बिहार चुनाव (Bihar Elections) के जो एग्ज़िट पोल्स (Exit Polls 2020) सामने आए हैं, उनमें से ज़्यादातर के हिसाब से बिहार में किसी भी पार्टी या गठबंधन को स्पष्ट बहुमत मिलता नहीं दिख रहा है. एक तरफ भाजपा के नेतृत्व वाला एनडीए (NDA) है, जिसमें बिहार की सत्तारूढ़ जेडीयू (JDU) भी शामिल है. यानी नीतीश कुमार सरकार (Nitish Kumar Government) की साख वाले एनडीए को स्पष्ट बहुमत छोड़िए, ज़्यादातर एग्ज़िट पोल्स ने पिछड़ता हुआ दिखाया है. दूसरी तरफ, राजद (RJD) के नेतृत्व वाले महागठबंधन (Grand Alliance) को भी एनडीए के मुकाबले बढ़त तो बताई गई है, लेकिन स्पष्ट बहुमत (Clear Majority) पर सवालिया निशान है.
बिहार में कुल 243 विधानसभा सीटें हैं यानी 122 सीटों का जादुई आंकड़ा बहुमत का है, लेकिन इस आंकड़े तक पहुंचने में कोई पार्टी या गठबंधन कामयाब हो सकता है, इस खुलासे से पहले जानिए कि त्रिशंकु विधानसभा क्या होती है और बिहार में इस बार इसके आसार क्यों नज़र आ रहे हैं.
क्या होती है त्रिशंकु विधानसभा?
जब किसी एक पार्टी या फिर चुनाव से पहले बने गठबंधन को साफ तौर पर बहुमत नहीं मिलता है, तो इसे त्रिशंकु विधानसभा कहते हैं. इसका नतीजा यह होता है कि राज्य में खिचड़ी सरकार की संभावना बढ़ जाती है क्योंकि चुनाव के बाद जोड़ तोड़ करके सरकार बनाई जाती है. इसमें ऐसी दो पार्टियां मिलकर सरकार बना सकती हैं, जिनकी कुल सीटों की संख्या मिलकर बहुमत का आंकड़ा बनाती हों.
इसके अलावा, कई बार निर्दलीयों या स्वतंत्र उम्मीदवारों के सहयोग से कोई पार्टी सरकार बना सकती है. सरकार बनाने के लिए बाहरी समर्थन का रास्ता भी खुला होता है. त्रिशंकु की स्थिति में अगर सरकार नहीं बन पाती है यानी गठबंधन के तमाम समीकरण फेल हो जाते हैं, तो ऐसी स्थिति में दोबारा चुनाव कराए जाने का विकल्प रहता है या फिर राज्यपाल संविधान के आर्टिकल 356 के तहत राष्ट्रपति शासन लगा सकते हैं.
न्यूज़18 कार्टून
त्रिशंकु विधानसभा के उदाहरण
इस स्थिति को पिछले कुछ चुनावों के उदाहरण से समझा जाए तो महाराष्ट्र में जिस तरह से जनमत आया था, उसके हिसाब से किसी पार्टी को स्पष्ट बहुमत नहीं मिला था. हालांकि एनडीए यानी भाजपा और शिवसेना मिलकर सरकार बनाने की स्थिति में थे, लेकिन अंदरूनी कलह के चलते त्रिशंकु जैसी स्थिति बनी और शिवसेना ने एनसीपी और कांग्रेस के साथ मिलकर खिचड़ी सरकार बनाई.
इसके अलावा, 2014-2015 में दिल्ली विधानसभा चुनाव में त्रिशंकु की स्पष्ट स्थिति बनी थी, जब आम आदमी पार्टी और भाजपा बहुमत से कुछ दूर रह गए थे और कांग्रेस के साथ मिलकर कोई पार्टी सरकार बनाने की स्थिति में नहीं थी. तब दोबारा चुनाव हुए थे और फिर आम आदमी पार्टी को साफ बहुमत हासिल हुआ था.
इस बार क्या है बिहार में स्थिति?
एग्ज़िट पोल्स के मुताबिक राजद इस बार बिहार में सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभर सकती है, लेकिन फिर भी उसके खाते में 85 सीटों से ज़्यादा का अनुमान नहीं है, जो कि 122 सीटों के आंकड़े से काफी दूर है. दूसी तरफ बीजेपी के खाते में ज़्यादा से ज़्यादा 70 सीटों तक का अनुमान लगाया गया है. वहीं, नीतीश की जेडीयू के हिस्से में इस बार सीटें बहुत घट जाने के बाद सिर्फ 42 सीटों तक के क़यास हैं.
साल 2015 में राजद ने 80 सीटें जीती थीं, जबकि जदयू ने 71. बीजेपी के खाते में 53 सीटें थीं और लोजपा दो सीटों पर जीती थी. बीजेपी, जदयू और लोजपा ने मिलकर सरकार बनाई थी. इस बार राजद के साथ कांग्रेस है, जिसके 25 सीटों पर जीतने की संभावना है. इसके अलावा कम्युनिस्ट पार्टियों को मिलाकर करीब 10 सीटें मिल सकती हैं. इसके बाद भी, महागठबंधन का आंकड़ा 122 के स्पष्ट बहुमत तक पहुंचता नहीं दिख रहा.