केबीसी किस्सा : जब बाबूजी ने अमिताभ से रखवाई मकान की नींव में कलम

पिता हरिवंश राय बच्चन के साथ अमिताभ की यादगार तस्वीर.
कविता की भूमिका उपन्यास भी हो सकती है. अमिताभ बच्चन (Amitabh Bachchan) ने अपने पिता हरिवंश राय बच्चन की कविता से जुड़ा ऐसा ही प्रसंग कौन बनेगा करोड़पति (Kaun Banega Crorepati) में दो लाइनों में सुनाया, लेकिन पीछे इतिहास और परंपरा है.
- News18Hindi
- Last Updated: January 14, 2021, 7:55 AM IST
'क़लम को पलुहाने में पीढ़ियां लगती हैं.' हिन्दी के सबसे लोकप्रिय कवियों (Popular Hindi Poet) में शुमार हरिवंश राय बच्चन ने क़लम के साथ–साथ बंदूक भी चलाई थी. लेकिन बंदूक चलाने में न तो पीढ़ियां लगती हैं और न ही उसे पालना–पोसना पड़ता है, शायद इसलिए बंदूक उनके साथ बहुत समय तक नहीं रही. बॉलीवुड के महानायक (Bollywood Superstar) और टीवी गेम शो कौन बनेगा करोड़पति के होस्ट अमिताभ बच्चन ने 'बाबूजी' की याद ताज़ा करते हुए बुधवार रात उस कविता (Harivansh Rai Bachchan Poetry) की कहानी सुनाई, जिसमें हरिवंश राय बच्चन ने लिखा था :
"मैं कलम और बंदूक़ चलाता हूँ दोनों ; दुनिया में ऐसे बन्दे कम पाए जाते हैं"
केबीसी में प्रतियोगी के साथ बातचीत के दौरान एक प्रसंग से छिड़ा यह किस्सा सुनाते हुए अमिताभ बच्चन ने बताया कि उनके पिता ने अपनी कविता में ये पंक्तियां क्यों लिखी थीं. अस्ल में, जब हरिवंश राय बच्चन इलाहाबाद यूनिवर्सिटी में थे, तब ब्रिटिश व्यवस्था के तहत आर्मी की ट्रेनिंग अनिवार्य हुआ करती थी. इसी ट्रेनिंग के तहत 'बाबूजी' को बंदूक भी चलाना पड़ी थी.
इस कविता पंक्ति को 27 नवंबर 2020 को अमिताभ बच्चन ने 'बाबूजी' की 113वीं जयंती पर भी याद किया था. इस कविता के पीछे कौन सा इतिहास है? यह भी जानिए कि इस कविता की नींव में खुद बच्चन खानदान की कौन सी परंपरा रही.ये भी पढ़ें :- वो आखिरी भयानक केस, जब किसी महिला को अमेरिका में मिली सज़ा-ए-मौत
वो संगठन जो बाद में एनसीसी बना
अस्ल में हरिवंश राय बच्चन को UTC यानी यूनिवर्सिटी ट्रेनिंग कॉर्प्स के तहत बंदूक चलाने का अनुभव मिला था. 1917 में ब्रिटिश राज में इंडियन डिफेंस एक्ट 1917 पास हुआ था, जिसे 1920 से लागू किया गया. इस एक्ट के तहत यूनिवर्सिटी कॉर्प्स को UTC में बदला गया जिसका मकसद था, ब्रिटिश फौजों में समय पड़ने पर सैनिकों की कमी न पड़े इसलिए छात्र जीवन में आर्मी ट्रेनिंग देकर फौजी तैयार किए जाएं.
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चूंकि पहला विश्व युद्ध बीत चुका था इसलिए आने वाले युद्ध समय की तैयारी ब्रिटिशों ने इस तरह की थी. यूनिवर्सिटियों में इस ट्रेनिंग के दौरान छात्रों को आर्मी जैसी ड्रेस दी जाती थी. समय के साथ इस संगठन में बदलाव हुआ और 1942 में इसे UOTC यानी यूनिवर्सिटी ऑफिसर्स ट्रेनिंग कॉर्प्स के रूप में बदला गया.
चूंकि दूसरे विश्व युद्ध के समय यह आइडिया कारगर नहीं दिखा इसलिए इस संगठन को नये सिरे से खड़ा करने पर विचार जारी था. आज़ादी के बाद एचएन कुंज़रू के नेतृत्व में बनी एक कमेटी ने पूरे देश में स्कूलों और कॉलेजों में इस संगठन को फैलाने के बारे में सिफारिश की और इस तरह 15 जुलाई को 1948 को नेशनल कैडेट कॉर्प्स अस्तित्व में आया, जिसे एनसीसी के नाम से ज़्यादा जाना जाता है.
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लेकिन यह बंदूक कभी तलवार थी!
हरिवंश राय बच्चन से कभी पूछा गया था कि 'मधुशाला लिखने वाले कवि ने खुद कितनी शराब पी?' जवाब में उन्होंने एक छन्द दिया था :
"मैं कायस्थ कुलोद्भव, पुरखों ने इतना ढाला
मेरे तन के लोहू में, पचहत्तर प्रतिशत हाला"
इसी तरह, हरिवंश राय बच्चन को UTC में जो अनुभव मिला, वास्तव में 'पुरखों की तलवार का लोहा ही बंदूक में पिघलने' की मिसाल था. जी हां, बच्चन ने अपनी चर्चित आत्मकथा के 'दशद्वार से सोपान तक' खंड में इस प्रसंग का उल्लेख किया है. उन्होंने अपने पुरखे मिट्ठूलाल को अपने खानदान के पहले क्रांतिकारी के तौर पर याद करते हुए बताया कि उन्होंने मरते समय 'गोदान नहीं अश्वदान' किया था.
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यही नहीं, उनके परदादा और दादा क़लम से ज़्यादा तलवार चलाया करते थे. यह बात कहते हुए दो यादगार सूत्र बच्चन ने दिए थे. पहला यह कि 'क़लम को पलुहाने में पीढ़ियां लगती हैं' और दूसरा यह कि किस तरह उनकी घरों की बुनियाद में क़लम और तलवार की परंपरा रही.

वो परंपरा जो अमिताभ ने भी निभाई
इसी प्रसंग में बच्चन ने लिखा कि जब 1980 के दशक में दिल्ली में उनके मकान निर्माण की बात तय हुई तो उन्होंने अमिताभ के हाथों मकान की नींव डलवाना तय किया. जब उनकी पत्नी तेजी बच्चन ने इस बारे में बात की तो उन्हें अपने खानदान का इतिहास याद आया कि उनके परदादा ने जब मकान बनवाया था, तो उसकी नींव में एक तलवार और एक क़लम रखी थी. यह सोचकर कि उनके वंश में वीर और लेखक पैदा हों.
इसके बाद जब उनके पिताजी ने मुट्ठीगंज वाले मकान की नींव रखी तो वातावरण में 'गांधी की अहिंसा की गूंज' थी इसलिए केवल क़लम रखी. इसी परंपरा के तहत हरिवंश राय ने लिखा था कि 'अमिताभ मकान की नींव में एक क़लम रख दें' और बाकी शिलान्यास पुरोहित के कहे अनुसार हो जाए. इस प्रसंग में उन्होंने बताया था कि कैसे उनके पिता और दादा ने कविता लेखन की कोशिशें की थीं. उन्होंने समझाया कि नींव में उनके परदादा की रखी तलवार में तो ज़ंग लग गई लेकिन क़लम में पीढ़ियों बाद अंकुर फूटे.
"मैं कलम और बंदूक़ चलाता हूँ दोनों ; दुनिया में ऐसे बन्दे कम पाए जाते हैं"
केबीसी में प्रतियोगी के साथ बातचीत के दौरान एक प्रसंग से छिड़ा यह किस्सा सुनाते हुए अमिताभ बच्चन ने बताया कि उनके पिता ने अपनी कविता में ये पंक्तियां क्यों लिखी थीं. अस्ल में, जब हरिवंश राय बच्चन इलाहाबाद यूनिवर्सिटी में थे, तब ब्रिटिश व्यवस्था के तहत आर्मी की ट्रेनिंग अनिवार्य हुआ करती थी. इसी ट्रेनिंग के तहत 'बाबूजी' को बंदूक भी चलाना पड़ी थी.
इस कविता पंक्ति को 27 नवंबर 2020 को अमिताभ बच्चन ने 'बाबूजी' की 113वीं जयंती पर भी याद किया था. इस कविता के पीछे कौन सा इतिहास है? यह भी जानिए कि इस कविता की नींव में खुद बच्चन खानदान की कौन सी परंपरा रही.ये भी पढ़ें :- वो आखिरी भयानक केस, जब किसी महिला को अमेरिका में मिली सज़ा-ए-मौत
T 3735 - 27 नवंबर, 2020 पूज्य बाबूजी डॉ. हरिवंश राय बच्चन जी की 113वीं जयंती पर उन्हें कोटि-कोटि शत-शत नमन !!
"मैं कलम और बंदूक़ चलता हूँ दोनों ; दुनिया में ऐसे बंदे कम पाए जाते हैं"" मैं छुपाना जानता तो जग मुझे साधु समझता ; शत्रु मेरा बन गया है छल रहित व्यवहार मेरा" !~बच्चन pic.twitter.com/jprCYKICHJ— Amitabh Bachchan (@SrBachchan) November 27, 2020
वो संगठन जो बाद में एनसीसी बना
अस्ल में हरिवंश राय बच्चन को UTC यानी यूनिवर्सिटी ट्रेनिंग कॉर्प्स के तहत बंदूक चलाने का अनुभव मिला था. 1917 में ब्रिटिश राज में इंडियन डिफेंस एक्ट 1917 पास हुआ था, जिसे 1920 से लागू किया गया. इस एक्ट के तहत यूनिवर्सिटी कॉर्प्स को UTC में बदला गया जिसका मकसद था, ब्रिटिश फौजों में समय पड़ने पर सैनिकों की कमी न पड़े इसलिए छात्र जीवन में आर्मी ट्रेनिंग देकर फौजी तैयार किए जाएं.
ये भी पढ़ें :- कौन है मोक्सी, जिनका बनाया सिगनल एप भारत में धड़ाधड़ डाउनलोड हो रहा है
चूंकि पहला विश्व युद्ध बीत चुका था इसलिए आने वाले युद्ध समय की तैयारी ब्रिटिशों ने इस तरह की थी. यूनिवर्सिटियों में इस ट्रेनिंग के दौरान छात्रों को आर्मी जैसी ड्रेस दी जाती थी. समय के साथ इस संगठन में बदलाव हुआ और 1942 में इसे UOTC यानी यूनिवर्सिटी ऑफिसर्स ट्रेनिंग कॉर्प्स के रूप में बदला गया.
चूंकि दूसरे विश्व युद्ध के समय यह आइडिया कारगर नहीं दिखा इसलिए इस संगठन को नये सिरे से खड़ा करने पर विचार जारी था. आज़ादी के बाद एचएन कुंज़रू के नेतृत्व में बनी एक कमेटी ने पूरे देश में स्कूलों और कॉलेजों में इस संगठन को फैलाने के बारे में सिफारिश की और इस तरह 15 जुलाई को 1948 को नेशनल कैडेट कॉर्प्स अस्तित्व में आया, जिसे एनसीसी के नाम से ज़्यादा जाना जाता है.
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हरिवंश राय बच्चन की आत्मकथा बेहद चर्चित आत्मकथाओं में शुमार है.
लेकिन यह बंदूक कभी तलवार थी!
हरिवंश राय बच्चन से कभी पूछा गया था कि 'मधुशाला लिखने वाले कवि ने खुद कितनी शराब पी?' जवाब में उन्होंने एक छन्द दिया था :
"मैं कायस्थ कुलोद्भव, पुरखों ने इतना ढाला
मेरे तन के लोहू में, पचहत्तर प्रतिशत हाला"
इसी तरह, हरिवंश राय बच्चन को UTC में जो अनुभव मिला, वास्तव में 'पुरखों की तलवार का लोहा ही बंदूक में पिघलने' की मिसाल था. जी हां, बच्चन ने अपनी चर्चित आत्मकथा के 'दशद्वार से सोपान तक' खंड में इस प्रसंग का उल्लेख किया है. उन्होंने अपने पुरखे मिट्ठूलाल को अपने खानदान के पहले क्रांतिकारी के तौर पर याद करते हुए बताया कि उन्होंने मरते समय 'गोदान नहीं अश्वदान' किया था.
ये भी पढ़ें :- वो दीवार, जो ट्रंप जाते-जाते खड़ी कर गए हैं, क्या करेंगे बाइडेन?
यही नहीं, उनके परदादा और दादा क़लम से ज़्यादा तलवार चलाया करते थे. यह बात कहते हुए दो यादगार सूत्र बच्चन ने दिए थे. पहला यह कि 'क़लम को पलुहाने में पीढ़ियां लगती हैं' और दूसरा यह कि किस तरह उनकी घरों की बुनियाद में क़लम और तलवार की परंपरा रही.

केबीसी होस्ट करते हुए अमिताभ बच्चन की तस्वीर.
वो परंपरा जो अमिताभ ने भी निभाई
इसी प्रसंग में बच्चन ने लिखा कि जब 1980 के दशक में दिल्ली में उनके मकान निर्माण की बात तय हुई तो उन्होंने अमिताभ के हाथों मकान की नींव डलवाना तय किया. जब उनकी पत्नी तेजी बच्चन ने इस बारे में बात की तो उन्हें अपने खानदान का इतिहास याद आया कि उनके परदादा ने जब मकान बनवाया था, तो उसकी नींव में एक तलवार और एक क़लम रखी थी. यह सोचकर कि उनके वंश में वीर और लेखक पैदा हों.
इसके बाद जब उनके पिताजी ने मुट्ठीगंज वाले मकान की नींव रखी तो वातावरण में 'गांधी की अहिंसा की गूंज' थी इसलिए केवल क़लम रखी. इसी परंपरा के तहत हरिवंश राय ने लिखा था कि 'अमिताभ मकान की नींव में एक क़लम रख दें' और बाकी शिलान्यास पुरोहित के कहे अनुसार हो जाए. इस प्रसंग में उन्होंने बताया था कि कैसे उनके पिता और दादा ने कविता लेखन की कोशिशें की थीं. उन्होंने समझाया कि नींव में उनके परदादा की रखी तलवार में तो ज़ंग लग गई लेकिन क़लम में पीढ़ियों बाद अंकुर फूटे.