पृथ्वी (Earth) पर बाहर जिन ग्रहों पर जीवन की होने की संभावना (Possibility of life) हो सकती है उनमें मंगल (Mars) और शुक्र (Venus) ग्रह शामिल हैं. दोनों में से शुक्र ग्रह में जीवन के हालात बहुत ही ज्यादा प्रतिकूल (Adverse) हैं, लेकिन फिर भी वैज्ञानिकों की इस ग्रह में बहुत अधिक दिलचस्पी है क्योंकि कभी यह ग्रह पृथ्वी के ही जैसा था, लेकिन आज यहां हालात बहुत ही अलग हो गए हैं इसकी वजह की पड़ताल करने वाला शोध कह रहा है कि इसके पीछे गुरू (Jupiter) ग्रह की भूमिका है.
क्या थी गुरू ग्रह की भूमिका
हाल ही में हुए यूसी रिवरसाइड शोध के मुताबिक शुक्र ग्रह में इतने प्रतिकूल हालात इसलिए हैं क्योंकि गुरू ग्रह ने शुक्र ग्रह के सूर्य की परिक्रमा की कक्षा में बदलाव कर दिए हैं. हमारे सौरमंडल में गुरू ग्रह का भार अन्य सभी ग्रहों को मिला कर जितना भार होता है, उसका ढाई गुना है. यही वजह है कि गुरू ग्रह के इस अत्यधिक भार के कारण उसका गुरूत्व दूसरे ग्रहों की कक्षा को बदलने की क्षमता रखता है.
इस घटना ने डाला प्रभाव
पहले गुरू ग्रह का जब निर्माण हो रहा था, तब वे पहले सूर्य के पास आया और फिर उसके सूर्य के पास बनी डिस्क के साथ हुई अंतरक्रिया के कारण वह दूर चला गया. इसके साथ ही वह अन्य ग्रहों से भी दूर रहा. इसी गतिविधि का प्रभाव शुक्रग्रह पर पड़ा. प्लैनेटरी साइंस जर्नल में प्रकाशित इस शोध में दूसरे सौरमंडलों के अवलोकनों से पता चलता है कि बड़े ग्रह के निर्माण के बाद वहां भी इसी तरह की गतिविधियां हुई थी जो एक सामान्य प्रक्रिया है.
पहले पानी भी रहा हो तो उड़ गया होगा
वैज्ञानिकों को लगता है कि जिन ग्रहों में तरल पानी नहीं होता वहां जीवन के पनपने के अनुकूल हालत नहीं होते हैं. शुक्र ग्रह पर पहले पानी था और शुरुआत में हो सकता है कि वहां पानी नहीं रह सका हो, लेकिन शोधकर्ताओं के मुताबिक गुरू ग्रह की गतिविधियों के कारण शुक्र ग्रह आज के हालातों की तरफ आने लगा.

एक समय में गुरू (Jupiter) ग्रह की विशालता का असर शुक्र (Venus) ग्रह की कक्षा (orbit) पर पड़ा था जिससे उसके हालात बदल गए. (प्रतीकात्मक तस्वीर: Pixabay)
सूर्य की परिक्रमा की कक्षा का आकार
यूसीआर के एस्ट्रोबायोलॉजिस्ट और इस शोध के अगुआई करने वाले स्टीफन केन ने बताया, “आज के शुक्र ग्रह के बारे में सबसे दिलचस्प बात यह है कि इसकी सूर्य की परिक्रमा लगाने वाली कक्षा का लगभग पूरी तरह से वृत्ताकार है. इस प्रोजोक्ट के तहत मैं यह जानना चाहता था कि क्या यह कक्षा हमेशा से ही ऐसी थी और अगर नहीं तो इसके क्या प्रभाव हुए.”
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विकेंद्रता की भूमिका
इसके लिए केन ने एक ऐसा मॉडल बनाया जिसने हमारे सौरमंडल का सिम्यूलेशन किया और सभी ग्रहों की स्थितियों की गणना की. इस मॉडल ने यह भी बताया कि कैसे ग्रह एक दूसरे को अलग दिशाओं में खींचते हैं. शोधकर्ताओं ने यह भी मापा कि कैसे किसी ग्रह की कक्षा वृताकार नहीं हैं. इसके लिए उन्हें उन्होंने 0 से 1 अंक के बीच का पैमाना रखा जिसमें 0 का मतलब पूर्णतः वृत्ताकार था और 1 का मतलब किसी भी तरह से वृत्ताकार न होना था. इसे कक्षा की विकेंद्रता (Eccentricity of the orbit) कहते हैं. केन के अनुसार एक विकेंद्रता का मतलब ग्रह का कक्षा से एक तरह से बाहर ही चले जाना होता है.
शुक्र की विकेंद्रता मे कितना बदलाव
फिलहाल शुक्र ग्रह की विकेंद्रता का मान 0.006 है जिसका मतलब लगभग पूरी तरह से वृत्ताकार है. ऐसा सौरमंडल के किसी और ग्रह के साथ नहीं है. केन का मॉडल दर्शाता है कि जब एक अरब साल पहले गुरू ग्रह सूर्य को पास था तब शुक्र ग्रह की विकेंद्रता 0.3 थी और इस बात की प्रबल संभावना है कि तब यह ग्रह आवासयोग्य था यानि तब जीवन के पनपने के हालात काफी अनुकूल थे. गुरू ग्रह के जाने के बाद ही वहां के हालात में नाटकीय बदलाव आ गया.

एक समय पर पृथ्वी (Earth) और शुक्र (Venus) ग्रह के हालात बिलकुल एक ही जैसे थे. (प्रतीकात्मक तस्वीर: Pixabay)
फोस्फीन गैस के मिलने के मायने
हाल ही में शुक्र ग्रह पर पाई फोस्फीन गैस से लगता है कि वहां जीवन हो सकता है क्योंकि पृथ्वी पर यह गैस केवल सूक्ष्मजीव ही पैदा कर सकते हैं. शोधकर्ताओं को लगता है कि हो सकता है कि इस गैस का होना यह बताता है कि कैसे शुक्र ग्रह का पर्यावरण नाटकीय बदलावों से गुजरा होगा. केन का मानना है कि सूक्ष्मजीव शुक्र के सल्फ्यूरिक एसिड के बादलों में एक अरब साल तक बने रह सके होंगे, यह मुश्किल लगता है लेकिन नामुमकिन नहीं है.
मंगल की सतह के नीचे तरल पानी के होने मिले संकेत, जागी नई उम्मीद
केन का कहना है कि गैस के बनने के अन्य कारण भी हो सकते है जिनका पता नहीं लग पाया हो. ऐसे में यह जानना बहुत जरूरी है कि शुक्र ग्रह पर हुआ क्या था जो एक समय आवासयोग्य रहा इस ग्रह की सतह का तापमान 450 डिग्री सेल्सियस तक पहुंच गया है.undefined
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Tags: Research, Science, Space
FIRST PUBLISHED : October 02, 2020, 13:00 IST