायी जानवरों के जेनेटिक कोड में बदलावों की तुलना करने की नई तकनीक से वैज्ञानिक इंसान की सेहत से संबंधित कई सवालों के जवाब हासिल कर सकते हैं.
अहम जानकारियां मिलने की उम्मीद भी
इस तकनीक से कई रहस्मयी सवालों के जवाब भी मिल सकते हैं जैसे कैसे किसी खास चूहे की प्रजाति में कैंसर नहीं हो पाता है और उसके जरिए इंसान के जीन में बदालाव किए जा सकते हैं. क्या इंसानों के जीन समूह में बदालव किया उनकी उम्र भी बोहेड व्हेल की तरह 200 साल से ज्यादा की की जा सकती है.
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अब तेजी से हो पा रही है सीक्वेंसिंग
बर्केले की यूनिवर्सिटी ऑफ कैलीफोर्निया में इंटीग्रेटिव बायोलॉजी के असिस्टेंट प्रोफेसर पीटर, जो इस अध्ययन में शामिल नहीं थे, सुडमैंट मानते है कि यह बहुत ही शक्तिशाली एप्लिकेशन है. यह पद्धति ऐसे समय में उपयोग में लाई गई है जब सीक्वेंसिंग तकनीक तेजी से उन्नत हो रही है जिससे वैज्ञानिक ज्यादा तेजी से और सटीकता से लंबे डीएनए सीक्वेंस को पढ़ने में सक्षम हो पा रहे हैं.
निष्क्रिय हैं ये जीन
इस गुण के लिए जिम्मेदार बहुत सारे यानि सैंकड़ों की संख्या में जीन हो सकते हैं. वैज्ञानिकों ने कम्प्यूटेशनल उपकरणों के जरिए इस जीन समूह का पता लगाया और उन्होंने यह भी पाया की यह समूह वैसे तो अब भी मौजूद है लेकिन एक तरह से निष्क्रिय या अप्रभावी है. जहां व्हेल या डॉलफिन में इस तरह के बालों जरूरत नहीं थी इसलिए उनमें ऐसे बाल नहीं पाए जाते हैं. वैज्ञानिकों का कहना है कि प्रजातियों ने खुद को ढालने की प्रवृत्ति के कारण ये जीन सुप्त हो गए थे.
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इंसानों के लिए बालों का जाना उन्हें गर्म जलवायु में ढालने के लिए फायदेमंद था. इसके साथ ही पसीने की तंत्र से शरीर को ठंडा रखने की क्षमता भी विकसित हो गई. इससे उन्होंने शिकार करने में भी मदद मिलने लगी. उल्लेखनीय है कि इंसान का डीएनए 99 फीसद चिम्पांजी, 85 फीसद चूहों और 80 फीसद गायों से मिलता है. वहीं अन्य जानवरों से तुलना भी कई तरह के जीन्स की पहचान करने में मददगार हो सकती है जिससे बहुत सारी समस्याएं सुलझ सकती हैं.
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