ईश्वर चंद्र विद्यासागर (Ishwar Chandra Vidyasagar) के प्रयासों से बंगाल समाज में बहुत सारे बदलाव देखने को मिले. (फाइल फोटो)
भारत में जब भी समाज सुधारकों की बात होती है तो उनमें ईश्वर चंद्र विद्यासागर (, Ishwar Chandra Vidyasagar) का नाम शीर्ष पर होता है. विद्यासागर 19वीं सदी के महान दार्शनिक, शिक्षाविद, समाज सुधारक (Social Reformer) और लेखक थे. विद्यासागर को ही भारत में विधवा विवाह कानून (Widow Remarriage Act) बनवाने के लिए योगदान देने के लिए जाना जाता है. विद्यासागर ने केवल मौखिक शिक्षा नहीं दी बल्कि खुद आगे आकर ऐसे कार्य किए जो समाज सुधार की नींव साबित हुए. विद्यासागर का 29 जुलाई 1891 को निधन हो गया था. उनके सामाजिक योगदान के लिए उन्हें अभी तक भारत के महान समाज सुधारकों में श्रेष्ठ माना जाता है.
विद्यासागर का जन्म 26 सितंबर,1820 को बंगाल के मेदिनीपुर जिला में हुआ था. उनका बचपन का नाम ईश्वरचंद्र बन्दोपाध्याय था. संस्कृत और दर्शन में उनके विशारद होने के कारण उन्हें छात्र जीवन में ही विद्यासागर कहा जाने लगा.
पढ़ाई में उपलब्धियां
विद्यासागर ने 1839 में ही कानून की पढ़ाई पूरी की. 1841 में 21 साल की उम्र में ही वे फोर्ट लयम कॉलेज में संस्कृत विभाग के प्रमुख के तौर पर काम करने लग गए. इसके बाद वे कलकत्ता के संस्कृत कॉलेज में संस्कृत के प्रोफेसर बने और वहीं लंबे समय काम करते हुए वे उस कॉलेज के प्रिंसिपल भी बन गए.
हिंदू धर्म की कुरीतियां
यूं तो पूरे भारत में ही 19वीं सदी में महिलाओं की स्थिति दकियानूसी परम्पराओं और रीति रिवाजों के नाम पर बहुत ही बुरी थी, लेकिन बंगाल में हालात और भी ज्यादा खराब थे. यहां बहुत से ऐसे धार्मिक कुरीतियां प्रचलन में थी जो हिंदू समाज के नाम पर कलंक की तरह थी. सती प्रथा पर तो कानून बन चुका था, लेकिन बाल विवाह, विधवाओं पर हो रहे अत्याचार बदस्तूर जारी थे.
महिलाओं के स्थिति से निराश थे विद्यासागर
विद्यासागर महिलाओं की स्थिति से खुश नहीं थे. उस दौर में महिलाओं का सम्मान तो था पर उन्हें वे अधिकार नहीं मिले थे जिनकी वे हकादार थीं. बाल विवाह, विधवाओं के प्रति अत्याचार से वे खासे दुखी थे. उन्होंने लड़कियों की शिक्षा के लिए बहुत प्रयास किए जिससे उन्होंने आमतौर पर वंचित रखा जाता था.
जानें उस शख्स को जिसने अंग्रेजों के लिए राजद्रोह केस का ड्राफ्ट तैयार किया
शास्त्रीय प्रमाण का सहारा
विद्यासागर ने जब विधवाओं के लिए आवाज उठानी शुरू की तो उन्हें कट्टरपंथियों का विरोध सहना पड़ा. उन पर हमले भी हुए. वे चाहते थे कि हर हाल में विधवा महिलाओं की फिर से शादी होनी चाहिए, आखिर उन्हें भी जीवन जीने का हक है. उन्होंने शास्त्रीय प्रमाणों से विधवा विवाह को वैध प्रमाणित किया. इसके लिए उन्होंने शास्त्रों की छानबीन की और उन्हें पराशर संहिता में वह तर्क मिला जो कहता था कि ‘विधवा विवाह धर्मसम्मत है.’
विधवा विवाह के लिए बहुत बड़े प्रयास
विधवा विवाह के लिए किए गए उनके प्रयासों को आज भी सराहा जाता है. विद्यासागर ने तत्कालीन सरकार को एक याचिका दी, जिसमें विधवाओं के पुनर्विवाह के लिए कानून बनाने की मांग की गई थी. उनकी कोशिशें साल 1856 में रंग लाईं जब विधवा-पुनर्विवाह कानून पारित हुआ. इसके बाद भी लोगों में इसके प्रति जागरुकता नहीं दिखी तो पहले अपने दोस्त की शादी 10 साल की विधवा से कराई और फिर अपने बेटे का विवाह भी विधवा से करा दिया.
भारत में जब चुना गया था राष्ट्रीय ध्वज, तब ये हुए थे बदलाव
नारी उत्थान के लिए विशेष प्रयास
विद्यासागर ने महिलाओं और कन्याओं की शिक्षा और समाज में स्थान दिलाने के लिए लगातार प्रयास किए. नारी शिक्षा के लिए किए गए उनके प्रयासों को आज भी याद किया जाता है. जब बेटे का विधवा से विवाह कराया तो बंगाल में विधवा विवाह के लेकर एक नया माहौल बनने लगा.
ब्रेकिंग न्यूज़ हिंदी में सबसे पहले पढ़ें News18 हिंदी| आज की ताजा खबर, लाइव न्यूज अपडेट, पढ़ें सबसे विश्वसनीय हिंदी न्यूज़ वेबसाइट News18 हिंदी|
Tags: History, India, Research