कमांडो 'सी-60' फोर्स, जो नक्सल इलाकों में घंटों खाना-पानी के बिना रह सकती है

प्रतीकात्मक तस्वीर
कोई तीन दशक पहले इस फोर्स के कमांडो भर्ती किये गए थे, ये आमतौर जनजातीय होते हैं और जंगल से बखूबी परिचित होते हैं
- News18Hindi
- Last Updated: May 1, 2019, 4:59 PM IST
गढ़चिरौली में नक्सलियों के हमले में 16 जवान शहीद हुए हैं. इसमें ज्यादातर भारत की बेहतरीन सी-60 कमांडो फोर्स से ताल्लुक रखते हैं. ये लंबे समय तक बगैर खाना और पानी के रह सकते हैं. ये इतने जबरदस्त कमांडो होते हैं कि नक्सली भी इनसे डरते हैं. पिछले साल इन्हीं दिनों इस फोर्स की काफी चर्चा थी. तब सी-60 कमांडोज ने गढ़चिरौली में बड़े ऑपरेशन को अंजाम देकर 39 नक्सलियों को मार गिराया था.
ये इकलौती ऐसी फोर्स है जो जिला स्तर पर तैयार की गई है. ये आमतौर पर जंगल के चप्पे चप्पे से वाकिफ रहते हैं. आमतौर पर इस फोर्स में इलाके के जनजातीय लोगों की ही भर्ती की जाती है. 'सी-60' फोर्स में ज्यादातर गढ़चिरौली के ही आदिवासी युवा शामिल हैं जिन्हें वहां के जंगलों के बारे में पूरी जानकारी है.
खास कमांडो फोर्स
'सी-60' एक खास तरह की फोर्स है, कहा जा सकता है कि इस फोर्स के कमांडो जंगल युद्ध के लिए ही प्रशिक्षित किये गए हैं. इसके जवान हैदराबाद के ग्रे-हाऊंड्स, मानेसर के एनएसजी और पूर्वांचल के आर्मी के जंगल वॉरफेयर स्कूल से ट्रेनिंग लेकर आए हैं.कैसे होते हैं हथियार
इस फोर्स के कमांडो के हथियार भी बाकी पुलिस फ़ोर्स के अलग होते हैं.

कैसे बनी ये कमांडो 'सी-60' फोर्स
ये सोचा गया कि अगर इलाके के ही लोगों को कमांडो बनाया जाए तो ज्यादा फायदा मिलेगा. क्योंकि ना केवल जनजातीय लोग जंगल के मुश्किल जीवन में जीने के आदी होते हैं बल्कि ज्यादा फुर्तीले और बलिष्ठ भी. अगर उन्हें थोड़ी सी ट्रेनिंग दे दी जाए तो वो नक्सलियों का सामना करने के मामले में जबरदस्त कमांडो बन सकते हैं.
मतदान शुरू होने से पहले भी हुआ था गढ़चिरौली में सुरक्षाकर्मियों पर हमला
अब कितनी है संख्या
बस इसी योजना से 'सी-60' फोर्स का जन्म हुआ. 1990 में महाराष्ट्र के गढ़चिरौली के आसपास के 60 कमांडोज की एक बेंच बनाई गई. ये कमांडो वहीं पले बढ़े थे इसलिए वहां की भाषा और संस्कृति को अच्छी तरह से समझते थे. हालांकि इनकी संख्या अब 100 के आसपास हो गई है, लेकिन अब भी इन्हें 'सी-60' ही कहा जाता है.
घंटों खाने-पानी के बिना रहना आम बात
'सी-60' के जवानों को इतनी खास ट्रेनिंग दी जाती है कि जंगल में बिना खाने और पानी के घंटों चल सकते हैं. वैसे आमतौर पर ये अपने साथ खाना पानी लेकर चलते हैं. हर जवान 15 किलो का भार लेकर चलता है, जिसमें खाना, पानी, फर्स्ट ऐड और बाकी सामान शामिल होता है.
क्या गढ़चिरौली में नक्सलियों का हमला था पिछले एनकाउंटर का बदला?
ये इकलौती ऐसी फोर्स है जो जिला स्तर पर तैयार की गई है. ये आमतौर पर जंगल के चप्पे चप्पे से वाकिफ रहते हैं. आमतौर पर इस फोर्स में इलाके के जनजातीय लोगों की ही भर्ती की जाती है. 'सी-60' फोर्स में ज्यादातर गढ़चिरौली के ही आदिवासी युवा शामिल हैं जिन्हें वहां के जंगलों के बारे में पूरी जानकारी है.
खास कमांडो फोर्स
'सी-60' एक खास तरह की फोर्स है, कहा जा सकता है कि इस फोर्स के कमांडो जंगल युद्ध के लिए ही प्रशिक्षित किये गए हैं. इसके जवान हैदराबाद के ग्रे-हाऊंड्स, मानेसर के एनएसजी और पूर्वांचल के आर्मी के जंगल वॉरफेयर स्कूल से ट्रेनिंग लेकर आए हैं.कैसे होते हैं हथियार
इस फोर्स के कमांडो के हथियार भी बाकी पुलिस फ़ोर्स के अलग होते हैं.

सी60 फोर्स के जवान ऐसे कमांडो होते हैं जो जंगल के मुश्किल से मुश्किल कामों को बखूबी करने में माहिर होते हैं
कैसे बनी ये कमांडो 'सी-60' फोर्स
ये सोचा गया कि अगर इलाके के ही लोगों को कमांडो बनाया जाए तो ज्यादा फायदा मिलेगा. क्योंकि ना केवल जनजातीय लोग जंगल के मुश्किल जीवन में जीने के आदी होते हैं बल्कि ज्यादा फुर्तीले और बलिष्ठ भी. अगर उन्हें थोड़ी सी ट्रेनिंग दे दी जाए तो वो नक्सलियों का सामना करने के मामले में जबरदस्त कमांडो बन सकते हैं.
मतदान शुरू होने से पहले भी हुआ था गढ़चिरौली में सुरक्षाकर्मियों पर हमला
अब कितनी है संख्या
बस इसी योजना से 'सी-60' फोर्स का जन्म हुआ. 1990 में महाराष्ट्र के गढ़चिरौली के आसपास के 60 कमांडोज की एक बेंच बनाई गई. ये कमांडो वहीं पले बढ़े थे इसलिए वहां की भाषा और संस्कृति को अच्छी तरह से समझते थे. हालांकि इनकी संख्या अब 100 के आसपास हो गई है, लेकिन अब भी इन्हें 'सी-60' ही कहा जाता है.
घंटों खाने-पानी के बिना रहना आम बात
'सी-60' के जवानों को इतनी खास ट्रेनिंग दी जाती है कि जंगल में बिना खाने और पानी के घंटों चल सकते हैं. वैसे आमतौर पर ये अपने साथ खाना पानी लेकर चलते हैं. हर जवान 15 किलो का भार लेकर चलता है, जिसमें खाना, पानी, फर्स्ट ऐड और बाकी सामान शामिल होता है.
क्या गढ़चिरौली में नक्सलियों का हमला था पिछले एनकाउंटर का बदला?