Explained : महाराष्ट्र में कोरोना का दौर क्या देश के लिए खतरे की घंटी है?

महाराष्ट्र में कोरोना संक्रमण में तेज़ी दिख रही है.
हर्ड इम्युनिटी (Herd Immunity) को लेकर कोई प्रामाणिक उत्तर नहीं हैं... कोरोना के नए वैरिएंट्स (New Corona Strain) किस तरह देश में फैल रहे हैं, इसे लेकर स्पष्टता नहीं है... ऐसे में महाराष्ट्र व अन्य चार राज्यों में Covid-19 की नई वेव को किस तरह समझा जाए?
- News18Hindi
- Last Updated: February 23, 2021, 11:53 AM IST
फरवरी में 15 से 21 के बीच वाले हफ्ते में भारत में कुल 1,00,990 नए कोरोना मामले (New Corona Cases) सामने आए. इससे पिछले हफ्ते में नए केस 77,284 थे. 24 घंटे के आंकड़े देखें तो देश भर में 21 फरवरी को 14000 से ज़्यादा केस सामने आए यानी जो नंबर 10,000 के आसपास (Coronavirus Data) चल रहा था, कुछ दिनों से लगातार बढ़ रहा है. महाराष्ट्र में तो हर हफ्ते नए केसों में 81 प्रतिशत तक की बढ़ोत्तरी दर्ज हो रही है. अब सवाल यह है कि क्या वैक्सीन कार्यक्रम (Vaccination Drive) के दौर में देश में कोविड-19 की यह एक और लहर है? हर्ड इम्युनिटी के क्या हाल हैं?
स्वास्थ्य मंत्रालय का डेटा बता रहा है कि नए संक्रमण मामलों को देखा जाए तो 86% केस सिर्फ पांच राज्यों (ग्राफिक देखें) में हैं. केंद्र सरकार ने म्यूटेंट स्ट्रेन की निगरानी के साथ ही टेस्ट की संख्या को लेकर पांच राज्यों को बढ़ रहे केसों के मद्देनज़र रणनीति बनाने संबंधी चिट्ठी लिखी है. नाइट लॉकडाउन लगा देने और फिर पूर्ण लॉकडाउन के अंदेशे के बीच महाराष्ट्र में हालात संवेदनशील नज़र आ रहे हैं. कोरोना के इस नए दौर को पूरी तरह से कैसे समझा जाए?
ये भी पढ़ें:- कौन हैं मटुआ, क्यों यह समुदाय बंगाल चुनाव में वोटबैंक राजनीति का केंद्र है?
ये दौर क्या कुछ अलग है?पहली बार नहीं है कि महाराष्ट्र में नए केसों का नंबर बढ़ना शुरू हुआ है. दिल्ली में भी संक्रमण की 3 स्पष्ट वेव देखी गईं और हर बार संक्रमणों का आंकड़ा नए रिकॉर्ड पर पहुंचा. मध्य प्रदेश और पंजाब में भी संक्रमण बढ़ने और घटने के कई पड़ाव दिखे. लेकिन कई कारणों से इस बार महाराष्ट्र व अन्य कुछ राज्यों में संक्रमण का दौर कुछ अलग दिख रहा है.

पहले की तुलना में इस बार नंबर बढ़ने का दौर लंबे समय के बाद दिख रहा है. पांच महीनों तक नंबर घटने के बाद अचानक नंबर बढ़ने शुरू हुए हैं, सिर्फ केरल इस बारे में अपवाद रहा है. यह भी खास बात है कि किसी और देश में लगातार पांच महीनों तक नंबरों में गिरावट का दौर नहीं दिखा. दो से तीन महीनों के अंतराल में ही संक्रमण लौटता दिखा है. इस तरह से भारत में यह वेव कुछ खास हो जाती है. हालांकि इस बारे में विशेषज्ञ कहते हैं कि वैश्विक महामारी के मामले में ऐसा होना ताज्जुब नहीं है, एक साल बाद भी महामारी का दौर पलट सकता है.
क्या महाराष्ट्र देश का आईना माना जाए?
डेटा के ग्राफिक्स को देखें तो महाराष्ट्र में संक्रमण के उतार चढ़ाव का जो ग्राफ बनता है, तकरीबन वैसा ही देश भर का नज़र आता है. देश भर के कुल कोरोना मामलों का करीब 20% हिस्सा रखने वाले इस राज्य में सबसे ज़्यादा 21 लाख से ज़्यादा कोरोना केस सामने आ चुके हैं. अब ऐसा अंदेशा है कि महाराष्ट्र में जिस तरह संक्रमण बढ़ रहा है, देश में भी इसी तरह का उठान देखा जा सकता है.
ये भी पढ़ें:- कौन है पीटर फ्रेडरिक, जिस पर टूलकिट केस में है 'खालिस्तानी कनेक्शन' का आरोप
दिल्ली और अन्य राज्यों में संक्रमण के उतार चढ़ाव के आंकड़ों की तुलना कभी देश के ट्रेंड के साथ नहीं रही. यह तब भी नहीं देखा गया कि जब लगभग सभी जगह संक्रमण के आंकड़े घट रहे थे, लेकिन केरल में लगातार नंबर चिंताजनक बने हुए थे.
नए कोरोना वैरिएंट का क्या रोल है?
वायरस के फिर सिर उठाने के पीछे यह अभी तक पुष्ट नहीं हुआ है कि किसी नए वैरिएंट यानी यूके स्ट्रेन या साउथ अफ्रीका स्ट्रेन का रोल है. लेकिन इसका मतलब यह भी नहीं निकाला जा सकता कि तेज़ी से फैलने वाले इन स्ट्रेनों से ही लोग संक्रमित नहीं हो रहे हों. जीनोम विश्लेषण की प्रक्रिया अभी जारी है, जिसके प्रामाणिक नतीजे अभी सामने नहीं आए हैं.

दूसरी तरफ, महामारी विशेषज्ञ डॉ गिरिधर बाबू ने ट्वीट में लिखा कि उन्हें ऐसा अंदेशा है कि महाराष्ट्र और केरल के ताज़ा आंकड़ों के पीछे शायद वायरस के नए वैरिएंट्स हों. बाबू ने इस बात पर भी हैरानी जताई कि इन दोनों ही राज्यों में क्लस्टर संबंधी रिकॉर्ड क्यों सामने नहीं आए.
और हर्ड इम्युनिटी का क्या हुआ?
महाराष्ट्र में संक्रमण के नए दौर से यह साफ संकेत मिल रहा है कि भारत में हर्ड इम्युनिटी को लेकर जो दावे किए गए थे, वो जल्दबाज़ी वाले थे. अक्टूबर 2020 से जब संक्रमण का दौर धीमा होना शुरू हुआ तो इस तरह की एक धारणा फैल गई कि देश में हर्ड इम्युनिटी विकसित हो चुकी, लेकिन तब भी इस धारणा के पीछे किसी प्रामाणिक सेरो सर्वे के सबूत नहीं थे.
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मामूली सर्वेक्षणों के आधार पर देश भर में करीब 70% आबादी तक में एंटीबॉडी डेवलप हो जाने के दावे तक कर दिए गए थे. लेकिन, आईसीएमआर की स्टडी की मानें तो 20% आबादी में ही सेरो प्रिवलेंस डेवलप हो सका. इसका सीधा मतलब है कि अभी बहुत बड़ी आबादी संक्रमण के खतरे से बाहर नहीं है.
तो कैसे समझी जाए नई वेव?
टेस्टिंग में तो बहुत कमी नहीं आई लेकिन लॉकडाउन वाले प्रतिबंध हटने के बाद त्योहार और चुनाव के मौसम में सोशल डिस्टेंसिंग और मास्क संबंधी नियम नहीं अपनाए गए, राजनीतिक गतिविधियां तेज़ी से बहाल हुईं, किसान आंदोलन में हज़ारों लाखों की भीड़ जुटी और बाज़ार खुल गए तो जनजीवन एक तरह से सामान्य रूप से विशेष सावधानियों के प्रति लापरवाह दिखा.

मुंबई में लोकल ट्रेन की बहाली से लेकर ग्राम पंचायत चुनाव तक ऐसा बहुत कुछ है, जिसे कारणों के तौर पर समझा जा सकता है, लेकिन अब भी विशेषज्ञों के पास कोई माकूल जवाब नहीं है जो मुख्य रूप से महाराष्ट्र और कुछ अन्य राज्यों में अचानक बढ़ रहे संक्रमण के दौर को सही ढंग से समझा सके. इस उलझन को ऐसे देखिए.
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बिहार में जब संक्रमण बढ़ रहा था, तब चुनावी रैलियां देखी गईं, असम और पश्चिम बंगाल में भी ऐसे ही मंजर देखे गए और जारी हैं लेकिन असम में केस नहीं बढ़ रहे. कुछ दिन तो 10 से भी कम केस असम में आए. वहीं बंगाल में भी अन्य राज्यों की तरह नंबर लगातार घटते दिख रहे हैं. लेकिन उलझन की बात यह है कि इन राज्यों ने ऐसा कोई कमाल नहीं किया है, जिससे महाराष्ट्र और केरल चूके हों.
स्वास्थ्य मंत्रालय का डेटा बता रहा है कि नए संक्रमण मामलों को देखा जाए तो 86% केस सिर्फ पांच राज्यों (ग्राफिक देखें) में हैं. केंद्र सरकार ने म्यूटेंट स्ट्रेन की निगरानी के साथ ही टेस्ट की संख्या को लेकर पांच राज्यों को बढ़ रहे केसों के मद्देनज़र रणनीति बनाने संबंधी चिट्ठी लिखी है. नाइट लॉकडाउन लगा देने और फिर पूर्ण लॉकडाउन के अंदेशे के बीच महाराष्ट्र में हालात संवेदनशील नज़र आ रहे हैं. कोरोना के इस नए दौर को पूरी तरह से कैसे समझा जाए?
ये भी पढ़ें:- कौन हैं मटुआ, क्यों यह समुदाय बंगाल चुनाव में वोटबैंक राजनीति का केंद्र है?
ये दौर क्या कुछ अलग है?पहली बार नहीं है कि महाराष्ट्र में नए केसों का नंबर बढ़ना शुरू हुआ है. दिल्ली में भी संक्रमण की 3 स्पष्ट वेव देखी गईं और हर बार संक्रमणों का आंकड़ा नए रिकॉर्ड पर पहुंचा. मध्य प्रदेश और पंजाब में भी संक्रमण बढ़ने और घटने के कई पड़ाव दिखे. लेकिन कई कारणों से इस बार महाराष्ट्र व अन्य कुछ राज्यों में संक्रमण का दौर कुछ अलग दिख रहा है.

न्यूज़18 ग्राफिक्स
पहले की तुलना में इस बार नंबर बढ़ने का दौर लंबे समय के बाद दिख रहा है. पांच महीनों तक नंबर घटने के बाद अचानक नंबर बढ़ने शुरू हुए हैं, सिर्फ केरल इस बारे में अपवाद रहा है. यह भी खास बात है कि किसी और देश में लगातार पांच महीनों तक नंबरों में गिरावट का दौर नहीं दिखा. दो से तीन महीनों के अंतराल में ही संक्रमण लौटता दिखा है. इस तरह से भारत में यह वेव कुछ खास हो जाती है. हालांकि इस बारे में विशेषज्ञ कहते हैं कि वैश्विक महामारी के मामले में ऐसा होना ताज्जुब नहीं है, एक साल बाद भी महामारी का दौर पलट सकता है.
क्या महाराष्ट्र देश का आईना माना जाए?
डेटा के ग्राफिक्स को देखें तो महाराष्ट्र में संक्रमण के उतार चढ़ाव का जो ग्राफ बनता है, तकरीबन वैसा ही देश भर का नज़र आता है. देश भर के कुल कोरोना मामलों का करीब 20% हिस्सा रखने वाले इस राज्य में सबसे ज़्यादा 21 लाख से ज़्यादा कोरोना केस सामने आ चुके हैं. अब ऐसा अंदेशा है कि महाराष्ट्र में जिस तरह संक्रमण बढ़ रहा है, देश में भी इसी तरह का उठान देखा जा सकता है.
ये भी पढ़ें:- कौन है पीटर फ्रेडरिक, जिस पर टूलकिट केस में है 'खालिस्तानी कनेक्शन' का आरोप
दिल्ली और अन्य राज्यों में संक्रमण के उतार चढ़ाव के आंकड़ों की तुलना कभी देश के ट्रेंड के साथ नहीं रही. यह तब भी नहीं देखा गया कि जब लगभग सभी जगह संक्रमण के आंकड़े घट रहे थे, लेकिन केरल में लगातार नंबर चिंताजनक बने हुए थे.
नए कोरोना वैरिएंट का क्या रोल है?
वायरस के फिर सिर उठाने के पीछे यह अभी तक पुष्ट नहीं हुआ है कि किसी नए वैरिएंट यानी यूके स्ट्रेन या साउथ अफ्रीका स्ट्रेन का रोल है. लेकिन इसका मतलब यह भी नहीं निकाला जा सकता कि तेज़ी से फैलने वाले इन स्ट्रेनों से ही लोग संक्रमित नहीं हो रहे हों. जीनोम विश्लेषण की प्रक्रिया अभी जारी है, जिसके प्रामाणिक नतीजे अभी सामने नहीं आए हैं.

महामारी विशेषज्ञ का ट्वीट
दूसरी तरफ, महामारी विशेषज्ञ डॉ गिरिधर बाबू ने ट्वीट में लिखा कि उन्हें ऐसा अंदेशा है कि महाराष्ट्र और केरल के ताज़ा आंकड़ों के पीछे शायद वायरस के नए वैरिएंट्स हों. बाबू ने इस बात पर भी हैरानी जताई कि इन दोनों ही राज्यों में क्लस्टर संबंधी रिकॉर्ड क्यों सामने नहीं आए.
और हर्ड इम्युनिटी का क्या हुआ?
महाराष्ट्र में संक्रमण के नए दौर से यह साफ संकेत मिल रहा है कि भारत में हर्ड इम्युनिटी को लेकर जो दावे किए गए थे, वो जल्दबाज़ी वाले थे. अक्टूबर 2020 से जब संक्रमण का दौर धीमा होना शुरू हुआ तो इस तरह की एक धारणा फैल गई कि देश में हर्ड इम्युनिटी विकसित हो चुकी, लेकिन तब भी इस धारणा के पीछे किसी प्रामाणिक सेरो सर्वे के सबूत नहीं थे.
ये भी पढ़ें:- Explained : पाकिस्तान की तुलना में हम क्यों चुकाते हैं पेट्रोल व डीजल की डबल कीमत?
मामूली सर्वेक्षणों के आधार पर देश भर में करीब 70% आबादी तक में एंटीबॉडी डेवलप हो जाने के दावे तक कर दिए गए थे. लेकिन, आईसीएमआर की स्टडी की मानें तो 20% आबादी में ही सेरो प्रिवलेंस डेवलप हो सका. इसका सीधा मतलब है कि अभी बहुत बड़ी आबादी संक्रमण के खतरे से बाहर नहीं है.
तो कैसे समझी जाए नई वेव?
टेस्टिंग में तो बहुत कमी नहीं आई लेकिन लॉकडाउन वाले प्रतिबंध हटने के बाद त्योहार और चुनाव के मौसम में सोशल डिस्टेंसिंग और मास्क संबंधी नियम नहीं अपनाए गए, राजनीतिक गतिविधियां तेज़ी से बहाल हुईं, किसान आंदोलन में हज़ारों लाखों की भीड़ जुटी और बाज़ार खुल गए तो जनजीवन एक तरह से सामान्य रूप से विशेष सावधानियों के प्रति लापरवाह दिखा.

लॉकडाउन के बाद कोरोना के खतरे के बीच ट्रेन, खास तौर से मुंबई लोकल शुरू होना बड़ा फैक्टर रहा.
मुंबई में लोकल ट्रेन की बहाली से लेकर ग्राम पंचायत चुनाव तक ऐसा बहुत कुछ है, जिसे कारणों के तौर पर समझा जा सकता है, लेकिन अब भी विशेषज्ञों के पास कोई माकूल जवाब नहीं है जो मुख्य रूप से महाराष्ट्र और कुछ अन्य राज्यों में अचानक बढ़ रहे संक्रमण के दौर को सही ढंग से समझा सके. इस उलझन को ऐसे देखिए.
ये भी पढ़ें:- कोरोना के दौर में जमकर बिके ऑक्सीमीटर पर क्यों उठने लगे सवाल?
बिहार में जब संक्रमण बढ़ रहा था, तब चुनावी रैलियां देखी गईं, असम और पश्चिम बंगाल में भी ऐसे ही मंजर देखे गए और जारी हैं लेकिन असम में केस नहीं बढ़ रहे. कुछ दिन तो 10 से भी कम केस असम में आए. वहीं बंगाल में भी अन्य राज्यों की तरह नंबर लगातार घटते दिख रहे हैं. लेकिन उलझन की बात यह है कि इन राज्यों ने ऐसा कोई कमाल नहीं किया है, जिससे महाराष्ट्र और केरल चूके हों.