KBC सवाल: क्यों वनवास में पीले रंग के कपड़े धारण करती थीं माता सीता?

वनवास और रावण की नगरी में रहने के दौरान सीता ने पीले रंग के वस्त्र धारण किये थे-सांकेतिक फोटो
कौन बनेगा करोड़पति (Kaun Banega Crorepati) के नए सीजन में रामायण पर एक सवाल पूछा गया. ये सवाल माता सीता के वस्त्रों के रंग से संबंधित था.
- News18Hindi
- Last Updated: October 9, 2020, 1:08 PM IST
कौन बनेगा करोड़पति के 12वें सीजन में एक सवाल पूछा गया- रावण द्वारा अपहरण के दौरान माता सीता ने कौन से रंग के कपड़े पहने हुए थे. इसके चार विकल्प थे- लाल, पीला, गुलाबी और नीला. इस सवाल का जवाब न दे पाने पर हॉट सीट पर बैठी प्रतिभागी ने प्रतियोगिता से बाहर निकलने का फैसला कर लिया. वैसे इसका सही जवाब पीला रंग है. पूरे वनवास और रावण की नगरी में रहने के दौरान सीता ने पीले रंग के वस्त्र धारण किये थे. इसकी भी एक बड़ी वजह है.
राम को 14 सालों का वनवास मिलने पर माता सीता ने भी साथ जाने का फैसला किया. वनवास का मतलब है- सारे मोह-माया और सबसे अहम तौर पर वैभव का त्याग. ये देखते हुए राम-सीता और लक्ष्मण तीनों ने ही अपने आभूषणों से लेकर राजसी कपड़ों का त्याग कर दिया और इनकी बजाए पीले रंग के कपड़े पहने. वैसे तो साधु-संन्यासियों में गेरुए रंग के परिधान पहनने की परंपरा है लेकिन ये कपड़े संसार त्याग को बताते हैं. गेरुए चोले में जाना यानी गृहत्याग ही नहीं, बल्कि गृहस्थ जीवन को भी छोड़ देना होता है. राम-सीता चूंकि संन्यासी नहीं, गृहस्थ थे और वचनबद्ध होकर वनवास जा रहे थे, लिहाजा उन्होंने गेरुए की जगह पीले वस्त्रों को चुना.

अलग महत्व है इन रंगों कावैसे भारतीय संस्कृति में भगवा और पीले रंग का बहुत खास महत्व है. सभी महत्वपूर्ण और धार्मिक कामों में इन दो रंगों की महत्ता को सबसे ऊपर रखा गया है लेकिन ये रंग क्यों हिंदू संस्कृति और पूजा और शुभकार्यों से जुड़ गए, ये जरूर सोचने वाली बात है. ये भी कहा जाता है कि ये दोनों ऐसे रंग हैं, जो देवताओं को भी बहुत प्रिय हैं.
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विज्ञान के तौर पर पीला रंग
विज्ञान के तौर पर देखें तो पीला रंग वह रंग है जो कि मानवीय आंखों के शंकुओं में लम्बे एवं मध्यमक, दोनों तरंग दैर्घ्य वालों को प्रभावित करता है. ये वो रंग है, जिसमें लाल और हरा दोनों रंग बहुलता में होते हैं. हिंदू परंपरा की बात की जाए तो पीले रंग का इस्तेमाल धार्मिक अनुष्ठान, और विद्या के लिए शुभ माना जाता है.
ये भी पढ़ें: क्यों चीन के लिए Indian Army का टैंक 'भीष्म' सबसे घातक साबित हो सकता है?
धार्मिक मान्यता क्या है
भगवान कृष्ण को पीतांबरधारी भी कहा जाता है, वो हमेशा पीले रंग में होते थे. तो भगवान राम भी जब वनवास के लिए अयोध्या से निकले तो उन्होंने पीले रंग के वस्त्र धारण किए. दरअसल, पीला रंग शुद्ध और सात्विक प्रवृत्ति का परिचायक है. शुभ कामों में पीले रंग के वस्त्रों का इस्तेमाल खूब होता है. मांगलिक कार्यों में पीले रंग की हल्दी इस्तेमाल होता है. वहीं ज्योतिष शास्त्र में माना जाता है कि पीला रंग मन को शांत रखता है, नकारात्मक विचारों को दूर करता है.

सृजन और सादगी का प्रतीक
यह सादगी और निर्मलता का भी प्रतीक है. सृष्टि के पालनकर्ता भगवान विष्णु को भी पीला रंग प्रिय है. पीला रंग धारण करने से हमारी सोच सकारात्मक होती है. ये हमारे सृजन का भी प्रतीक है. यह हमें परोपकार करने की प्रेरणा देता है.
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भगवा रंग क्यों
भगवा को भी पीले रंग का एक विस्तार माना जाता है. आमतौर पर संन्यासी नारंगी (भगवा) वस्त्र पहनते हैं. नारंगी रंग लाल और पीले रंग का मिश्रण है. लाल रंग दृढ़ता का प्रतीक है तो पीले रंग की सात्विका से जुड़कर ये व्यापक भाव ले लेता है. इन्हीं भावों के सहारे हम संसार का माया-मोह त्याग पाते हैं.
तब तिरंगे में क्यों शामिल हुआ भगवा
केसरिया यानी भगवा रंग वैराग्य का रंग है. हमारे आज़ादी के दीवानों ने इस रंग को सबसे पहले अपने ध्वज में इसलिए सम्मिलित किया जिससे आने वाले दिनों में देश के नेता अपना लाभ छोड़ कर देश के विकास में खुद को समर्पित कर दें. हालांकि इसे उमंग और उत्साह के रंग से भी जोड़ा जाता रहा है.
राम को 14 सालों का वनवास मिलने पर माता सीता ने भी साथ जाने का फैसला किया. वनवास का मतलब है- सारे मोह-माया और सबसे अहम तौर पर वैभव का त्याग. ये देखते हुए राम-सीता और लक्ष्मण तीनों ने ही अपने आभूषणों से लेकर राजसी कपड़ों का त्याग कर दिया और इनकी बजाए पीले रंग के कपड़े पहने. वैसे तो साधु-संन्यासियों में गेरुए रंग के परिधान पहनने की परंपरा है लेकिन ये कपड़े संसार त्याग को बताते हैं. गेरुए चोले में जाना यानी गृहत्याग ही नहीं, बल्कि गृहस्थ जीवन को भी छोड़ देना होता है. राम-सीता चूंकि संन्यासी नहीं, गृहस्थ थे और वचनबद्ध होकर वनवास जा रहे थे, लिहाजा उन्होंने गेरुए की जगह पीले वस्त्रों को चुना.

भारतीय संस्कृति में भगवा और पीले रंग का बहुत खास महत्व है- सांकेतिक फोटो (flickr)
अलग महत्व है इन रंगों कावैसे भारतीय संस्कृति में भगवा और पीले रंग का बहुत खास महत्व है. सभी महत्वपूर्ण और धार्मिक कामों में इन दो रंगों की महत्ता को सबसे ऊपर रखा गया है लेकिन ये रंग क्यों हिंदू संस्कृति और पूजा और शुभकार्यों से जुड़ गए, ये जरूर सोचने वाली बात है. ये भी कहा जाता है कि ये दोनों ऐसे रंग हैं, जो देवताओं को भी बहुत प्रिय हैं.
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विज्ञान के तौर पर पीला रंग
विज्ञान के तौर पर देखें तो पीला रंग वह रंग है जो कि मानवीय आंखों के शंकुओं में लम्बे एवं मध्यमक, दोनों तरंग दैर्घ्य वालों को प्रभावित करता है. ये वो रंग है, जिसमें लाल और हरा दोनों रंग बहुलता में होते हैं. हिंदू परंपरा की बात की जाए तो पीले रंग का इस्तेमाल धार्मिक अनुष्ठान, और विद्या के लिए शुभ माना जाता है.
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धार्मिक मान्यता क्या है
भगवान कृष्ण को पीतांबरधारी भी कहा जाता है, वो हमेशा पीले रंग में होते थे. तो भगवान राम भी जब वनवास के लिए अयोध्या से निकले तो उन्होंने पीले रंग के वस्त्र धारण किए. दरअसल, पीला रंग शुद्ध और सात्विक प्रवृत्ति का परिचायक है. शुभ कामों में पीले रंग के वस्त्रों का इस्तेमाल खूब होता है. मांगलिक कार्यों में पीले रंग की हल्दी इस्तेमाल होता है. वहीं ज्योतिष शास्त्र में माना जाता है कि पीला रंग मन को शांत रखता है, नकारात्मक विचारों को दूर करता है.

धार्मिक कामों में पीले रंग को सबसे ऊपर रखा गया है- सांकेतिक फोटो (pxfuel)
सृजन और सादगी का प्रतीक
यह सादगी और निर्मलता का भी प्रतीक है. सृष्टि के पालनकर्ता भगवान विष्णु को भी पीला रंग प्रिय है. पीला रंग धारण करने से हमारी सोच सकारात्मक होती है. ये हमारे सृजन का भी प्रतीक है. यह हमें परोपकार करने की प्रेरणा देता है.
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भगवा रंग क्यों
भगवा को भी पीले रंग का एक विस्तार माना जाता है. आमतौर पर संन्यासी नारंगी (भगवा) वस्त्र पहनते हैं. नारंगी रंग लाल और पीले रंग का मिश्रण है. लाल रंग दृढ़ता का प्रतीक है तो पीले रंग की सात्विका से जुड़कर ये व्यापक भाव ले लेता है. इन्हीं भावों के सहारे हम संसार का माया-मोह त्याग पाते हैं.
तब तिरंगे में क्यों शामिल हुआ भगवा
केसरिया यानी भगवा रंग वैराग्य का रंग है. हमारे आज़ादी के दीवानों ने इस रंग को सबसे पहले अपने ध्वज में इसलिए सम्मिलित किया जिससे आने वाले दिनों में देश के नेता अपना लाभ छोड़ कर देश के विकास में खुद को समर्पित कर दें. हालांकि इसे उमंग और उत्साह के रंग से भी जोड़ा जाता रहा है.