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इंटरनेट और सोशल मीडिया ने दुनिया में कैसे बढ़ाई हिंसा और अराजकता

एक रिपोर्ट में युवाओं में सोशल मीडिया और इंटरनेट की वजह से पैदा हुई हिंसात्मक प्रवृत्ति पर रोक लगाने के लिए ट्रेनिंग सेशन की बात की गई थी.

एक रिपोर्ट में युवाओं में सोशल मीडिया और इंटरनेट की वजह से पैदा हुई हिंसात्मक प्रवृत्ति पर रोक लगाने के लिए ट्रेनिंग सेशन की बात की गई थी.

भारत में भी अगर आप सोशल मीडिया (Social Media) पर एक्टिव रहते हैं तो आपको भी आए दिन हेट स्पीच, मिसइन्फॉर्मेशन, फेक न्यूज ...अधिक पढ़ें

    बीते कुछ सालों में दुनिया के तकरीबन हर कोने में राजनीतिक ध्रुवीकरण (Political Polarization) तेजी के साथ बढ़ा है. सामाजिक संघर्ष (Social Struggle) और आंतकवाद (Terrorism) की घटनाएं तेजी के साथ बढ़ी हैं. छोटी घटनाएं भी इंटरनेट और सोशल मीडिया पर फैली अधकचरी जानकारियों के जरिए बड़ी हिंसात्मक घटनाओं में तब्दील होती जा रही हैं. युवाओं में इंटरनेट के इस्तेमाल से अतिवादी विचार पनप रहे हैं. आखिर इन सबके पीछे इंटरनेट और सोशल मीडिया का क्या रोल है?

    टाइम मैगजीन ने एक लेख में कहा है कि मनोवैज्ञानिकों से लेकर राजनीतिक विज्ञानियों ने इस पर काम भी करना शुरू कर दिया है. हिंसात्मक अतिवाद दुनिया के तकरीबन सभी समाज में परेशानी का सबब बनता जा रहा है. पूरी दुनिया में सरकारें और इंटरनेट प्रोवाइडर कंपनियां एहतियाती कदम उठाने की कोशिश में लगी हैं. यूनेस्को द्वारा साल 2017 में इसी संदर्भ में एक रिपोर्ट प्रकाशित की गई थी. इस रिपोर्ट में साल 2012 से 2016 के बीच दुनियाभर में सोशल मीडिया और इंटरनेट के इस्तेमाल से युवाओं में फैलते हिंसात्मक विचार और अतिवादिता का अध्ययन किया गया था.

    why the supreme court delivered such a strict decision on internet shutdown in kashmir
    प्रतीकात्मक तस्वीर


    क्या कहता है अध्ययन
    इस अध्ययन में अंग्रेजी, फ्रेंच, अरबी और चीनी भाषा के ग्रे लिटरेचर का अध्ययन किया गया था. अध्ययन के मुताबिक सोशल मीडिया और इंटरनेट के उभार ने तेजी के साथ सामाजिक हिंसा को बढ़ावा दिया है. इस अध्ययन में बताया गया था कि सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स और इंटरनेट पर फैली जानकारियों का तेजी के साथ फिल्टर जरूरी है. कहा गया था कि धार्मिक और सामाजिक विभाजनकारी कंटेंट लिखा जाता है और तेजी के साथ इसका प्रचार-प्रसार विभिन्न सोशल मीडिया चैनलों और इंटरनेट के जरिए किया जाता है.

    इस रिसर्च को करने वाले शोधकर्ताओं ने 16 प्वांटर सुझाव भी दिए थे. सुझावों में सरकारी उपायों के साथ-साथ स्कूलों और सिविल सोसायटी को भी इसकी रोकथाम में शामिल करने की वकालत की गई थी.

    वहीं ब्रिटिश अखबार द गार्जियन की एक रिपोर्ट में युवाओं में सोशल मीडिया और इंटरनेट की वजह से पैदा हुई हिंसात्मक प्रवृत्ति पर रोक लगाने के लिए ट्रेनिंग सेशन की बात की गई थी. रिपोर्ट में क्रिमिनोलॉजी के प्रोफेसर क्रेग पिंकने ने सुझाया था कि सरकार को ट्रेनिंग सेशन के प्रोग्राम के लिए विशेष फंडिंग का इंतजाम करना चाहिए जिससे युवा पीढ़ी को बचा जा सके. पिंकने ब्रिटेन में बड़े स्तर पर युवाओं को इंटरनेट पर फैली अधकचरी जानकारी से बचाने के लिए ट्रेनिंग सेशन चलाते हैं.

    श्रीलंका है बड़ा उदाहरण
    न्यूयॉर्क टाइम्स ने श्रीलंका में हुई सांप्रदायिक हिंसा पर एक रिपोर्ट के लिए इन्वेस्टीगेशन की. जिसमें हिंसा के लिए गलत इन्फॉर्मेशन और झूठी खबरों की उपज फेसबुक पर हुई, ऐसा सामने आया है. फेसबुक पर क्या पब्लिश होता है, इस पर कंपनी का कोई कंट्रोल नहीं होता, लेकिन फेसबुक ये जरूर तय करता है कि आपको आपकी रुचि की खबरें ही न्यूज फीड में दिखें. साल 2018 में श्रीलंका में फेसबुक को हेट स्पीच और मिसइन्फॉर्मेशन के लिए इस्तेमाल किया गया और इसके नतीजे में पूरे देश में इमरजेंसी लगानी पड़ी. श्रीलंका की सरकार ने फेसबुक को बैन भी कर दिया था. ये घटना बताती है कि फेसबुक किस कदर खतरनाक हो चुका है.

    श्रीलंका लंबे समय तक सांप्रदायिक दंगों से जूझता रहा.


    इस रिपोर्ट में बताया गया है कि समय-समय पर न्यूजफीड पर सामुदायिक नफरतों से भरे पोस्टों की भरमार होती है. फेसबुक वहां खबर और सूचनाएं पाने का पहला प्लेटफॉर्म है. लोकल मीडिया को फेसबुक रिप्लेस कर चुका है, इसलिए कोई इन्हें जांचता भी नहीं. और चूंकि फेसबुक मीडिया ऑर्गनाइजेशन नहीं एक सोशल प्लेटफॉर्म है तो सरकार भी इस पर कोई ज्यादा जोर नहीं चला पाती. इस तरह फेसबकु से मिलने वाली गलत-झूठी खबरों और हेट स्पीच से प्रभावित होकर लोग असल जिंदगी में विनाशकारी काम करते हैं.

    जिन विकासशील देशों में संस्थाएं कमजोर या अविकसित हैं, वहां फेसबुक और अन्य सोशल प्लेटफॉर्म्स की न्यूजफीड और भी खतरनाक प्रवृत्तियों को जन्म दे सकती है. इसे साइट पर यूजर्स के टाइम को बढ़ाने के लिए इस तरह डिजाइन किया गया है इसलिए ये महज अटेंशन के लिए कुछ भी प्रमोट करती है. गुस्सा या डर जगाने वाले नकारात्मक पोस्ट सबसे ज्यादा इंगेजमेंट लाते हैं, इसलिए इनकी संख्या ज्यादा होती है.

    श्रीलंका में फरवरी में हुए हिंसा का आधार फेसबुक पर ही डाला गया था. हिंसा की जड़ ये थी कि सिंहली-बौद्ध समाज को बांझ बनाने के लिए मुस्लिमों की तरफ से साजिश रची गई थी. इस अफवाह के बाद ये नफरत और गुस्से से बढ़कर हिंसा में बदल गई, जिसमें एक व्यक्ति की मौत भी हो गई. ये घटना बताती है कि जिस बात का डर अभी भारत, अमेरिका और यूरोप में फैल रहा था उसका एक नमूना श्रीलंका में दिख गया है.

    भारत में भी अगर आप सोशल मीडिया पर एक्टिव रहते हैं तो आपको भी आए दिन हेट स्पीच, मिसइन्फॉर्मेशन, फेक न्यूज से दो-चार होना पड़ता होगा. अमेरिका में डोनाल्ड ट्रंप को प्रेसिडेंसी दिलाने में फेसबुक के मिसयूज का बवाल बड़ा है. वहां भी अश्वेत और अप्रवासियों के खिलाफ नफरत और हिंसा बढ़ी है और इसके पीछे फेसबुक की बड़ी भूमिका रही है.

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    Tags: Fake news, Internet users, Social media

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