सरदार वल्लभभाई पटेल (sardar patel archieve)
सरदार वल्लभ भाई पटेल दृढइच्छाशक्ति वाले नेता थे तो ऐसे नेता भी, जिन्होंने ताउम्र अपना जीवन बहुत सादगी और ईमानदारी से जिया. कहा जा सकता है कि वो ऐसे भारतीय नेता थे, जो एक तरह से बंटवारे के बाद आजाद होने वाले भारत के लिए वरदान की तरह थे. उन्हें जो टास्क मिला, उसको उन्होंने शिद्दत से पूरा किया. वल्लभ भाई पटेल बहुत साधारण परिवार से आने वाले नेता थे. उनके जीवन में तीन महिलाएं ऐसी थीं, जिन्होंने उन पर अपनी अपनी तरह से असर डाला.
कौन थी वो तीन महिलाएं. इन महिलाओं के बारे में पटेल के जीवन या उसके बाद बहुत ज्यादा चर्चा शायद ही सुनी गई हो. हालांकि इनमें एक ऐसी जरूर थीं, जो राजनीति में सक्रिय हुईं. कांग्रेस की सांसद रहीं और फिर जनता पार्टी में चली गईं.
कौन थीं ये तीन महिलाएं
इन तीन महिलाओं में एक थीं उनकी मां लाड बा, जो गांव की साधारण महिला थीं लेकिन गजब के इरादों वाली. वह सरदार पटेल पर अक्सर नाराज भी हो जाया करती थीं. उन्हें लताड़ती भी थीं लेकिन थीं निश्चछ मां. दूसरी थीं उनकी पत्नी झवेर बा, जिनकी मृत्यु को लेकर ये कहानियां हम सबने पढ़ी होंगी कि जिस समय उनका निधन हुआ, तब सरदार पटेल कोर्ट में एक केस लड़ रहे थे. तब उन्होंने पत्नी के निधन संबंधी तार को चुपचाप पढ़कर जेब में रख लिया था.बाद में जाहिर होने दिया कि केस लड़ने के दौरान उस तार में आई सूचना से उन्हें किस तरह वज्रपात हुआ था.
तीसरी महिला उनकी बेटी मनिबेन पटेल थीं. जो मां के सहारे के बगैर बड़ी हुईं. आजादी के बाद जब पटेल मंत्री बने तो उन्होंने उनके निजी सचिव की भूमिका निभाई. अंत समय तक अपने पिता की सेवा की. वह ताजीवन अविवाहित रहीं. पहले कांग्रेस में रहीं और फिर कांग्रेस से मोहभंग हो गया.
लाडबा जो उन पर अक्सर नाराज भी हो जाती थीं
पहले बात करते हैं लाड बा की, जो सरदार पटेल की मां थीं. लाड बा पांच बेटों और एक बेटी की मां थीं. वल्लभ उनकी चौथी संतान थे. वह स्वाभिमानी और सरल जीवन जीने वाली महिला थीं. हालांकि कर्जों के कारण उन सभी का जीवन काफी संघर्षपूर्ण रहा.
सरदार पटेल की मां का नाम लाड़ बा था. वो सक्रिय महिला थीं. इस उम्र में भी उनकी याददाश्त और कामकाज गजब का था. अब उनकी उम्र 77 साल हो रही थी. उस समय उनके बेटे वल्लभ भाई पटेल 48 साल के थे.
74 की उम्र में चरखा कातना सीखा
सरदार पटेल के गांधीजी के साथ जाने के बाद ही 74 साल की उम्र में लाड़ बा ने चरखा कातना सीखा था. वो चरखे पर सूत कातती थीं और खुद भी खादी का कपड़ा पहनती थीं. जब 1924 के बारसोद आंदोलन के बाद पटेल अपनी मां से मिलने पैतृक गांव करमसद गए तो मां उन्हें नाराज लगीं.
उन्होंने पटेल के आते ही उनकी बेटी मनिबेन की शादी की बात शुरू की. उस जमाने में जिस उम्र में लड़कियों की शादी होती थी, मणिबेन की उम्र उससे अधिक हो चुकी थी. विद्यापीठ में वो वह गुजराती साहित्य, बंगाली और अंग्रेजी की पढ़ाई कर रही थीं. उनकी उम्र 20 साल होने वाली थी. जब मां ने उनसे पोती की शादी की बात की तो बेटे ने जवाब दिया, “जो होना है होगा”.
तब नाराज हो गईं लाड़ बा
तब लाड़ बा ने थोड़ी क्षुब्धता के साथ कहा, मुझे लगता है कि ईश्वर ने मुझे केवल मणि का विवाह देखने के लिए ही जिंदा रखा है. वल्लभभाई इस बात पर चुप रहे. उन्होंने अब तक मणि से ना तो उसके विवाह के बारे में पूछा था और ना ही उसकी कोशिश की थी. ना उसके लिए कोई योग्य वर ही अब तक तलाशा था.
उस दिन मां ने ये चर्चा छोड़ी नहीं. कहां तो सरदार पटेल अंग्रेज सरकार की हर बात का मुंहतोड़ जवाब देते थे, कहां वो मां के सामने चुप्पी लगाए हुए थे. ये बात उनके मां के गुस्से को और बढ़ा रही थी. जब जाने लगे तो लाड़ बा ने फिर मणि की सगाई की ध्यान रखने की सलाह दी. वल्लभ ने तब मां से कहा कि बार-बार यही बात कहकर वो उन्हें क्यों तंग कर रही हैं.
उनके इस जवाब ने लाड़ बा को ज्यादा रुष्ट कर दिया. उन्होंने कठोर शब्दों में कहा, ठीक कहते हो, जिस बाप ये नहीं पता कि उसके बच्चे क्या पढ़ रहे हैं तो वह जवाईं कहां से ढूंढेगा. मां की नाराजगी को सरदार पटेल दूर नहीं कर सके. वो जब मुंबई आए तो उन्होंने वहां से बेटे और बेटी को पत्र लिखकर ये जरूर कहा कि अगर उन्हें किसी भी तरह की जरूरत हो तो उनके मित्रों को बता दें. उनकी उस बात की तुरंत व्यवस्था की जाएगी. पटेल की मां साधारण जीवन जीने वाली दृढ़ इच्छाशक्ति वाली महिला थीं. पटेल को आंतरिक मजबूती और स्पष्टवादिता के गुण मां से ही मिले थे.
दूसरी महिला, जिनका जिक्र न के बराबर हुआ
सरदार पटेल के जीवन में आईं दूसरी महिला झवेर बा थीं. यानि उनकी पत्नी. सरदार पटेल से उनका विवाह तब हुआ, जब पटेल की उम्र 17 साल की थी. उनकी पत्नी का चुनाव मां-बाप और काका-काकी ने किया. तब झवेर बा की उम्र 12-13 वर्ष थी. उनके विषय में ज्यादा जानकारी नहीं मिलती. वह पटेल के पैतृक गांव करमसद से तीन मील की दूरी पर स्थित गणा गांव की थीं.
1909 में 29 वर्ष की उम्र में झवेर बा का निधन हुआ. तब वल्लभ 33 वर्ष के थे. उनके दो बच्चे एक बेटा और एक बेटी हो चुके थे. वल्लभ भाई अपनी पत्नी झवेर के बारे में बहुत कम बात करते थे. पिता ने कभी अपने बच्चों से भी झवेर के बारे में बात नहीं की. बच्चों को भी उनकी कोई याद नहीं थी. वल्लभ भाई पर लिखी गई ढेर सारी किताबें और ग्रंथ इस पर मौन रही हैं.
राजमोहन गांधी जब सरदार पटेल की जीवनी लिख रहे थे तो उन्होंने झवेर के गांव का भी दौरा किया. तब गांववालों ने उनके बारे में बताया कि वह छोटे कद की लेकिन गोरी और आकर्षक थीं.विवाह के बाद उन्हें काफी समय मायके में भी रहना पड़ा.
पटेल के जीवन की तीसरी खास महिला यानि उनकी बेटी
सरदार पटेल की बेटी मनिबेन ने उनके जीवन तब असरदार भूमिका निभाई जब आजादी के बाद वह केंद्र में मंत्री बने. तब तक उनका स्वास्थ्य गिरने लगा था. वह तब दिल्ली में पिता के साथ रहती थीं और उन्होंने तब पिता के निजी सचिव सरीखी भूमिका निभाई. वह देखती थीं कि पिता को कब आराम करना है, कब काम करना है और किससे मिलना है.
पटेल की बेटी मनिबेन पटेल ज्यादा प्रखर और सक्रिय थीं. बेहद ईमानदार.आजीवन अविवाहित रहीं. वर्ष 1988 में जब उनका निधन हुआ, तब वह 87 साल से महज एक महीने दूर थीं.
मनिबेन के बारे में अमूल के संस्थापक कूरियन वर्गीज ने अपनी किताब में विस्तार से जिक्र किया है, वो पढ़ने लायक है. दरअसल कूरियन जब आणंद में थे, तब मणिबेन से उनकी अक्सर मुलाकातें होती थीं, वह सामाजिक कार्यों में सक्रिय रहती थीं. वह किताब में लिखते हैं,” मनिबेन ने उनसे बताया कि जब सरदार पटेल का निधन हुआ तो उन्होंने एक किताब और एक बैग लिया. दिल्ली में जवाहरलाल नेहरू से मिलने चली गईं. उन्होंने नेहरू को इसे सौंपा. पिता ने निर्देश दिए थे कि उनके निधन के बाद इसे केवल नेहरू को सौंपा जाए. इस बैग में पार्टी फंड के 35 लाख रुपए थे और बुक दरअसल पार्टी की खाताबुक थी.”
सांसद बनीं और असरदार पदों पर रहीं
पटेल के निधन के बाद बिरला ने उनसे बिरला हाउस में रहने को कहा, लेकिन उन्होंने मना कर दिया. तब उनके पास ज्यादा धन भी नहीं था. वह अहमदाबाद में रिश्तेदारों के यहां चली गईं. वह बस या ट्रेन में तीसरे दर्जे में सफर करती थीं. बाद में कांग्रेसी नेता त्रिभुवनदास की मदद से सांसद बनीं. गुजरात कांग्रेस में असरदार पदों पर रहीं. कई संस्थाओं में आखिरी समय तक ट्रस्टी या पदाधिकारी भी रहीं.
जनता पार्टी के टिकट पर चुनाव जीता
मनिबेन पहली लोकसभा के लिए गुजरात के दक्षिणी कैरा से सांसद चुनी गईं. फिर दूसरी लोकसभा के लिए आणंद से सांसद बनीं. वर्ष 1964 से लेकर 1970 तक राज्यसभा की सदस्य रहीं. बाद में उन्होंने कांग्रेस छोड़कर मोरारजी देसाई के साथ स्वतंत्र पार्टी ग्रहण की. फिर कांग्रेस में आईं. आपातकाल के दौरान वह विरोधस्वरूप फिर इंदिरा गाधी की कांग्रेस आई छोड़कर कांग्रेस ओ में चली गईं.
1977 में उन्होंने जनता पार्टी के टिकट पर मेहसाणा से लोकसभा चुनाव लड़ा और निर्वाचित हुईं. उन्हें मोरारजी देसाई से बहुत उम्मीदें थीं लेकिन उन्होंने उनके साथ न जाने क्यों अजीबोगरीब व्यवहार किया. जब भी वह मिलने जाती थीं तो वह उन्हें बहुत इंतजार कराते थे.
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