अपने तारे के बहुत पास होने के कारण इस बाह्यग्रह को नर्क का ग्रह (Hell planet) कहा जा रहा है. (प्रतीकात्मक तस्वीर: shutterstock)
बाह्यग्रहों (Exoplanets) की खोज केवल पृथ्वी के बाहर जीवन की संभावनाओं (Life Beyond the Earth) के लिए ही नहीं की जाती है, बल्कि नए खोजे गए बाह्यग्रह हमारे वैज्ञानिकों को ग्रह तंत्रों के निर्माण की नई और अनोखी जानकारियां देते रहते हैं. हाल ही में खगोलविदों ने एक ऐसा बाह्यग्रह खोजा है, जो अपने गर्म तारे के इतना पास है कि उसकी सतह संभवतः मैग्मा का महासागर (Oceans of Magma) है. यह बाह्यग्रह अपने कई अनोखेपन के लिए वैज्ञानिकों के लिए एक केस स्टडी बन गया है. इसके अध्ययन से वैज्ञानिक यह जान सकते हैं कि कैसे इस तरह के चरम संसार अस्तित्व में आते हैं.
कैसे बना होगा ये ग्रह
55 कैन्सरी ई (Cnacri e) नाम का यह बाह्यग्रह जैनसेन नाम से भी जाना जाता है. इसकी कक्षा के और दूसरे बाह्यग्रहों की कक्षाओं के साथ हुए तुलनात्मक विश्लेषण से पता चला है कि जैनसेन पहले अपने तारे से बहुत दूर पर बना होगा और फिर धीरे धीरे समय के साथ अपने तारे के पास आने लगा होगा जिससे वहां की सतह पिघलने लगी होगी.
अपने आप में अनोखा ग्रह तंत्र
न्यूयॉर्क के फ्लैटिरॉन इंस्टीट्यूट की खगोलभौतिकविद लिली झाओ बताती हैं कि उन्होंने यह जाना है कि कैसे इस बहुल-ग्रहीय तंत्र का निर्माण हुआ और यह अपनी वर्तमान अवस्था में कैसे पहुंचा. हर ग्रह तंत्र के अपने विचित्रताएं या अनोखापन होता है, लेकिन कोपर्निकस सिस्टम, जो पृथ्वी से मात्र 41 प्रकाशवर्ष दूरहै, की भी अपनी विशेषताएं हैं.
कैसा है यह तंत्र और उसका जैनसेन ग्रह
जैनसेन ग्रह के अलावा इस तंत्र के तारे के चार ग्रह हैं जिन्हें गैलीलियो, ब्राहे, हारियॉट, और लिपरहे नाम दिए गए हैं. ये सभी जैनसेन से काफी दूरी पर स्थित हैं. जैनसेन के पास नारंगी बौना तारा हमारे सूर्य से कुछ ही छोटा है, जिसे कोपर्निकस कहते हैं. जैनसेन इसका 18 घंटे में एक चक्कर लगा लेता है. पृथ्वी से इसकी त्रिज्या 1.85 गुना ज्यादा है और भार 8 गुना ज्यादा है.
पृथ्वी जैसे हो सकता था यह ग्रह
यह ग्रह पृथ्वी से थोड़ा ही घना है और एक सामान्य पथरीला सुपरअर्थ हो सकता था अगर यह अपने तारे से ज्यादा दूरी पर स्थित होता तो. लेकिन ऐसा नहीं हैं कोपरनिकस की ओर रुख करने वाले हिस्सा का औसत तापमान 2300 डिग्री सेल्सियस होता है चबकि रात के हिस्से में तापमान करीब 1350 डिग्री सेल्सियस होता है.
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मैग्मा का महासागर
यह तापमान इतना ज्यादा है कि यह पिघले हुए मैग्मा से भी अधिक है और इसी वजह से इस पथरीले ग्रह की सतह पिघले मैग्मा का महासागर होनी चाहिए. शोधकर्ताओं का सुझाव है कि इसकी आंतरिक संरचना निश्चित तौर पर हमारे सौरमंडल के पथरीले ग्रहों की आंतरिक संरचना के जैसी नहीं है. हमारे पास बहुत पास स्थित कॉपरनिकस जैसे बाह्यग्रहीय तंत्र के बारे में बहुत कम जानकारी है.
कैसे पता चला इस ग्रह के बारे में
इस बारे में विस्तार से जानने के लिए शोधकर्ताओं ने पांचों ग्रहों की कक्षाओं का मापन करना शुरू किया. वे यह पहले ही जान चुके थे कि जैनसेन की कक्षा बाकी चार से अलग है. क्योंकि इसकी जानकारी उन्हें तब मिलती है जब ग्रह पृथ्वी और तारे के बीच आता है और हमारे खगोलविदों तारे के प्रकाश में कमी दिखने लगती है. इसके अलावा तारे की डगमगाहट भी तारे पर ग्रह के गुरुत्व के प्रभाव को दिखाती है जिससे पृथ्वी तक आने वाले प्रकाश की आवृत्ति में बदलाव हो जाता है और ग्रह की उपस्थिति के बारे में पता चलता है.
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शोधकर्ताओं ने जैनसेन की कक्षा का रास्ता सटीक रूप से पता किया. इसके अलावा उन्होंने यह भी पाया कि एक समय में कॉपरनिकस के साथी तारे ने तंत्र पर बहुत असर डाला होगा. शायद इसी वह से ग्रहों के कक्षा तल में बदलाव आया. शोधकर्ता इस नतीजे पर भी पहुंचे कि बाहर के ग्रहों ने जैनसेन को अंदर की ओर धकेल दिया होगा तारे की भूमध्य रेखा के पास ज्यादा उभार बताता है कि यहां ज्यादा गुरुत्वाकर्षण होने के कारण भी ग्रह इसकी ओर खिंचा होगा. इसी तरह से शोधकर्ता बाकी ग्रहों का भी अध्ययन कर रहे हैं.
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